मायावती, अखिलेश से योगी तक एक्सप्रेसवे की सियासत, कौन जीतेगा 2027 की रेस?
उत्तरप्रदेश में एक्सप्रेस-वे की नींव मायावती ने रखी थी। मायावती के शासन के दौरान यमुना एक्सप्रेसवे का निर्माण हुआ था। इसके बाद समाजवादी पार्टी के कार्यकाल के दौरान आगरा एक्सप्रेस-वे यूपी को मिला। योगी सरकार के दौरान तो एक्सप्रेस-वे को नई गति ही मिल गई।
उत्तर प्रदेश में राजनीति भले ही चुनावी दांव-पेंच और वोट बैंक के खेल के लिए जानी जाती हो, लेकिन पिछले दो दशकों में यहां विकास की पटकथा एक्सप्रेसवे के ज़रिए लिखने की होड़ भी देखने को मिली है। मायावती, अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ ने अपने-अपने कार्यकाल में प्रदेश में सड़कों का जाल बिछाकर अपनी सियासी लकीर खींचने की कोशिश की। हालांकि, मायावती और अखिलेश के लिए ये परियोजनाएं सत्ता में वापसी का जरिया नहीं बन सकीं, लेकिन योगी सरकार का पूरा फोकस है कि इन विकास परियोजनाओं को चुनावी सफलता के साथ जोड़ा जाए।
उत्तर प्रदेश में एक्सप्रेसवे युग की नींव मायावती सरकार ने रखी। 2002 में सत्ता में आने के बाद उनकी सरकार ने ग्रेटर नोएडा से आगरा तक 165 किलोमीटर लंबे ताज एक्सप्रेसवे (अब यमुना एक्सप्रेसवे) की योजना बनाई। 2003 में उन्होंने इसका शिलान्यास किया, लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद मुलायम सरकार ने इसे रोक दिया। 2007 में बसपा की पूर्ण बहुमत से वापसी के बाद इस परियोजना को फिर से शुरू किया गया। ये एक्सप्रेसवे ग्रेटर नोएडा, जेवर, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा और आगरा को जोड़ता है। 2012 में सत्ता में अखिलेश यादव की अगुवाई में आई सपा सरकार ने इसका उद्घाटन किया। हालांकि मायावती ने 2012 में इसे अपनी बड़ी उपलब्धि बताई थी, लेकिन वोट नहीं मिले।
आगरा–लखनऊ एक्सप्रेसवे से राष्ट्रीय फोकस में
मायावती की तरह अखिलेश यादव ने भी सत्ता में आते ही एक्सप्रेसवे पर फोकस किया। उन्होंने आगरा से लखनऊ तक 302 किलोमीटर लंबा छह लेन एक्सप्रेसवे बनवाया। ये एक्सप्रेसवे आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, कन्नौज, हरदोई, उन्नाव जैसे 10 जिलों से होकर गुजरता है। नवंबर 2016 में अखिलेश ने इसका उद्घाटन किया और फाइटर जेट विमानों की लैंडिंग कराकर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरीं। हालांकि 2017 के चुनाव में अखिलेश इसे अपनी सबसे बड़ी विकास उपलब्धि के रूप में जनता के सामने लेकर गए, लेकिन सत्ता से बाहर हो गए।
एक्सप्रेसवे की राजनीति को नई रफ्तार
योगी सरकार आते ही एक्सप्रेसवे नेटवर्क को ज़मीन से जोड़ने में लग गई। 2017 के बाद यूपी में एक नहीं, बल्कि चार नए एक्सप्रेसवे पर काम शुरू हुआ। पूर्वांचल, बुंदेलखंड, गंगा एक्सप्रेसवे और उनके लिंक प्रोजेक्ट्स।पूर्वांचल एक्सप्रेस वे योगी सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट कहे जाने वाले 341 किमी लंबे पूर्वांचल एक्सप्रेसवे की बुनियाद 2018 में पीएम मोदी ने आजमगढ़ में रखी। यह लखनऊ से गाजीपुर के हैदरिया गांव तक जाता है और लखनऊ, बाराबंकी, अमेठी, सुल्तानपुर, अयोध्या, अंबेडकरनगर, आजमगढ़, मऊ और गाजीपुर को जोड़ता है। सपा सरकार में इसकी परिकल्पना बनी, लेकिन निर्माण BJP सरकार ने शुरू किया और पूरा भी किया । इसी तरह बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे चित्रकूट से शुरू होकर बांदा, हमीरपुर, महोबा, औरैया, जालौन और इटावा तक जाता है और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे से जुड़ता है। इसकी आधारशिला 29 फरवरी 2020 को पीएम मोदी ने रखी।
यह क्षेत्र लंबे समय से विकास से वंचित था, इसे लखनऊ से जोड़ना सरकार का बड़ा कदम माना गया। वहीं गंगा एक्सप्रेसवे सबसे महंगी और सबसे लंबी एक्सप्रेसवे योजना के रूप में सामने आया है । 36,230 करोड़ रुपये की लागत से मेरठ के बिजौली गांव से शुरू होकर प्रयागराज के जुदापुर डांडो तक 594 किमी लंबी यह सड़क बन रही है। ये एक्सप्रेसवे मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर, अमरोहा, संभल, बदायूं, शाहजहांपुर, हरदोई, उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़ और प्रयागराज से होकर गुजरेगा। पूरा होने पर लखनऊ से प्रयागराज की दूरी 7 घंटे और मेरठ की दूरी 5 घंटे में तय होगी। गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे के जरिए गोरखपुर अब पूर्वांचल एक्सप्रेसवे से जुड़ गया है।
विकास या सियासत का जरिया?
उत्तर प्रदेश में एक्सप्रेसवे सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि सियासत का बड़ा हथियार बन चुके हैं। मायावती और अखिलेश ने इसे विकास का चेहरा बनाने की कोशिश की, जबकि योगी आदित्यनाथ इसे सियासी सफलता में बदलने का प्रयास कर रहे हैं।
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