यह आदेश हाईकोर्ट की डबल बेंच ने गुरुवार को सुनाया। अदालत ने यह निर्देश उन याचिकाओं के आधार पर दिया है, जिसमें स्कूली बच्चों ने सरकार के इस फैसले पर आपत्ति जताई थी और इसे अपने अधिकारों का हनन बताया था।
क्या था मामला?
बेसिक शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश ने 16 जून 2025 को एक आदेश जारी कर प्रदेश के हजारों परिषदीय स्कूलों को मर्ज करने का निर्णय लिया था। इस आदेश के अनुसार, जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या 50 से कम है, उन्हें नजदीकी उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूल में विलय कर दिया जाना था। सरकार का तर्क था कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा, संसाधनों का बेहतर उपयोग किया जा सकेगा और शिक्षक व स्टाफ की तैनाती अधिक प्रभावी ढंग से हो सकेगी। सरकार ने इसे एक “नीतिगत निर्णय” बताया था।
बच्चों की याचिका और चिंता
सरकार के इस फैसले को 1 जुलाई को सीतापुर जिले की छात्रा कृष्णा कुमारी समेत 51 बच्चों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। बच्चों ने अपनी याचिका में कहा कि छोटे बच्चों के लिए दूर स्थित स्कूल तक पहुँचना कठिन होगा, खासकर ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में। इसके चलते उनकी शिक्षा बाधित होगी और सामाजिक असमानता भी बढ़ेगी। एक अन्य याचिका 2 जुलाई को दाखिल की गई थी, जिसमें भी इसी प्रकार की आपत्तियां जताई गईं थीं।
कोर्ट की अब तक की कार्यवाही
बता दें कि 4 जुलाई को दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस पंकज भाटिया ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसके बाद 7 अगस्त को सिंगल बेंच ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि यह निर्णय बच्चों के हित में है और जब तक कोई नीतिगत फैसला असंवैधानिक या दुर्भावनापूर्ण न हो, तब तक उसे चुनौती नहीं दी जा सकती। हालांकि अब हाईकोर्ट की डबल बेंच ने इस फैसले पर रोक लगाते हुए पुरानी स्थिति को बहाल रखने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बच्चों की पहुँच और उनकी शिक्षा के अधिकार से जुड़ा यह मसला गंभीर है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
सरकार का पक्ष
बेसिक शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार के निर्देश पर यह प्रक्रिया शुरू की गई थी। उन्होंने कहा था कि जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या 50 से कम है, उन्हें पड़ोस के किसी स्कूल में विलय किया जाएगा। इसके लिए सभी बीएसए (जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी) से ऐसे स्कूलों का ब्योरा मांगा गया था। स्कूल शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा ने इस आदेश को स्पष्ट करते हुए कहा था कि इसका उद्देश्य शिक्षा व्यवस्था को अधिक संगठित और प्रभावी बनाना है।
क्या है आगे?
अब इस मामले की अगली सुनवाई 21 अगस्त 2025 को होगी। तब तक सभी स्कूल अपनी पुरानी व्यवस्था के अनुसार ही संचालित होंगे। यह आदेश शिक्षा व्यवस्था में एक बड़ा मोड़ माना जा रहा है, खासकर तब जब बच्चों के अधिकारों और उनकी शैक्षिक पहुँच को लेकर पूरे देश में संवेदनशीलता बढ़ी है।