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Ayodhya Lucknow Highway: 6 महीने में 150 करोड़ का ओवरब्रिज धंसा, अयोध्या-लखनऊ हाईवे पर हड़कंप

Ayodhya-Lucknow Highway Shock:  अयोध्या-लखनऊ हाईवे पर सहादतगंज बाईपास तिराहे पर 150 करोड़ रुपये की लागत से बना ओवरब्रिज महज छह महीने में धंस गया। बाउंड्री में दरारें आने के बाद यातायात रोका गया और मरम्मत शुरू हुई। इस घटना ने निर्माण गुणवत्ता, ठेकेदारी प्रक्रिया और प्रशासनिक निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

लखनऊAug 10, 2025 / 11:36 am

Ritesh Singh

अयोध्या-लखनऊ हाईवे का 150 करोड़ का ओवरब्रिज 6 महीने में धंसा – विकास की पोल खुली फोटो सोर्स : Social Media

अयोध्या-लखनऊ हाईवे का 150 करोड़ का ओवरब्रिज 6 महीने में धंसा – विकास की पोल खुली
फोटो सोर्स : Social Media

,Ayodhya Lucknow Highway Bridge Damage: उत्तर प्रदेश में विकास कार्यों की गुणवत्ता पर एक बार फिर सवाल उठ खड़ा हुआ है। अयोध्या-लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित सहादतगंज बाईपास तिराहे का नया ओवरब्रिज, जिसे लगभग 150 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया था, महज 6 महीने में ही धंस गया। बाउंड्री दीवार में भी गंभीर दरारें आ गई, जिसके बाद प्रशासन ने यातायात को तत्काल रोक दिया और मरम्मत कार्य शुरू कर दिया। यह घटना न केवल तकनीकी और प्रशासनिक लापरवाही का संकेत है, बल्कि सरकारी ठेकों और निर्माण गुणवत्ता पर भी बड़ा सवाल खड़ा करती है।

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घटना का पूरा विवरण

यह ओवरब्रिज राष्ट्रीय राजमार्ग-27 का हिस्सा है, जो अयोध्या को लखनऊ से जोड़ता है। सहादतगंज बाईपास तिराहे पर यातायात सुचारू करने के लिए इस फ्लाईओवर का निर्माण हुआ था। इसका उद्घाटन करीब छह महीने पहले ही बड़े धूमधाम से किया गया था। लेकिन अब, ब्रिज का एक हिस्सा धंस गया है। बाउंड्री में लंबी दरारें आ गई हैं, जो स्पष्ट रूप से निर्माण में खामी और नींव की कमजोरी को दर्शाती हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, पिछले कई दिनों से यहां हल्की कंपन और सड़क की सतह में असमानता महसूस हो रही थी, लेकिन विभाग ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
 Ayodhya Lucknow Highway

निर्माण की लागत और ठेका प्रक्रिया

  • सूत्रों के अनुसार, इस ओवरब्रिज का निर्माण कार्य राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) की देखरेख में हुआ था।
  • कुल लागत: लगभग ₹150 करोड़
  • निर्माण अवधि: 18 महीने
  • उद्देश्य: सहादतगंज चौराहे पर लगने वाले जाम को खत्म करना और अयोध्या आने-जाने वाले यातायात को तेज करना।
  • लेकिन महज आधे साल में धंसा, इस बात का संकेत है कि या तो निर्माण सामग्री में मिलावट हुई, या फिर डिज़ाइन और नींव के मानकों की अनदेखी हुई।

तकनीकी विश्लेषण

सिविल इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ बताते हैं कि किसी भी फ्लाईओवर का डिजाइन इस तरह किया जाता है कि वह दशकों तक बिना किसी बड़े ढांचे के नुकसान के टिक सके। 6 महीने में धंसना इस बात की गवाही देता है कि
  • मिट्टी की जांच (Soil Testing) सही तरीके से नहीं हुई।
  • जल निकासी (Drainage) का पर्याप्त प्रावधान नहीं था, जिससे पानी भरने और मिट्टी कटाव की संभावना बढ़ी।
  • लोड बियरिंग कैपेसिटी के अनुसार नींव को मजबूत नहीं किया गया।
  • सपोर्ट स्ट्रक्चर में घटिया स्टील या कंक्रीट का इस्तेमाल हुआ हो सकता है।

जनता पर असर

  • फ्लाईओवर बंद होने से अयोध्या-लखनऊ मार्ग पर यातायात पूरी तरह बाधित हो गया है।
  • भारी वाहनों को लंबा डिटूर लेना पड़ रहा है।
  • स्थानीय व्यापारियों की बिक्री में गिरावट आ रही है।
  • रोजाना यात्रा करने वाले लोग समय और ईंधन की बर्बादी झेल रहे हैं।
अयोध्या से लखनऊ जाने वाले एक व्यापारी ने कहा, “जब 150 करोड़ का ब्रिज छह महीने में धंस सकता है, तो बाकी सड़कें और पुल कितने सुरक्षित हैं .
 Ayodhya Lucknow Highway

सरकारी प्रतिक्रिया

  • जैसे ही घटना की जानकारी मिली, PWD और NHAI के अधिकारी मौके पर पहुंचे।
  • यातायात को तत्काल डायवर्ट किया गया।
  • मरम्मत कार्य शुरू हुआ।
  • निर्माण एजेंसी से जवाब-तलब किया गया है।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने घटना को गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दिए और कहा कि “लापरवाही पाए जाने पर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।”

विपक्ष का हमला

सपा और कांग्रेस ने इस घटना को लेकर सरकार पर सीधा हमला बोला है। अखिलेश यादव ने ट्वीट किया: “ये है डबल इंजन का डबल करप्शन। 150 करोड़ का पुल 6 महीने में धंस गया।”
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि यह ‘विकास’ नहीं, ‘विनाश’ का उदाहरण है।

पिछले मामलों से तुलना

  • उत्तर प्रदेश में यह पहली बार नहीं है जब महंगे प्रोजेक्ट में खामी निकली हो।
  • 2022 में वाराणसी में एक अंडर-कंस्ट्रक्शन फ्लाईओवर का हिस्सा गिरा था।
  • 2021 में प्रयागराज में गंगा पुल की एप्रोच रोड धंस गई थी।
  • ये सभी मामले गुणवत्ता जांच प्रणाली की विफलता को उजागर करते हैं।

संभावित कारण

  • ठेका देने में पारदर्शिता की कमी
  • समय सीमा में काम पूरा करने का दबाव
  • घटिया सामग्री का इस्तेमाल
  • इंजीनियरिंग मानकों का पालन न होना

विशेषज्ञों की राय

सिविल इंजीनियर प्रो. आर.के. वर्मा कहते हैं,“150 करोड़ का पुल 6 महीने में धंसना केवल तकनीकी त्रुटि नहीं, बल्कि सिस्टम फेल्योर है। मिट्टी की जाँच, नींव की गहराई और स्ट्रक्चर टेस्ट में गंभीर चूक हुई है।”

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