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जयपुर

Rajasthan Farmers: इस फसल की खेती से किसान बन रहे लखपति, 2 बीघा जमीन से ले रहे 12 लाख की पैदावार, जानिए कैसे

राजस्थान के किसान मोहन लाल नागर ने परंपरागत खेती छोड़ सफेद मूसली की खेती शुरू की है। अब वे 2 बीघा जमीन से 12 लाख रुपए की पैदावार ले रहे हैं। जानिए कैसे होती है सफेद मूसली की खेती।

जयपुरJul 30, 2025 / 06:05 pm

Santosh Trivedi

safed musli
राजस्थान के टोंक जिले के सोप कस्बे के किसान मोहन लाल नागर ने परंपरागत खेती छोड़ सफेद मूसली की खेती शुरू की है। अब वे 2 बीघा जमीन से 12 लाख रुपए की पैदावार ले रहे हैं। सफेद मूसली एक औषधीय पौधा है। इसका उपयोग कमजोरी दूर करने, स्तनपान कराने वाली महिलाओं में दूध बढ़ाने और अस्थि रोगों में होता है। यह आर्थराइटिस, कैंसर, मधुमेह और नपुंसकता जैसी बीमारियों में भी उपयोगी है।

जून-जुलाई में की जाती है बुआई

एक एकड़ में सफेद मूसली की खेती से 20 से 24 लाख रुपए तक की कमाई हो सकती है। एक बीघा में 6 लाख रुपए तक की पैदावार ली जा रही है। नीमच मंडी और इंदौर के सियागंज में इसकी अच्छी कीमत मिलती है। बाजार में इसका भाव एक लाख से डेढ़ लाख रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंचता है। कभी-कभी यह 1000 से 1500 रुपए प्रति किलो तक बिकती है। सफेद मूसली की बुआई जून-जुलाई में की जाती है। बारिश के मौसम में इसकी खेती उपयुक्त मानी जाती है।
farmers
सिंचाई की सुविधा हो तो इसे कभी भी लगाया जा सकता है। फसल 6 से 9 महीने में तैयार हो जाती है। कटाई नहीं होती, इसे जमीन से उखाड़ा जाता है। एक एकड़ में करीब 80 हजार पौधे लगाए जाते हैं। इनमें से 70 हजार पौधे भी बचे तो 21 क्विंटल तक मूसली मिलती है। सूखने के बाद यह 4 क्विंटल रह जाती है।इस खेती में मुनाफा 60 प्रतिशत से अधिक होता है।

Safed Musli: खेती पर सरकार से मिलता है अनुदान

परंपरागत फसलों की तुलना में 8 गुना अधिक आय होती है। सरकार भी सफेद मूसली की खेती पर अनुदान देती है। इसके लिए जिला उद्यान कार्यालय से जानकारी ली जा सकती है। खेती के लिए दोमट,रेतीली दोमट या लाल मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का पीएच मान 7.5 तक होना चाहिए। 8 पीएच से अधिक वाली भूमि में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए।
खेत में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए। अधिक समय तक पानी भरा रहना नुकसानदायक होता है। बुवाई के लिए गूदेदार जड़ों के टुकड़े उपयोग में लिए जाते हैं। एक बीघा के लिए 4 से 6 क्विंटल जड़ों की जरूरत होती है। बीज के लिए 5 से 10 ग्राम के टुकड़े उपयुक्त माने जाते हैं। पौधे की ऊंचाई 40 से 50 सेंटीमीटर होती है।

इस वजह से सफेद मूसली की तेजी से बढ़ रही मांग

Farmers are now waiting for pre-monsoon, the target of Kharif sowing is 4.44 lakh hectares
जड़ें जमीन के अंदर 8 से 10 सेंटीमीटर तक जाती हैं। अच्छी परिस्थितियों में एक बीघा से 12 से 20 क्विंटल तक गीला कंद मिलता है। सूखने के बाद यह 3 से 4 क्विंटल रह जाता है। देश-विदेश की दवा कंपनियां इसकी खरीद करती हैं। इसका मांग के अनुसार उत्पादन नहीं हो पा रहा है। औषधीय गुणों के कारण इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। किसान अब जैविक खाद और आधुनिक तकनीक से इसका उत्पादन कर रहे हैं। फसल विविधीकरण से जमीन की उर्वरता भी बनी रहती है।
मोहन लाल नागर अब 14 बीघा में सफेद मूसली, अश्वगंधा, मोरिंगा, अकरकरा, स्टीविया जैसी औषधीय फसलें उगा रहे हैं। वे किसानों को बीज से लेकर बाजार तक की सुविधाएं दे रहे हैं। ताकि किसानों को औषधीय खेती में कोई परेशानी न हो। सोप ग्राम पंचायत निवासी मोहन नागर अब तक 500 से ज्यादा किसानों को सफेद मूसली, अश्वगंधा, अकरकरा, मोरिंगा, कालमेघ, स्टीविया, सतावर जैसी औषधीय फसलों की निशुल्क ट्रेनिंग दे चुके हैं।

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