दरअसल, चित्तौड़गढ़ के एक व्यक्ति ने कोटा की युवती से 29 अप्रैल, 2013 को विवाह किया। विवाह के कुछ ही समय बाद पत्नी के व्यवहार में असामान्य बदलाव दिखने लगे। इस दौरान युवती अजीब हरकतें करती थी, साथ ही उसका हांथ हिलता रहता था। पति को उसके सामान में एक डॉक्टर की पर्ची मिली, जिससे पता चला कि वह पहले से इलाजरत थी। पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी स्किजोफ्रेनिया से पीड़ित थी और यह बात जानबूझकर छुपाई गई।
पारिवारिक अदालत से पति को लगा था झटका
मामले की जानकारी होने के बाद पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 12 के तहत विवाह को शून्य घोषित करने की मांग को लेकर कोर्ट में याचिका दायर कर दी। कोटा की पारिवारिक अदालत ने 28 अगस्त 2019 को उसकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद पति ने हाईकोर्ट में अपील की, जहां से उसे न्याय मिला।
महिला ने दर्ज कराया दहेज प्रताड़ना का केस
दूसरी तरफ महिला ने कोटा के पारिवारिक अदालत में कहा कि उसे कोई गंभीर मानसिक बीमारी नहीं है, बल्कि शादी से पहले एक पारिवारिक दुर्घटना के कारण उसे अस्थायी अवसाद (डिप्रेशन) हुआ था। साथ ही, उसने पति और ससुराल वालों पर दहेज मांगने और प्रताड़ित करने का भी आरोप लगाया।
कोर्ट ने कहा वैवाहिक अधिकार का हनन
जस्टिस इंदरजीत सिंह और जस्टिस आनंद शर्मा की खंडपीठ ने मेडिकल रिकॉर्ड, गवाहों और साक्ष्यों के आधार पर माना कि महिला विवाह से पहले स्किजोफ्रेनिया से पीड़ित थी और दवा ले रही थी। कोर्ट ने इसे “गंभीर मानसिक विकार” बताया, जो वैवाहिक जीवन को गहराई से प्रभावित कर सकता है। अदालत ने इसे हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12(1)(c) के अंतर्गत “महत्वपूर्ण तथ्य को छुपाना” माना, जो विवाह को शून्य घोषित करने का वैध आधार है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने माना कि ऐसी मानसिक बीमारी वैवाहिक अधिकारों को सीधे प्रभावित करती है।
हाईकोर्ट ने सभी आपराधिक आरोपों से पति को किया मुक्त
31 जुलाई को दिए गए फैसले में हाईकोर्ट ने विवाह को शुरू से ही अमान्य (null and void) घोषित कर दिया और पति को सभी आपराधिक आरोपों व आर्थिक जिम्मेदारियों (जैसे गुजारा भत्ता, दहेज उत्पीड़न के मामले आदि) से मुक्त कर दिया।