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लखनऊ

B-Ed Admission 2025: फिर लौटी बीएड की रौनक: सीटें घटीं, अभ्यर्थी बढ़े

BEd Admission: उत्तर प्रदेश में बीएड कोर्स की मांग अचानक बढ़ गई है। सीटों में भारी कटौती के बावजूद इस बार आवेदनकर्ताओं की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची है। पीजीटी में बीएड अनिवार्य होने और शिक्षकों की नई भर्ती नीति ने इस पाठ्यक्रम को फिर से लोकप्रिय बना दिया है।

लखनऊJun 20, 2025 / 09:33 am

Ritesh Singh

बीएड की लौटती चमक: घटती सीटों और बढ़ते अभ्यर्थियों के बीच फिर जागी उम्मीदें फोटो सोर्स : Patrika

बीएड की लौटती चमक: घटती सीटों और बढ़ते अभ्यर्थियों के बीच फिर जागी उम्मीदें फोटो सोर्स : Patrika

B.Ed Booms Again in UP: उत्तर प्रदेश में बीएड (बैचलर ऑफ एजुकेशन) पाठ्यक्रम एक बार फिर चर्चा में है। दो साल तक कम होती मांग और खाली सीटों से जूझते बीएड कॉलेजों के लिए यह वर्ष नई आशाओं की किरण लेकर आया है। सीटें भले ही घट गई हों, लेकिन दावेदारों की संख्या कई गुना बढ़ चुकी है। इसके पीछे न केवल पीजीटी (प्रवक्ता) में बीएड की अनिवार्यता बल्कि शिक्षक भर्ती की संभावनाएं भी प्रमुख कारण हैं।
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पिछले दो शैक्षिक सत्रों में बीएड महाविद्यालयों की स्थिति बेहद कमजोर रही। लगभग 50 प्रतिशत सीटें खाली रह गई थीं, जिससे कई कॉलेजों को संचालन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कई कॉलेजों को तो अपने स्टाफ की सैलरी तक देना मुश्किल हो गया था। वहीं इस वर्ष अचानक बीएड की मांग में बड़ा उछाल आया है। इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि इस बार संयुक्त बीएड प्रवेश परीक्षा के अंतिम दिनों में आवेदनकर्ताओं की संख्या लाखों में पहुंच गई।

घट गई सीटें, पर बढ़े दावेदार

इस वर्ष बीएड सीटों में लगभग 56 हजार की कटौती की गई है। फिर भी अभ्यर्थियों की संख्या 3 लाख 4 हजार से अधिक तक पहुंच गई है, जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 2 लाख तक भी नहीं पहुंचा था। एनसीईटी (राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद) ने राज्य के 560 बीएड कॉलेजों की मान्यता पहले ही रद्द कर दी है और सैकड़ों अन्य कॉलेजों की मान्यता भी खतरे में है। यदि इनकी मान्यता भी समाप्त होती है, तो दाखिला प्रक्रिया में बड़ी उलझन पैदा हो सकती है।
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बीएड की मांग क्यों बढ़ी

विशेषज्ञों के अनुसार बीएड की मांग बढ़ने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि अब कक्षा 6 से 12 तक के शिक्षकों की भर्ती में बीएड अनिवार्य कर दिया गया है। पहले केवल टीजीटी (प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक) के लिए बीएड जरूरी था, लेकिन अब पीजीटी (प्रवक्ता) स्तर पर भी इसे लागू कर दिया गया है। इससे परास्नातक डिग्री के आधार पर इंटर कॉलेजों में सीधे नौकरी मिलने की संभावना खत्म हो गई है। ऐसे में जिन उम्मीदवारों ने परास्नातक किया है, वे भी अब बीएड की ओर रुख कर रहे हैं।
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कॉलेज संचालकों को बढ़ी उम्मीदें

बीएड कॉलेजों के संचालकों को इस वर्ष सीटों के भर जाने की पूरी उम्मीद है। उनका कहना है कि भले ही फीस कुछ कम मिल रही हो, लेकिन यदि सीटें भर जाती हैं तो आर्थिक स्थिति बेहतर हो सकेगी। पिछले दो सालों में दाखिले 40 हजार और 20 हजार रुपये सालाना फीस पर भी हुए हैं, जबकि शासन द्वारा निर्धारित फीस पहले वर्ष के लिए 51,500 और दूसरे वर्ष के लिए 30,000 रुपये है। बावजूद इसके कॉलेजों को स्टाफ की सैलरी देने में दिक्कत हो रही थी। अब जब सीटें भरने की उम्मीद है, तो संचालकों ने छात्रों के स्वागत की तैयारी भी शुरू कर दी है।
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मान्यता पर लटक रही तलवार

एनसीईटी द्वारा 560 कॉलेजों की मान्यता रद्द किए जाने के बाद अब हजारों कॉलेजों की मान्यता पर तलवार लटक रही है। उत्तर क्षेत्रीय समिति की अगली बैठक के बाद ही यह तय होगा कि और कितने कॉलेजों को अनुमति मिलेगी या नहीं। उसके बाद ही काउंसलिंग कार्यक्रम की घोषणा की जाएगी। यदि और कॉलेज बंद होते हैं, तो छात्रों को दाखिला लेने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
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सरकारी नीति का असर

शिक्षा विभाग की नीतियों का असर स्पष्ट रूप से बीएड पाठ्यक्रम पर दिख रहा है। बीएड को अनिवार्य किए जाने के निर्णय ने इस कोर्स की लोकप्रियता को फिर से बढ़ा दिया है। इससे न केवल शिक्षण संस्थानों को राहत मिलेगी, बल्कि योग्य शिक्षकों की आपूर्ति भी बेहतर होगी।
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छात्रों की प्राथमिकता में बदलाव

जहां पहले छात्र बीएड को अंतिम विकल्प के रूप में देखते थे, वहीं अब यह उनके करियर की प्राथमिकता में शामिल हो गया है। इसकी एक वजह यह भी है कि अब शिक्षकों की भर्ती केवल शैक्षणिक डिग्री के आधार पर नहीं, बल्कि प्रशिक्षण आधारित योग्यता के अनुसार हो रही है। इससे शैक्षिक गुणवत्ता में भी सुधार की संभावना है।

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