scriptजन्माष्टमी पर नगर आराध्य लक्ष्मीनाथ मंदिर में उमड़ती है कृष्ण भक्तों की श्रद्धा | On Janmashtami, the devotion of Krishna devotees overflows in the city's revered Lakshminath temple | Patrika News
जैसलमेर

जन्माष्टमी पर नगर आराध्य लक्ष्मीनाथ मंदिर में उमड़ती है कृष्ण भक्तों की श्रद्धा

जैसलमेर में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को धूमधाम से मनाए जाने की परम्परा प्राचीन है।

जैसलमेरAug 14, 2025 / 08:38 pm

Deepak Vyas

जैसलमेर में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को धूमधाम से मनाए जाने की परम्परा प्राचीन है। इसका बड़ा कारण यह है कि यहां के राजा कृष्णवंशी कहलाते रहे हैं। यहां के इतिहासकारों ने जैसलमेर के राजवंश का सीधा संबंध श्रीकृष्ण से जोड़ा है। जैसलमेर रियासत के दौरान पूर्व राजपरिवार के आराध्य देव भगवान लक्ष्मीनाथ रहे हैं, जिनका सोनार दुर्ग पर सदियों पुराना भव्य मंदिर स्थित है। पीत पाषाणों के बड़े-बड़े खंडों से निर्मित इस मंदिर में जन्माष्टमी के मौके पर कृष्ण की भक्ति में डूबे भक्तजन सुमधुर भजनों व गीतों का गायन कर भगवान के अवतार लेने के समय मानो किसी और लोक व समय में पहुंच जाते हैं। जन्माष्टमी के दिन सुबह से मंदिर में विशेष रौनक देखते ही बनती है। रात होते-होते मंदिर में पग धरने को जगह नहीं मिलती। मध्यरात्रि जब कन्हैया का जन्म होता है, उस समय नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की, जैसे जयघोष से सारा वातावरण गुंजायमान हो जाता है। शहर भर से कृष्ण भक्त जन्माष्टमी की झांकी के दर्शन करने लक्ष्मीनाथ मंदिर पहुंचते रहे हैं। लक्ष्मीनाथ मंदिर के अलावा गिरधारीजी व मदनमोहनजी के मंदिरों में भी जन्माष्टमी बहुत धूमधाम से मनाई जाती है।

राज्य के मालिक लक्ष्मीनाथ भगवान

लक्ष्मीनाथ यहां धन, यश, सुख एवं शांति के प्रतीक के रूप में पूजनीय है व इस मंदिर का इतिहास एवं स्थापत्य कला बेजोड़ है। जैसलमेर के चन्द्रवंशी भाटी महारावल भगवान लक्ष्मीनाथ को राज्य का मालिक तथा स्वयं को राज्य का दीवान मानकर शासन किया करते थे। राज्य के समस्त पत्र व्यवहार, अनुबंधन व शिलालेखों पर सर्वप्रथम लक्ष्मीनाथजी शब्द लिख कर शुभारंभ करने की परम्परा रही है।

600 साल से ज्यादा पुराना मंदिर

दुर्ग में बने लक्ष्मीनाथ मंदिर का निर्माण महारावल बेरसी के राज्यकाल में माघ शुक्ल पंचमी को अश्वनी नक्षत्र में विक्रम संवत 1494 को हुई थी। लक्ष्मीनाथ जी की मूर्ति सफेद संगमरमर में तराशी हुई है इसका मुख पश्चिमी दिशा की ओर है तथा घुटने पर अद्र्धांगिनी देवी लक्ष्मी विराजमान है। मूर्ति का सिर, कान, हाथ, कमर, पांव स्वर्णाभूषणों एवं विविध वस्त्रों आदि से सजे संवरे है। बहुमूल्य रतनों, सोने चांदी के बर्तनों, आभूषणों से लक्ष्मीनाथ जी का भंडार भरा है। लोग व्यावसायिक गतिविधियां शुरू करने से पूर्व लक्ष्मीनाथ से मन्नत मांगते थे। जब मन्नत पूर्ण हो जाती थी तब वे भगवान लक्ष्मीनाथ के चरणों में खुलकर बहूमूल्य श्रद्धासुमन अर्पित करते थे। शाकद्वीपीय भोजक ब्राह्मण मसूरिया सेणपाल के वंशज इसके पुजारी हैं। मंदिर सुबह और सायं खुलता है। दिन में कुल पांच आरतियां की जाती हैं। परंपरानुसार लक्ष्मीनाथजी को दूध के मावे का पेड़ा प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।

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