सरहद पर बेटियों का अभेद्य पहरा… चौकस निगाहें और हाथ बन्दूक के ट्रेगर पर
भारत-पाकिस्तान सीमा की सुरक्षा में अब बेटियां भी मजबूत कड़ी बन चुकी हैं।


भारत-पाकिस्तान सीमा की सुरक्षा में अब बेटियां भी मजबूत कड़ी बन चुकी हैं। 400 महिला सुरक्षा प्रहरी हथियारों से लैस होकर दुश्मन की हर चाल नाकाम कर रही हैं। रेगिस्तान की कठोर परिस्थितियों—सर्द रातें, 50 डिग्री की झुलसाने वाली गर्मी, धूल भरी आंधियां—भी इनके हौसले को नहीं डिगा पा रही हैं। ये वीरांगनाएं नाइट पेट्रोलिंग, ऑपरेशनल ड्यूटी और निगरानी में पुरुष जवानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं।
बीएसएफ में महिला बटालियन की शुरुआत 2008 में हुई थी। शुरुआती जिम्मेदारी सीमावर्ती गांवों में महिलाओं की तलाशी तक सीमित थी, लेकिन अब ये हर ऑपरेशन का हिस्सा हैं। जैसलमेर और आसपास के बॉर्डर पोस्ट पर तैनात महिला सैनिक ऊंटों पर गश्त करते हुए 12-12 घंटे तक ड्यूटी निभा रही हैं और संदिग्ध गतिविधियों पर पैनी नजर रख रही हैं।
महिला सैनिकों के लिए विशेष बैरक बनाए गए हैं, जिनमें आठ-आठ जवानों के रहने की व्यवस्था, विश्राम स्थल, मनोरंजन कक्ष, प्राइवेसी रूम और लॉन शामिल हैं। सैनिकों का कहना है कि परिवार और समाज के सहयोग से उनका मनोबल और बढ़ा है, जिससे वे पूरी निष्ठा के साथ सरहद की रक्षा कर पा रही हैं। यह जज़्बा साबित करता है कि सीमा सुरक्षा में बेटियां भी अब अभेद्य दीवार बन चुकी हैं।
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