अच्छे अस्पताल और इलाज मिलना चाहिए
साथ ही कोरबा शहर को विकास के लिए साधन-संसाधन की आवश्यकता है। नए ट्रांसपोर्ट नगर को बसाना भी जरूरी है। जीवनदायिनी हसदेव की सुरक्षा के लिए भी पहल जरूरी है। कोरबा ने काले हीरे की नगरी, ऊर्जाधानी और पावर हब के रूप में देश में अपनी पहचान बनाई है। यहां के ताप विद्युत संयंत्र,
कोयला खदानें और उद्योग, देश की ऊर्जा ज़रूरतें पूरी करने में अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन इसी विकास की चमक के पीछे प्रदूषण का साया भी गहराता जा रहा है। कोरबा के लोग अपने शहर की ऊर्जानगरी वाली पहचान पर गर्व करते हैं, लेकिन अब उनकी इच्छा स्वच्छ हवा में सांस लेने की आज़ादी है। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुआं, राख और कोल डस्ट यहां के लोगों के लिए गंभीर समस्या बन चुका है।
न्याय व्यवस्था को किया जाए सुदृढ़
अधिवक्ता श्वेता कुशवाहा ने कहा की इस स्वतंत्रता दिवस पर न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ करने की दिशा में प्रयास होना चाहिए। जिला एवं सत्र न्यायालय हो या देश के अन्य न्यायालय। किसी न्यायालय में लोगों को त्वरित न्याय दिलवाने आज भी किसी चुनौती से कम नहीं है। नए ट्रांसपोर्ट नगर को बसाने हो पहल
शहर के भीतर से बायपास रोड गुजरता है। इससे आजादी की जरुरत है। यह तभी संभव है, जब नया ट्रांसपोर्टनगर बने। संभव हो तो शहर के चारों ओर ट्रांसपोर्टनगर बसाया जाना चाहिए। नया
ट्रांसपोर्टनगर उरगा, गोपालपुर, कुसमुंडा और कोरबा के बाहर हिस्से में हो। साथ ही शहर में हसदेव नदी किनारे रिवर व्यू फ्रन्ट बनाने की जरुरत है। जीवनदायिनी हसदेव प्रदूषण की जद में है। इसे साफ-सुथरा बनाए रखने के लिए सबकी सहभागिता हो, इसके लिए सामूहिक तौर पर प्रयास किया जाए।
प्रदूषण नियंत्रण उपायों का सती से हो पालन
प्रदूषण नियंत्रण के उपायों को बेहतर ढंग से अपनाने के साथ ही लागू नियमों पर भी सती जरूरी है। औद्योगिक संयंत्रों से उत्सर्जित राख का व्यवस्थापन शत-प्रतिशत होना चाहिए।
खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है एक्यूआई का स्तर
पर्यावरण के जानकारों के अनुसार कोरबा का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) कई बार खतरनाक स्तर पार कर चुका है। खासकर अप्रैल-मई के दौरान संवेदनशील क्षेत्रों में एक्यूआई का स्तर 170 से अधिक होता है। बारिश के मौसम को छोड़ दें तो अन्य दिनों में हवा में पीएम-10 और पीएम 2.5 का स्तर बढ़ने से एक्यूआई का स्तर सवेंदनशील स्तर तक पहुंच जाता है। यह केवल पर्यावरण के लिए ही नहीं बल्कि लोगों के लिए भी बेहद घातक साबित हो रहा है जिले में गेवरा, दीपका, कुसमुंडा, राताखार, बरबसपुर क्षेत्र में डस्ट की समस्या अधिक है। जेठ-बैशाख में प्रदूषण की समस्या और गंभीर हो जाती है।
जेठ-बैशाख में स्थिति और होती है गंभीर
ऊर्जाधानी में इलाज की सुविधा नहीं है। कई अस्पताल हैं, जो खुद को सुपरस्पेशलिटी होने का दावा करते हैं। लेकिन वहां न तो विशेषज्ञ डॉक्ट न हैं न ही इलाज। बल्कि इलाज के नाम पर लूट है। सरकारी अस्पतालों में स्थिति और खराब है। यहां गंभीर बीमारियों का नहीं है। सामान्य बीमारियों में भी मरीज को रेफर किया जाता है। इससे ज्यादा परेशानी गरीब मरीजों को होती है। झोलाछाप डॉक्टरों से आजादी के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने की जरुरत है ताकि मरीजों को परेशानी न हो।
अधिक प्रदूषण वाले क्षेत्रों में सेहत पर गंभीर खतरा
मार्च 2020 में स्टेट हेल्थ रिसोर्स सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार कोरबा के ज्यादा प्रदूषण प्रभावित क्षेत्रों में अस्थमा के लक्षण 11.79 प्रतिशत और ब्रोंकाइटिस के 2.96 प्रतिशत मरीज पाए गए थे। जबकि अपेक्षाकृत साफ हवा वाले कटघोरा क्षेत्र में यह दर क्रमश: 5.46 प्रतिशत और 0.99 प्रतिशत थी। लेकिन समय के साथ इसमे सुधार की जगह समस्या और गंभीर होती जा रही है।
बिजली संयंत्रों में हर दिन 70 हजार टन कोयले की खपत
बिजली संयंत्र देशभर में बिजली आपूर्ति की रीढ़ माने जाते हैं। यहां स्थापित बड़े थर्मल पावर प्लांटों में प्रतिदिन औसतन 70 हजार टन से अधिक कोयले की खपत होती है। इसके साथ ही बिजली उत्पादन प्रक्रिया के दौरान कोयले की कुल खपत का 35 फ़ीसदी राख के रूप में उत्सर्जित होती है जो प्रदूषण का बड़ा कारण है। यह आंकडा केवल कोरबा की ऊर्जा उत्पादन क्षमता को ही नहीं दर्शाता बल्कि इसके साथ प्रदूषण से जुड़ी चुनौतियों को भी उजागर करता है। कोलडस्ट,धूल के साथ वाहनों का धुआं प्रदूषण का कारण
कोरबा में कोयला आधारित कई ताप विद्युत संयंत्र हैं। इनसे निकलने वाले राख के कारण प्रदूषण होता है। साथ ही यहां एसईसीएल की गेवरा, कुसमुंडा और दीपका जैसे बड़े ओपनकास्ट कोयला खदानें भी हैं।
कोयला उत्पादन के दौरान तो प्रदूषण होता ही है। खदानों से रोड सेल के जरिए कोयला परिवहन के दौरान भी भारी मात्रा में कोल डस्ट हवा में फेफड़े में समाता है।
खदान क्षेत्र के रिहायशीय कॉलोनी में तो हर दिन कोल डस्ट के उड़ते गुबार को देख सकते हैं। वहीं समय के साथ कोरबा की सड़कों पर भारी वाहनों के साथ ही हल्के व दुपहिया वाहनों का भी दबाव बढ़ा है। इन वाहनों से उत्सर्जित धुआं भी प्रदूषण का बड़ा कारण है।