शुरुआत में थी अच्छी उपज की उम्मीदें, अब चिंता की लकीरें
इस वर्ष मानसून की शुरुआत अनुकूल रही थी। प्रि-मानसून और मानसून के पहले दौर में अच्छी बारिश होने से किसानों ने समय से पहले खरीफ की बुआई कर ली। जुलाई में पर्याप्त नमी और पानी मिलने से खेत लहलहा उठे। बाजरा और ग्वार की बढ़वार देखकर किसानों के चेहरों पर संतोष और सुकाल की उम्मीदें साफ झलक रही थी। यही नहीं मूंग, मोठ की फसल भी बढऩे लगी थी, लेकिन अगस्त लगते ही बादल जैसे गायब हो गए। गत 25 दिनों में एक बार भी बारिश नहीं हुई है। जिससे फसलों में खराबे का संकट है।
बारिश दे सकती है जीवनदान
किसानों ने बताया कि बाजरा, ग्वार, मूंग व मोठ की की फसल बढऩे लगी थी, लेकिन अब बारिश नहीं होने से सूखने लगी है। फसलों को अब बारिश की आवश्यकता है। समय पर बारिश ही फसलों को जीवनदान दे सकती है। यदि सितंबर की शुरुआती दिनों तक बारिश नहीं होती है तो फसलों में नुकसान की आशंका है।
पशुपालन पर भी पड़ेगा असर
पोकरण और आसपास के सरहदी इलाकों में कृषि के साथ पशुपालन भी प्रमुख जीविकोपार्जन का साधन है। खेतों में हरियाली खत्म होने से पशुओं के लिए हरे चारे की भारी कमी हो जाएगी। चारे का संकट बढऩे पर पशुपालकों के सामने भी समस्या उत्पन्न हो जाएगी।