‘क्या आपने सुनी है वो पुकार? ‘मेहरानगढ़ किला’ जहां दीवारें भी कहानियां कहती हैं’
Mehrangarh Fort: किले के द्वारों पर आज भी तलवारों के निशान मौजूद हैं। जहां रानियों ने सती होने से पहले अपने हाथों की छाप छोड़ी थी। वे आज भी दीवारों पर अमर रूप से अंकित हैं।
Mehrangarh Fort: राजस्थान का नाम आते ही आंखों के सामने एक चित्र उभरता है, जो कुछ इस तरह होता है। सैकड़ों-हजारों किलोमीटर में फैला सुनहरा मरुस्थल, रंग-बिरंगे परिधान, ऊंटों की धीमी चाल और पुरातन महलों की भव्यता। लेकिन इन सबमें जोधपुर का मेहरानगढ़ किला एक ऐसा स्थान है, जो समय की छाती पर बना शौर्य, संस्कृति और रहस्य का प्रतीक है।
लोक कथाओं के मुताबिक, 1459 ई. में जब राठौड़ वंश के राजा राव जोधा ने मंडोर की असुरक्षित राजधानी को छोड़कर एक नए गढ़ की कल्पना की, तब उन्होंने जोधपुर शहर की नींव डाली। एक उपयुक्त स्थान की तलाश उन्हें चिड़ियाटुंक नाम की एक ऊंची चट्टान पर ले आई, जहां अब यह किला मौजूद है।
किले के भीतर श्राप की कहानी
बताया जाता है कि जहां पर राजा राव जोधा पहुंचे वह चट्टान निर्जन और वीरान थी। वहां एक संत चिड़ियानाथ तपस्या कर रहे थे। उन्हें हटाया गया और कहा जाता है कि उन्होंने श्राप दिया- “यह किला और नगर जल संकट से घिरा रहेगा।” इस श्राप को शांत करने के लिए एक स्थानीय युवक राजा राम मेघवाल ने खुद को दीवारों में जीवित चिनवाने की सहमति दी। उसकी बली को आज भी किले के भीतर याद किया जाता है।
400 फीट ऊंची पहाड़ी पर बना है किला
मेहरानगढ़ किला केवल एक युद्ध-स्थल नहीं, बल्कि स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह किला लगभग 400 फीट ऊंची चट्टान पर फैला है। किले की दीवारें इतनी विशाल हैं कि किसी समय तोपों के प्रहार को भी सहने में सक्षम थीं।
किले के प्रमुख महल
मोती महल: राजा का दरबार, जहां दीवारों पर चमचमाते दर्पण और सोने की झालरें बसी हैं। फूल महल: निजी महफिलों के लिए बना, जहां संगीत और कविता की साजिशें गूंजती थीं।
शीश महल: कांच की नक्काशी और प्रकाश का अद्भुत खेल इसे चमत्कारी बनाते हैं। तख्त विलास: आधुनिक काल के अंतिम राजाओं का निवास स्थान।
युद्ध और वीरता, जहां तलवारें बोलती थीं
मेहरानगढ़ किला अनेक युद्धों का साक्षी रहा है। मुगलों से संधियां, मराठों के आक्रमण, और अंग्रेजी हुकूमत के साथ किए गए राजनीतिक समझौते। हर समय यह किला एक सेनापति की तरह अडिग रहा।
दीवारों पर रानियों के हाथ के छाप
किले के द्वारों पर आज भी तलवारों के निशान मौजूद हैं। विशेषकर जयपोल पर युद्धों की स्मृति में बनवाया गया था। एक अन्य द्वार लोहा पोल है, जहां रानियों ने सती होने से पहले अपने हाथों की छाप छोड़ी थी। वे आज भी दीवारों पर अमर रूप से अंकित हैं।
इतिहास का जीवित दस्तावेज
किले के भीतर स्थित संग्रहालय भारत के सबसे समृद्ध संग्रहालयों में से एक है। यहां राठौड़ वंश की हजारों वस्तुएं संरक्षित हैं। जिसमें शाही वस्त्र और गहने, युद्ध के हथियार, खांडास, कटार, बर्छी, पालकियां, हाथी की हौदियां, रथ, दुर्लभ पांडुलिपियां और चित्रकारी शामिल हैं।
नीचे दिखता है नीला शहर
जब आप किले की प्राचीर से नीचे नजर डालते हैं, तो नीला शहर नजर आता है। नीले मकान केवल सुंदरता के लिए नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और वैज्ञानिक कारणों से रंगे गए थे। यह ब्राह्मणों की पहचान थी और नीला रंग गर्मी को कम करने में भी सहायक होता है।
सांस्कृतिक उत्सव का होता है आयोजन
मेहरानगढ़ अब केवल इतिहास नहीं, बल्कि जीवंत संस्कृति का प्रतीक बन चुका है। यहां सालाना RIFF (Rajasthan International Folk Festival) आयोजित होता है, जहां विश्वभर के कलाकार संगीत और नृत्य के माध्यम से आत्माओं को छू जाते हैं। इसके अलावा यहां विश्व स्तर की फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है। The Dark Knight Rises फिल्म से किले को वैश्विक पहचान मिली।