बिना टेंडर करोड़ों के काम, चहेते ठेकेदारों को लाभ
रिपोर्ट में बताया गया कि अलीगढ़, बरेली, मुरादाबाद, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, गोरखपुर,
लखनऊ और झांसी नगर निगमों में वित्तीय अनुशासन की धज्जियां उड़ाई गईं। लाखों-करोड़ों रुपये के कार्य बिना टेंडर की प्रक्रिया अपनाए कराए गए। जिन कार्यों के लिए टेंडर अनिवार्य थे, उन्हें सीधे ठेकेदारों को सौंप दिया गया। कई मामलों में बाजार भाव से अधिक भुगतान किया गया, जिससे निगम की निधियों को सीधा नुकसान हुआ। ऑडिट टीम ने स्पष्ट किया कि यह सब योजनाबद्ध तरीके से हुआ और इसका सीधा लाभ कुछ चुनिंदा ठेकेदारों को दिया गया।
सामूहिक विवाह योजना में हेरफेर
- रिपोर्ट में सामूहिक विवाह योजना के तहत किए गए खर्चों पर भी सवाल उठाए गए हैं।
- लाभार्थियों की सूची में गड़बड़ी पाई गई।
- कई भुगतान ऐसे लाभार्थियों के नाम पर किए गए जो अस्तित्व में ही नहीं थे।
- योजना के तहत खरीदी गई सामग्रियों के बिल और वास्तविक वस्तुओं में अंतर पाया गया।
- ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक यह पूरा खेल अफसरों और जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत से हुआ है।
कान्हा गौशाला के खर्च पर भी सवाल
- कान्हा गौशाला योजना, जिसका उद्देश्य आवारा पशुओं के संरक्षण और देखभाल पर करोड़ों रुपये खर्च करना है, उसमें भी वित्तीय गड़बड़ी का खुलासा हुआ है।
- चारा, दवा और रखरखाव पर हुए व्यय के बिलों में गड़बड़ी पाई गई।
- कुछ नगर निगमों में गौशालाओं का संचालन कागजों पर ही दिखाया गया जबकि जमीनी स्तर पर व्यवस्थाएँ बदहाल रहीं।
- कई स्थानों पर भुगतान हुआ, लेकिन वास्तविक कार्य के प्रमाण नहीं मिले।
विधानसभा में हंगामा, विपक्ष का हमला
- ऑडिट रिपोर्ट पर विधानसभा के मानसून सत्र में विपक्ष ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया। विपक्षी दलों के विधायकों ने कहा कि यह नगर निगमों की वित्तीय लूट है और इसमें उच्च स्तरीय जांच की जरूरत है।
- विपक्ष के एक वरिष्ठ विधायक ने कहा, “नगर निगमों में भ्रष्टाचार खुलेआम हो रहा है। जनता के टैक्स का पैसा चहेतों की जेब में जा रहा है और सरकार चुप बैठी है। ऐसे में जिम्मेदार अफसरों और नेताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।”
सरकार की सफाई-दोषियों पर होगी कार्रवाई
- शहरी विकास विभाग के मंत्री ने विधानसभा में जवाब देते हुए कहा कि ऑडिट रिपोर्ट में जिन भी नगर निगमों के नाम आए हैं, वहां जिम्मेदार अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
- “राज्य सरकार किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेगी। जिन नगर निगमों में गड़बड़ी हुई है, वहां विस्तृत जांच होगी और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।”
वित्तीय अनुशासन पर बड़ा सवाल
- विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला केवल वित्तीय अनियमितता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह स्थानीय निकायों की कार्यप्रणाली और जवाबदेही पर भी सवाल खड़े करता है।
- क्यों समय पर टेंडर की प्रक्रिया नहीं अपनाई गई?
- कौन अफसर और जनप्रतिनिधि इसमें शामिल थे?
- क्या इन मामलों की समय-समय पर समीक्षा की गई थी या नहीं?
- स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग की इस रिपोर्ट ने नगर निगमों में व्याप्त भ्रष्टाचार और लापरवाही की गहराई उजागर कर दी है।
जांच के बाद क्या
- आम जनता में यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस खुलासे के बाद सिर्फ रिपोर्टें ही बनेंगी या फिर वास्तविक कार्रवाई भी होगी।
- पिछली कई ऑडिट रिपोर्टों की सिफारिशें धूल फांक रही हैं।
- दोषियों पर समय रहते कार्रवाई न होने से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
- यह मामला सरकार की भ्रष्टाचार-मुक्त शासन की प्रतिबद्धता की भी परीक्षा बन गया है।
सख्त कार्रवाई ही समाधान
तीन अरब रुपये से अधिक की वित्तीय अनियमितता कोई छोटी बात नहीं है। यह न केवल नगर निगमों की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है, बल्कि सरकारी तंत्र की लापरवाही का भी प्रमाण है। जनता उम्मीद कर रही है कि सरकार इस रिपोर्ट को केवल औपचारिकता तक सीमित न रखकर दोषियों के खिलाफ ठोस और त्वरित कार्रवाई करेगी।