राज्य के मालिक लक्ष्मीनाथ भगवान
लक्ष्मीनाथ यहां धन, यश, सुख एवं शांति के प्रतीक के रूप में पूजनीय है व इस मंदिर का इतिहास एवं स्थापत्य कला बेजोड़ है। जैसलमेर के चन्द्रवंशी भाटी महारावल भगवान लक्ष्मीनाथ को राज्य का मालिक तथा स्वयं को राज्य का दीवान मानकर शासन किया करते थे। राज्य के समस्त पत्र व्यवहार, अनुबंधन व शिलालेखों पर सर्वप्रथम लक्ष्मीनाथजी शब्द लिख कर शुभारंभ करने की परम्परा रही है।
600 साल से ज्यादा पुराना मंदिर
दुर्ग में बने लक्ष्मीनाथ मंदिर का निर्माण महारावल बेरसी के राज्यकाल में माघ शुक्ल पंचमी को अश्वनी नक्षत्र में विक्रम संवत 1494 को हुई थी। लक्ष्मीनाथ जी की मूर्ति सफेद संगमरमर में तराशी हुई है इसका मुख पश्चिमी दिशा की ओर है तथा घुटने पर अद्र्धांगिनी देवी लक्ष्मी विराजमान है। मूर्ति का सिर, कान, हाथ, कमर, पांव स्वर्णाभूषणों एवं विविध वस्त्रों आदि से सजे संवरे है। बहुमूल्य रतनों, सोने चांदी के बर्तनों, आभूषणों से लक्ष्मीनाथ जी का भंडार भरा है। लोग व्यावसायिक गतिविधियां शुरू करने से पूर्व लक्ष्मीनाथ से मन्नत मांगते थे। जब मन्नत पूर्ण हो जाती थी तब वे भगवान लक्ष्मीनाथ के चरणों में खुलकर बहूमूल्य श्रद्धासुमन अर्पित करते थे। शाकद्वीपीय भोजक ब्राह्मण मसूरिया सेणपाल के वंशज इसके पुजारी हैं। मंदिर सुबह और सायं खुलता है। दिन में कुल पांच आरतियां की जाती हैं। परंपरानुसार लक्ष्मीनाथजी को दूध के मावे का पेड़ा प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।