डेडवा से रॉवॉटर की पंपिंग
नर्मदा मुख्य केनाल के अंतर्गत डेडवा में 29.5 आरडी से ईआर प्रोजेक्ट के तहत पालड़ी सोलंकिया तक रॉ वॉटर की पंपिंग हो रही है। यह पानी डेडवा से पालड़ी सोलंकियान आरडब्ल्यूआर तक पहुंच रहा है। इस प्रोजेक्ट में अब तक अरणाय, डीगांव, करड़ा, भाटिप, भीनमाल, रामसीन समेत 19 गांव-कस्बों में सप्लाई हो रहा है।पालड़ी में बना है पूरा स्ट्रक्चर
पालड़ी सोलंकियान तक नर्मदा परियोजना के ‘ई’ रेगुलेटर से पानी पंप होकर पहुंच रहा है। आरडब्ल्यूआर (रॉ वॉटर रिजर्ववायर), फिल्टर प्लांट, सीडब्ल्यूआर (क्लीन वॉटर रिजर्ववायर) और पंपिंग स्टेशन बने हुए हैं। मई माह से रॉ वॉटर रिजर्ववायर में पानी का भराव शुरु किया गया।10 बैड का फिल्टर प्लांट
नर्मदा ईआर मैन ट्रांसमिशन और कलस्टर के 306 गांवों के लिए यह प्रोजेक्ट बना हुआ है। उसी के अनुरूप 10 बैड का फिल्टर प्लांट बनाया गया है। विभागीय जानकारी के अनुसार यहां से अभी 19 गांवों में फिल्टर पानी पहुंचाया जा रहा है।15 एमएलडी पानी का उपयोग पेयजल में
ईआर प्रोजेक्ट एक्सईएन बलवीर सैनी के अनुसार वर्तमान में 15 एमएलडी पानी पेयजल स्कीम में काम आ रहा है। 45 एमएलडी पानी को पालड़ी सोलंकियान में आरडब्ल्यूआर में स्टॉक किया जा रहा है।जालोर से भी जुड़ा ईआर कलस्टर प्रोजेक्ट
ईआर कलस्टर प्रोजेक्ट से जालोर शहर से मात्र 5 किमी दूरी पर रणछोड़नगर क्षेत्र तक पानी पहुंचना है। इस प्रोजेक्ट से बागरा, आकोली, नारणावास, भागली समेत आस पास के गांव भी लाभान्वित होंगे। बता दें जालोर शहर को वर्तमान में नर्मदा परियोजना के एफआर प्रोजेक्ट से पानी मिल रहा है।अधिकारियों की फील्ड मॉनिटरिंग की कमी से दिक्कत
नर्मदा परियोजना के तहत जालोर जिले में डीआर, ईआर और एफआर प्रोजेक्ट है। सभी प्रोजेक्ट तय समय से देरी से ही शुरु हुए और देरी से ही पूरे हुए। वर्तमान में ईआर प्रोजेक्ट में भी विभागीय अधिकारियों पर फील्ड विजिट नहीं करने के आरोप लग रहे हैं। अधिकारी विजिट का दावा कर रहे हैं, लेकिन यह धरातल से दूर हैं। सूत्रों की मानें तो नर्मदा प्रोजेक्ट के जिम्मेदार आला अधिकारी की मौजूदगी बेहतर मॉनिटरिंग को सांचौर में होनी चाहिए, लेकिन वे फील्ड विजिट नहीं कर रहे और जालोर में ही पीएचईडी आवास में निवास कर रहे हैं।इन्होंने कहा
प्रोजेक्ट धीमी गति से चल रहा है। समय समय पर प्रोजेक्ट की जांच करते हैं। कार्य को नीयत समय पर पूरा करने के लिए निर्देशित भी किया जाता है। कई बार बजट को लेकर एजेंसियों के सामने दिक्कत होती है।लिच्छुराम चौधरी, एसई, नर्मदा परियोजना (पेयजल)