
वकील परमानंद गुप्ता पर गंभीर आरोप
मामले के अनुसार अधिवक्ता परमानंद गुप्ता ने अपनी पत्नी के ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली एक महिला के माध्यम से अपने विरोधियों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत झूठा रेप व गैंगरेप केस दर्ज कराया। उद्देश्य था – निजी दुश्मनी निकालना और विपक्षियों को कानूनी फंदे में फँसाना।न्यायालय का कठोर रुख
विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी एक्ट) विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने अपने आदेश में कहा “यदि दूध से भरे महासागर में खट्टे पदार्थ की बूंदों को गिरने से नहीं रोका गया, तो पूरा महासागर खराब हो जाएगा। इसी तरह न्यायपालिका में झूठ के ज़हर को समय रहते रोका न गया, तो पूरा तंत्र अविश्वसनीय हो जाएगा।”
उम्रकैद की सजा और सख्त टिप्पणी
अदालत ने परमानंद गुप्ता को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए स्पष्ट किया कि यह केवल व्यक्तिगत सज़ा नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक संदेश है। आदेश में यह भी लिखा गया कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया और बार काउंसिल ऑफ यूपी को ऐसे दोषी अधिवक्ताओं को न्यायालय में प्रवेश और प्रैक्टिस करने से रोकना चाहिए, ताकि न्यायपालिका की पवित्रता बनी रहे।सह-अभियुक्ता को राहत, पर चेतावनी भी
अदालत ने इस मामले में सह-अभियुक्त महिला को दोषमुक्त कर तत्काल रिहाई का आदेश दिया। हालांकि अदालत ने उसे कड़ी चेतावनी दी कि यदि भविष्य में वह किसी झूठे मुकदमे में शामिल पाई गई, तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।न्यायपालिका का सख्त संदेश
कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि गंभीर अपराधों के झूठे मुकदमे न केवल निर्दोष व्यक्तियों का जीवन बर्बाद करते हैं, बल्कि असली पीड़ितों को न्याय से वंचित कर देते हैं। अदालत के शब्दों में “अभी भी समय है कि ऐसे अपराधियों को कठोर दंड देकर उदाहरण प्रस्तुत किया जाए, ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति न्यायालय का दुरुपयोग करने का साहस न करे।”
क्यों ऐतिहासिक है यह फैसला
- कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला कई मायनों में ऐतिहासिक है.
- पहली बार एक अधिवक्ता को झूठे रेप केस दर्ज कराने की साजिश में उम्रकैद की सजा मिली।
- अदालत ने बार काउंसिलों को सीधे निर्देश दिए कि ऐसे वकीलों को प्रैक्टिस से प्रतिबंधित करें।
- फैसले में न्यायपालिका की विश्वसनीयता को सुरक्षित रखने का स्पष्ट संदेश दिया गया।
जांच अधिकारी की भूमिका की सराहना
न्यायालय ने विवेचनाधिकारी राधारमण सिंह की निष्पक्ष जांच की भी सराहना की। अदालत ने कहा कि उनके द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य व गवाहियों के आधार पर सच्चाई सामने आ सकी। यदि विवेचना में ईमानदारी न होती, तो झूठे आरोपों में निर्दोष लोग जेल की सलाखों के पीछे होते।सामाजिक प्रभाव
कानूनविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह फैसला एससी/एसटी एक्ट और रेप कानून के दुरुपयोग पर लगाम लगाने में मील का पत्थर साबित होगा।विशेषज्ञों का कहना है कि सख्त सजा का असर यह होगा कि भविष्य में कोई भी व्यक्ति या समूह निजी दुश्मनी के लिए कानून का दुरुपयोग करने से पहले कई बार सोचेगा।
















