चिट्ठी बनी पुनर्मिलन की वजह
परिजनों को पिछले मंगलवार एक चिट्ठी मिली, जिसमें शायर सिंह ने खुद को पंजाब के बठिंडा जिले के फूल कस्बे में होने की जानकारी दी और मिलने के लिए बुलाया। पहले तो परिवार को धोखे की आशंका हुई, लेकिन स्थानीय रिश्तेदारों की मदद से जब वे फूल कस्बे पहुंचे तो वहां वाकई शायर सिंह मिल गया। वह वहां एक परचूनी की दुकान चला रहा था और वर्षों से अपना जीवन पंजाबी परिवेश में व्यतीत कर रहा था। परिजनों को देखकर उसने कहा, अब मेरा अंतिम समय है, मेरी संपत्ति आप संभाल लो। इस पर भाई रामचंद्र सिंह ने भावुक होकर कहा, हमारे लिए तू ही सबसे बड़ी संपत्ति है। शुक्रवार को जब शायर सिंह गांव पहुंचा, तो पत्नी शकुंतला कंवर और अन्य परिजनों ने उसका भावनात्मक स्वागत किया। परिजनों ने बताया कि अब उसकी भाषा और रहन-सहन पूरी तरह पंजाबी हो चुका है।
पत्नी ने सही विरह वेदना
परिवार के अनुसार शायर सिंह की शादी 1982 में मायापुर पुष्कर की शकुंतला कंवर से हुई । शादी के कुछ महीने बाद, अप्रेल 1983 में वह अचानक घर छोड़कर चला गया। पूर्व सरपंच रामचंद्र सिंह ने बताया, भाई की तलाश में करीब 15 लाख रुपए खर्च कर दिए। माता केसर कंवर बेटे के वियोग में इस दुनिया से चली गईं। पत्नी विरह की वेदना सहती रही।42 साल में में ना पति ने दूसरी शादी की ना ही पत्नी ने।
ठाकुर जी की कृपा
वहीं शायर सिंह की पत्नी शकुंतला कंवर ने बताया कि पति के जाने के बाद उसने ठाकुर जी की भक्ति में खुद को समर्पित कर दिया। शुक्रवार को पति की घर वापसी को उन्होंने ठाकुर जी की कृपा बताया।