दुनिया की सबसे ऊंची 3D-प्रिंटेड इमारत बनी – दिखती है जैसे एक शादी का केक
स्विट्ज़रलैंड के एक शांत पहाड़ी गांव मुलेग्न्स में अब एक सफेद ऊंची मीनार खड़ी है और यह दुनिया की सबसे ऊंची 3D-प्रिंट की गई इमारत है।


शालिनी अग्रवाल जयपुर। स्विट्जरलैंड के एक शांत पहाड़ी गांव मुलेग्न्स (जिसकी आबादी सिर्फ 11 है) में अब एक सफेद ऊंची मीनार खड़ी है, जो चार मंजिल ऊँची है – और यह दुनिया की सबसे ऊँची 3D-प्रिंट की गई इमारत है। आप सोच सकते हैं कि ऐसी आधुनिक तकनीक की इमारत शायद अमेरिका की सिलिकॉन वैली या स्विट्ज़रलैंड के मशहूर शहर *डावोस* में बनाई गई होगी, लेकिन इसके बजाय, लोग दूर-दूर से *मुलेग्न्स* आ रहे हैं यह अद्भुत ‘Tor Alva’ (सफेद मीनार) देखने।
इमारत का पर्दा एक हेलिकॉप्टर से हटाया गया, और इसके बाद यह खूबसूरत ढांचा स्विस आल्प्स की पहाड़ियों में एक कलाकृति की तरह नजर आने लगा।
यह मीनार न केवल एक शानदार डिज़ाइन है, बल्कि यह तकनीकी और सांस्कृतिक रूप से भी एक बड़ा कदम है, और मुलेग्न्स जैसे छोटे गांव को फिर से जीवंत बनाने की कोशिश का हिस्सा है।
इस परियोजना का नेतृत्व Origen सांस्कृतिक संस्था* ने किया, और इसे यूरोप के सबसे प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान ETH Zurich के साथ मिलकर बनाया गया है। यह मीनार अब रोजाना घूमने के लिए खुली रहेगी और जुलाई से यहां नाट्य प्रस्तुतियां भी होंगी। इसे कम से कम 5 साल तक यहीं रहने की योजना है।
इस इमारत का डिज़ाइन एक सजावटी परतदार केक जैसा दिखता है। यह डिज़ाइन **ग्राऊबुंडन** क्षेत्र के उन लोगों को सम्मान देता है जो पहले यूरोप भर में मिठाइयाँ बनाने का काम करने बाहर गए थे।
इमारत की ऊंचाई तक 32 सफेद कंक्रीट के खंभे ऊपर की ओर पतले होते जाते हैं और पेड़ की शाखाओं जैसे फैलते हुए ऊपर गुंबद बनाते हैं।
इसका डिज़ाइन आर्किटेक्ट माइकल हांसमायर और प्रोफेसर बेंजामिन डिलेनबर्गर ने किया है। उन्होंने पारंपरिक निर्माण पद्धति के बजाय एक रोबोट द्वारा लेयर-बाय-लेयर कंक्रीट लगाने की तकनीक अपनाई, जिससे कोई सांचा (mold) बनाने की ज़रूरत नहीं पड़ी।
इसके लिए खास किस्म का कंक्रीट भी तैयार किया गया जिसे प्रोफेसर रॉबर्ट फ्लैट ने बनाया। यह इतना मुलायम था कि जटिल आकृतियाँ बन सके, और इतना मजबूत भी कि अगली परत को सहारा दे सके।
ETH Zurich के अध्यक्ष जोएल मेसोट ने कहा: “यह मीनार रिसर्च और औद्योगिक विशेषज्ञता का बेहतरीन उदाहरण है। इससे हमारे शोधकर्ताओं को व्यावहारिक अनुभव भी मिला।”
इस परियोजना में सबसे खास बात यह है कि पहली बार 3D-प्रिंटेड ढांचा न सिर्फ दिखने में सुंदर है, बल्कि यह खुद भी पूरा वजन सहने में सक्षम है। अब तक ऐसा मुमकिन नहीं था क्योंकि मज़बूती के लिए कोई अच्छा तरीका नहीं था। लेकिन अब ETH के प्रोफेसरों ने एक नई तकनीक से यह संभव बना दिया।
एक रोबोट कंक्रीट की परतें लगाता है, और दूसरा बीच-बीच में रिंग जैसी मजबूत संरचनाएं रखता है। इसके बाद लंबी छड़ों (rebars) को डाला जाता है जो पूरी इमारत को मजबूती देती हैं।
इस तकनीक को “growing reinforcement” कहा गया है। इस पूरी प्रक्रिया में 5 महीने लगे और सभी हिस्सों को बनाकर सड़क मार्ग से मुलेग्न्स लाया गया।
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