वन्यजीवों के लिए जिये… उन्हीं को बचाते हुए चल बसे
23 मई की रात एक सूचना आई कि चांधन क्षेत्र के सोजिया गांव के पास हिरण का शिकार हो रहा है। राधेश्याम ने एक पल की भी देर नहीं की। साथियों के साथ निकल पड़ा। लेकिन ट्रक की टक्कर से अपने तीन साथियों श्याम विश्नोई, कंवराजसिंह भाटी व वनरक्षक सुरेन्द्र चौधरी के साथ जान चली गई।
2015 से चला सफर, जीवन को बनाया मिशन
राधेश्याम ने 2015 में महज 18 साल की उम्र में वन्यजीव संरक्षण का बीड़ा उठाया। जहां औरों की सोच कॅरियर और कमाई के इर्द-गिर्द घूमती है, वहीं राधेश्याम की दुनिया थी घायल पक्षी, प्यासा हिरण और शिकारियों से डरते गोडावण। धोलिया, भादरिया, खेतोलाई, लाठी, सोढ़ाकोर जैसे पशु बहुल इलाकों में वे रोज अपने साथियों के साथ गश्त करते। कोई पक्षी घायल मिलता, तो उसे घर लाकर उपचार करते। जब वो ठीक होता, तब उसे फिर से खुले आसमान में छोड़ देते। उनके हाथों से सैकड़ों चिंकारा, गिद्ध, बाज, कुरजां, लोमड़ी, खरगोश, ऊंट और गायों का रेस्क्यू हुआ। उन्हें न केवल बचाया, बल्कि उनका सहारा भी बने।
प्यास से मरते वन्यजीवों के लिए बना दिए 50 जलकुंड
तपती रेत में जानवरों को पानी की तलाश होती है। छोटे तालाब सूख जाते हैं और जंगलों में कोई स्रोत नहीं बचता। राधेश्याम ने इस पीड़ा को महसूस किया और 2018 में एक सपना देखा च्रेगिस्तान में हर जीव को पानी मिलेज्। उन्होंने अपने संसाधनों से भादरिया, धोलिया, लाठी और आसपास के जंगलों में 50 से अधिक जलकुंड बनवाए। टैंकर मंगवाकर पानी भरवाते, ताकि कोई भी पशु-पक्षी प्यासा न मरे।
शिकार पर लगाई लगाम
राधेश्याम केवल सेवा तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने शिकार रोकने के लिए कानून का सहारा लिया। कई शिकारियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज करवाई। वन विभाग के साथ मिलकर गोडावण संरक्षण के लिए सुरक्षित जोन विकसित किए, जिससे इस विलुप्तप्राय पक्षी की संख्या में इजाफा हुआ।