बता दें, कमेटी ने मजारों की तस्वीरें खींचीं और वीडियो रिकॉर्डिंग की, ताकि तथ्यों के आधार पर निष्पक्ष जांच रिपोर्ट तैयार की जा सके। सूत्रों के अनुसार, यह कमेटी मंगलवार, 8 जुलाई 2025 को अपनी रिपोर्ट जिला कलेक्टर को सौंप सकती है। इस रिपोर्ट के आधार पर प्रशासन इस संवेदनशील मामले में आगे का निर्णय लेगा।
जांच कमेटी का गठन और सदस्य
विवाद के तूल पकड़ने के बाद जिला कलेक्टर ने 3 जुलाई को छह सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी में एसडीएम जयपुर राजेश जाखड़, ग्रेटर नगर निगम के उपायुक्त प्रियव्रत चारण, सहायक पुलिस उपायुक्त बलराम जाट, आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट के अधीक्षक नीरज त्रिपाठी, राजस्थान यूनिवर्सिटी के सुभाष बैरवा और महारानी कॉलेज की प्रिंसिपल प्रो. पायल लोढ़ा शामिल हैं। कमेटी को चार दिनों के भीतर अपनी जांच पूरी कर रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए गए थे। कमेटी कॉलेज के सीसीटीवी फुटेज खंगाल रही है और पूर्व कर्मचारियों व छात्राओं के बयान भी दर्ज करेगी। मंगलवार को कमेटी ने प्रिंसिपल के कक्ष में बैठक भी की।
क्या है मजार का पूरा विवाद?
महारानी कॉलेज में मौजूद तीन मजारों की वैधता और उनके निर्माण को लेकर हाल के दिनों में बहस तेज हुई है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े छात्रों ने इन मजारों के निर्माण का विरोध किया, जिसके बाद मामला सियासी रंग लेने लगा। कांग्रेस विधायक अमीन कागजी ने दावा किया कि ये मजारें करीब 165 साल पुरानी हैं और इसके ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं। उन्होंने सरकार से आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट के रिकॉर्ड की जांच कर सत्यता उजागर करने की मांग की। कागजी ने आरोप लगाया कि धार्मिक स्थलों को राजनीतिक लाभ के लिए निशाना बनाया जा रहा है, जो सामाजिक सौहार्द के लिए हानिकारक है।
कागजी के दावों पर जयपुर शहर की सांसद मंजू शर्मा ने सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अगर विधायक के पास 165 साल पुराने प्रमाण हैं, तो अब तक ये बात क्यों छिपाई गई? दूसरी ओर, बीजेपी विधायक गोपाल शर्मा और कांग्रेस के मुख्य सचेतक रफीक खान ने भी इस मुद्दे पर बयान दिए, जिससे विवाद और गहरा गया। कागजी ने प्रशासन से मांग की कि ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का सम्मान किया जाए और बिना तथ्यों के कोई कार्रवाई न हो।
कमेटी की जांच से खुलेगा सच
जांच कमेटी की रिपोर्ट से यह स्पष्ट होने की उम्मीद है कि मजारें कितनी पुरानी हैं और इनका निर्माण कब और कैसे हुआ। कमेटी की जांच ही इस संवेदनशील मामले में प्रशासन के अगले कदम तय करेंगे। यह विवाद न केवल कॉलेज प्रशासन बल्कि पूरे प्रदेश में भी चर्चा का विषय बना हुआ है।