‘
गंभीर आरोपों के घेरे में भर्ती प्रक्रिया
यह मामला वर्ष 2022 में हुए एक बड़े भर्ती अभियान से जुड़ा है। 12 जुलाई 2022 को केजीएमयू में चिकित्सक शिक्षकों के 112 पदों के लिए सामान्य विज्ञापन जारी किया गया था। इस विज्ञापन में आरक्षण के तहत पदों का बंटवारा इस प्रकार किया गया।
- ईडब्ल्यूएस (EWS) – 20%
- अनारक्षित (General) – 63%
- अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) – 10%
- अनुसूचित जाति (SC) – 7%
अनुसूचित जनजाति (ST) – कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं
इस पर गंभीर आरोप लगे कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने भर्ती के दौरान रोस्टर प्रणाली का उल्लंघन किया और आरक्षित वर्गों के हितों की अनदेखी की गई। शिकायतकर्ताओं के अनुसार, जिन पदों को ईडब्ल्यूएस के लिए निर्धारित किया गया था, उन्हें बिना उचित प्रक्रिया के अनारक्षित घोषित कर दिया गया, जिससे कुल 76% पद अनारक्षित हो गए। वहीं, अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी वर्ग के पदों में अपेक्षित वृद्धि नहीं की गई।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग भी हुआ सक्रिय
मामला तब और गंभीर हुआ जब राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और केजीएमयू अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत की गई प्रारंभिक जांच में आरक्षण नीति के उल्लंघन के संकेत मिले। आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने भर्ती प्रक्रिया को जल्दबाजी में अंजाम दिया और पारदर्शिता का पालन नहीं किया।
बताया जा रहा है कि 18 सितंबर 2024 की शाम को अचानक कार्य परिषद की बैठक बुलाई गई, और उसी रात भर्ती का रिजल्ट घोषित कर दिया गया। इसके बाद कई चिकित्सक शिक्षकों को रातों-रात नियुक्ति पत्र जारी कर दिए गए और उन्होंने त्वरित रूप से कार्यभार भी ग्रहण कर लिया।
शासन की समिति ने की गहन जांच
इन सभी आरोपों की पृष्ठभूमि में उत्तर प्रदेश शासन ने उप सचिव आनंद कुमार त्रिपाठी के निर्देश पर एक संयुक्त जांच समिति गठित की। इस समिति के अध्यक्ष लालजी निर्मल बनाए गए, जबकि सदस्यों में सुरेश पासी, मनोज पारस और डॉ. रागिनी सोनकर को नामित किया गया।
बुधवार को यह समिति केजीएमयू पहुंची और कुलपति प्रो. डॉ. सोनिया नित्यानंद समेत विश्वविद्यालय के प्रशासनिक अधिकारियों से विस्तृत बातचीत की। समिति ने 2022 की भर्ती प्रक्रिया से जुड़े समस्त दस्तावेजों को तलब किया और आरक्षण के रोस्टर, चयन प्रक्रिया, आवेदन शर्तें और अंतिम चयन सूची की गहन समीक्षा शुरू की। केजीएमयू प्रशासन की ओर से बताया गया कि सभी दस्तावेज़ समिति के समक्ष प्रस्तुत कर दिए गए हैं और उन्हें पूरा सहयोग दिया जा रहा है।
कहां हुई चूक? ये हैं प्रमुख बिंदु
- ईडब्ल्यूएस पदों का अनारक्षित वर्ग में परिवर्तन – बिना औपचारिक संशोधन के 15 ईडब्ल्यूएस पद अनारक्षित घोषित कर दिए गए।
- एससी/एसटी/OBC आरक्षण का उल्लंघन – कुल 112 पदों में से अनुसूचित जनजाति को केवल दो पद दिए गए, जबकि नियमानुसार 14 पद अपेक्षित थे।
- जल्दबाजी में निर्णय – बिना पूर्व सूचना के कार्य परिषद की आपात बैठक और उसी दिन रिजल्ट जारी करना प्रशासन की मंशा पर सवाल खड़े करता है।
- रातों-रात नियुक्ति – पारदर्शिता और सामान्य प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए शिक्षकों को तत्काल कार्यभार ग्रहण करा देना।
केजीएमयू की सफाई
इस पूरे मामले पर केजीएमयू प्रशासन का कहना है कि भर्ती प्रक्रिया नियमों के तहत पूरी की गई है और कहीं भी जानबूझकर किसी वर्ग के साथ अन्याय नहीं किया गया। प्रशासन का दावा है कि सभी बदलाव शासनादेशों के अनुसार किए गए थे और समिति को सौंपे गए दस्तावेज़ इसकी पुष्टि करेंगे। कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद ने कहा, “हम पूरी पारदर्शिता से समिति के समक्ष तथ्यों को रख रहे हैं। विश्वविद्यालय की गरिमा और वैधानिक प्रक्रिया का सम्मान हम सभी की जिम्मेदारी है।”
संयुक्त समिति अब दस्तावेजों की पड़ताल पूरी कर अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपेगी। सूत्रों के अनुसार, अगर आरक्षण नीति के उल्लंघन की पुष्टि होती है, तो भर्ती रद्द हो सकती है या आंशिक रूप से संशोधित की जा सकती है। साथ ही जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई भी संभव है। राज्य सरकार की मंशा इस मामले में शून्य सहिष्णुता (Zero Tolerance) की दिख रही है। अगर यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में गया, तो यह प्रदेश में शिक्षण संस्थानों में हो रही अन्य भर्तियों पर भी प्रभाव डाल सकता है।