बता दें कि हालात ये हैं कि अगर कोई वाहन आपको टक्कर मारकर भाग जाए तो उसका पता लगना किस्मत और किसी निजी कैमरे की मेहरबानी पर ही निर्भर है। सरकारी कैमरे न अपराध पकड़ पा रहे हैं और न ही अपराधी।
व्यक्ति झूठ बोल सकता है, कैमरा नहीं
शहर भर में करोड़ों रुपए खर्च कर लगाए गए सरकारी सीसीटीवी कैमरे न तो हादसों को ठीक से कैद कर पा रहे हैं और न ही दुर्घटनाग्रस्त वाहनों की पहचान में पुलिस की मदद कर पा रहे हैं। सवाल यह उठता है कि यदि वीवीआइईपी मूवमेंट के दौरान हादसा हो जाए, तब भी यही बहाना चलेगा कि कैमरे धुंधले हैं?
दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए केवल कानून नहीं, एक मजबूत और सक्रिय निगरानी तंत्र भी जरूरी है। लाखों रुपए खर्च कर शहर में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, लेकिन यदि वही कैमरे धुंधली तस्वीरें दें, तो सवाल उठना लाजमी है। यदि दुर्घटना के सबूत ही स्पष्ट न हों, तो कैमरे लगाने वाले अधिकारियों पर भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। क्योंकि व्यक्ति झूठ बोल सकता है, लेकिन सीसीटीवी फुटेज झूठ नहीं बोलती।
-दीपक चौहान, अधिवक्ता, राजस्थान हाईकोर्ट
कुछ ताजा घटनाएं, जो खोलती हैं सिस्टम की पोल
-23 जून- टोंक रोड: दामोदर लाल महावर (61) को सुबह 6 बजे साइकिल पर जाते समय बाइक ने टक्कर मारी। अगले दिन एसएमएस अस्पताल में मौत।
पुलिस का जवाब: सीसीटीवी कैमरे में बाइक का नंबर नहीं दिख रहा।
पुलिस का जवाब: कैमरे की फुटेज में कार का नंबर नहीं दिख रहा।