1,93,000 शिक्षक भर्तियों के जुमलाई विज्ञापन से जन्मा : 2027 के चुनाव में ‘भाजपा की हार का राजनीतिक गणित’
– मान लिया जाए कि 1 पद के लिए कम-से-कम 75 अभ्यर्थी होते, तो यह संख्या होती = 1,44,75,000 – और एक अभ्यर्थी के साथ यदि केवल उनके अभिभावक जोड़ लिए जाएं तो कुल मिलाकर 3 लोग इससे प्रभावित होंगे अर्थात ये संख्या बैठेगी = 4,34,25,000 – ये सभी व्यस्क होंगे अतः इन्हें 4,34,25,000 मतदाता मानकर अगर उप्र की 403 विधानसभा सीटों से विभाजित कर दें तो ये आँकड़ा लगभग 1,08,000 वोट प्रति सीट का आयेगा
– और अगर इनका आधा भी भाजपा का वोटर मान लें (चूँकि भाजपा 50% वोटर्स की जुमलाई बात करती आई है) तो लगभग 1,08,000 का आधा मतलब हर सीट पर 54,000 मतों का नुक़सान भाजपा को होना तय है।
– इस परिस्थिति में भाजपा 2027 के विधानसभा चुनावों में दहाई सीटों पर ही सिमट जाएगी। पुलिस भर्ती के मामले में ‘भर्तियों का ये गणित’ भाजपा को उप्र में लगभग आधी सीटों पर हारने में सफल भी रहा है, अत: ऐसे आँकड़ों को अब सब गंभीरता से लेने लगे हैं। अब ये मानसिक दबाव का नहीं वरन सियासी सच्चाई का आँकड़ा बन चुका है।
जैसे ही ये आंकड़ा प्रकाशित होगा और विधानसभा चुनाव लड़ने वाले भाजपाई प्रत्याशियों के बीच जाएगा वैसे ही उनका राजनीतिक गुणा-गणित टूट कर बिखर जाएगा और विधायक बनने का उनका सपना भी। इससे भाजपा में एक तरह से भगदड़ मच जाएगी। ऐसे में भाजपा को मतदाता ही नहीं बल्कि प्रत्याशियों के भी लाले पड़ जाएँगे। वैसे भी कुछ निम्नांकित उल्लेखनीय कारणों से भाजपा सरकार के विरोध में, उप्र की जनता पूरी तरह आक्रोशित है और भाजपा को 2027 के चुनाव में बुरी तरह से हराने और हटाने के लिए पूरी तरह कमर कस के तैयार है:
– किसानों-मज़दूरों की बेकारी; – युवाओं की बेरोज़गारी; – परिवारवालों के लिए खानपान, दवाई, पढ़ाई, पेट्रोल-डीज़ल और हर चीज़ की महंगाई – महिलाओं का अपमान और असुरक्षा – हर काम में भ्रष्टाचार
– पीडीए का उत्पीड़न और उन पर अत्याचार – भाजपा में डबल इंजन की टकराहट – भाजपा राज में ‘सत्ता सजातीय’ पक्षपात – भाजपा में दो फाड़ – भाजपा राज में कमीशनखोर अधिकारियों को बचाने की साज़िश
– सच्चे अधिकारियों के परिवारों पर व्यक्तिगत हमला – बुद्धिजीवियों और पत्रकारों पर एफ़आइआर और उनकी गिरफ़्तारी – विपक्ष पर झूठे मुक़दमे – झूठे एनकाउंटर का डर – केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग
– पुलिस का भ्रष्टीकरण – शिक्षक, शिक्षामित्र, आशा, आंगनबाड़ी, सहायिका, चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की उपेक्षा और अवहेलना – खरबपतियों के फ़ायदे के लिए नियम-क़ानूनों को तोड़ना मरोड़ना – छोटे दुकानदारों, व्यापारियों, कारोबारियों, कारखानेवालों का जीएसटी के नाम पर शोषण और वसूली
– वर्क-लाइफ़ बैलेंस बिगाड़कर एम्प्लॉयीज़ का शोषण – असुरक्षित क्षेत्र में अस्थायी काम करनेवाले डिलीवरी पर्सन, ड्राइवर या अन्य को कोई भी सामाजिक सुरक्षा न मिलना – बीमा पर टैक्स वसूलना – जनता की बचत पर मिलनेवाले ब्याज का कम होना और उस पर भी टैक्स वसूलना
– कलाकारों की अभिव्यक्ति पर डर की तलवार – स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों, जल व विद्युत आपूर्ति की दुर्दशा और लगातार बढ़ते बिल… इन जैसे न जाने कितने मुद्दे हैं, जो भाजपा विरुद्ध जनता में आक्रोश का उबाल ला चुके हैं। उप्र में लोकसभा की पराजय के बाद भाजपा का सारा सियासी समीकरण और साम्प्रदायिक राजनीति का फ़ार्मूला पहली ही फ़ेल हो चुका है, विकास के नाम पर इन्होंने सपा सरकार के बने कामों के उद्घाटन का उद्घाटन मात्र किया है। ऐसे में भाजपा के भावी प्रत्याशियों के बीच ये संकट है कि वो जनता के बीच क्या मुंह लेकर जाएं। इसीलिए उप्र में भाजपा 2027 के चुनाव में अपनी हार मान चुकी है और जाने से पहले हर ठेके और काम में बस पैसा बटोरने में लगी है। इसीलिए उप्र ‘ऐतिहासिक महाभ्रष्टाचार’ के दौर से गुजर रहा है।
भाजपा की सामाजिक अन्याय, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता पर आधारित समाज को लड़ानेवाली बेहद कमज़ोर हो चुकी दरारवादी-विभाजनवादी नकारात्मक राजनीति के मुक़ाबले ‘सामाजिक न्याय के राज’ की स्थापना का महालक्ष्य लेकर चलनेवाली समता-समानतावादी, सौहार्दपूर्ण और सकारात्मक पीडीए राजनीति का युग आ चुका है। 90% पीड़ित जनता जाग चुकी है और ‘अपनी पीडीए सरकार’ बनाने के लिए कटिबद्ध भी है और प्रतिबद्ध भी।
अब सब पीड़ित मिलकर जवाब देंगे और 27 में PDA की सरकार बनाएंगे…पीडीए ही भविष्य है। ( नोट – अखिलेश यादव ने यह ट्वीट अपने X अकाउंट से किया)