कैसे हुई बड़े मंगल की शुरुआत?
इस महापर्व की शुरुआत का संबंध लखनऊ के ऐतिहासिक अलीगंज हनुमान मंदिर और अवध के नवाब वाजिद अली शाह से जुड़ा है। लगभग 200 साल पहले, नवाब के पुत्र की गंभीर बीमारी से व्यथित बेगम ने अलीगंज के हनुमान मंदिर में मंगलवार को मन्नत मांगी। चमत्कारस्वरूप उनका पुत्र स्वस्थ हो गया। इस चमत्कार के प्रति श्रद्धा स्वरूप नवाब ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और ज्येष्ठ मास में पूरे शहर में गुड़ और प्रसाद बांटकर उत्सव मनाया। यहीं से भंडारे की परंपरा आरंभ हुई जो आज विशाल धार्मिक महोत्सव में परिवर्तित हो चुकी है, जिसमें समाज के हर वर्ग के लोग निस्वार्थ सेवा भाव से जुटते हैं।
इस तरह करें बड़े मंगल पर पूजा
प्रातःकाल स्नान कर हनुमान मंदिर जाएं या घर में ही हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र के समक्ष घी का दीपक जलाएं। गुलाब की माला, लाल चोला अर्पित करें और बजरंग बाण का पाठ करें। 108 बार ‘श्रीराम’ नाम का जाप करने से हनुमान जी अति प्रसन्न होते हैं। पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना भी अत्यंत शुभ माना गया है।
गुड़-धनिया से चाऊमीन तक
अलीगंज मंदिर के वरिष्ठ पुजारी जगदंबा प्रसाद बताते हैं कि पहले प्रसाद के रूप में बेसन के लड्डू, गुड़ और धनिया दिया जाता था। लेकिन समय के साथ आज पूड़ी-सब्जी, शरबत और कई प्रकार के खाद्य भंडारे चलन में आ गए हैं। वे भावुक होकर कहते हैं, ‘अब अगर किसी को गुड़-धनिया दें तो शायद ही कोई खा पाए। लेकिन यही हनुमान जी का असली प्रसाद है।’ भंडारे की शुरुआत से जुड़ी तीन प्रमुख लोकमान्यताएं
आलिया बेगम की मन्नत: संतान प्राप्ति की मन्नत पूरी होने पर बेगम ने सबसे पहला भंडारा कराया। इसमें गरीबों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया।
महामारी से रक्षा की प्रार्थना: एक समय लखनऊ महामारी से ग्रस्त था। तब हनुमान जी की पूजा और मन्नत के फलस्वरूप भंडारे का चलन आरंभ हुआ। केसर व्यापारी की कथा: कैसरबाग में व्यापारी की केसर की बिक्री नहीं हो रही थी। हनुमान मंदिर में मन्नत मांगने के बाद उसका व्यापार फलने-फूलने लगा। उसने कृतज्ञता में भंडारे की शुरुआत की।