Jaipur: एक आदेश और हजारों कबूतरों से छिन गया दाना – पानी, यह फैसला कितना सही… ?
Bird Feeding Ban Albert Hall Museum: गार्ड को निर्देश दिए गए हैं कि वे किसी भी पर्यटक या स्थानीय व्यक्ति को कबूतरों को चुग्गा डालने या पानी रखने से रोके।
Albert Hall: राजधानी जयपुर के ऐतिहासिक और प्रसिद्ध पर्यटन स्थल अलबर्ट हॉल संग्रहालय में अब कबूतरों को चुग्गा और पानी डालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह फैसला हैरिटेज की साफ-सफाई, संरक्षण और पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। यह निर्णय सोमवार से प्रभावी हो गया है और इसे सख्ती से लागू कराने के लिए सुरक्षा गार्ड भी तैनात कर दिए गए हैं।
अलबर्ट हॉल के नए क्यूरेटर महेन्द्र कुमार ने बताया कि स्मारक के आसपास कबूतरों की बढ़ती संख्या के कारण लगातार गंदगी और दुर्गंध की समस्या बनी रहती थी। कबूतरों की बीट से स्मारक की दीवारें और आसपास का क्षेत्र प्रभावित हो रहा था, जिससे हैरिटेज की मूल सुंदरता बिगड़ रही थी। साथ ही पर्यटकों को फोटो खिंचवाने, बैठने और परिसर में घूमने में भी असुविधा का सामना करना पड़ रहा था। क्यूरेटर ने कहा कि यह निर्णय विभागीय निर्देशों के तहत लिया गया है और इसका उद्देश्य स्मारक की ऐतिहासिक गरिमा बनाए रखना है। गार्ड को निर्देश दिए गए हैं कि वे किसी भी पर्यटक या स्थानीय व्यक्ति को कबूतरों को चुग्गा डालने या पानी रखने से रोके।
चुग्गा बेचने वाली महिलाओं को दी गई वैकल्पिक जगह
वर्षों से अलबर्ट हॉल के बाहर बैठकर कबूतरों के लिए चुग्गा बेचने वाली महिलाओं को भी इस आदेश के तहत अब रामनिवास बाग के प्रवेश द्वार के बाहर बैठने के निर्देश दिए गए हैं। उन्हें परिसर के भीतर चुग्गा बेचने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह महिलाएं लंबे समय से यहीं बैठकर अपना गुजर-बसर कर रही थीं, ऐसे में यह निर्णय उनके लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
पर्यटकों के लिए अनुभव होगा बेहतर
प्रशासन का मानना है कि इस फैसले के बाद पर्यटकों को स्वच्छ, शांत और व्यवस्थित माहौल मिलेगा। स्मारक की स्वच्छता और आकर्षण में वृद्धि होगी, जिससे उनकी यात्रा का अनुभव और भी बेहतर हो सकेगा।
अलबर्ट हॉल का ऐतिहासिक महत्व
गौरतलब है कि अलबर्ट हॉल संग्रहालय जयपुर के सबसे पुराने और प्रमुख संग्रहालयों में से एक है। इसका निर्माण वर्ष 1876 में वेल्स के राजकुमार अल्बर्ट एडवर्ड की यात्रा की स्मृति में किया गया था। इसे सर सैमुअल स्विंटन जैकब ने डिज़ाइन किया था। यह इंडो-सारसेनिक और यूरोपीय स्थापत्य शैली का अनूठा मिश्रण है। कई एकड़ क्षेत्र में फैला यह संग्रहालय राजस्थानी कला, संस्कृति, शिल्प और इतिहास को प्रदर्शित करता है। यहां राजस्थानी लघु चित्र, प्राचीन हथियार, पारंपरिक वस्त्र, मूर्तियाँ और मिस्र की ममी तक रखी गई है। यही वजह है कि देश-विदेश से आने वाले लाखों पर्यटक हर साल इस संग्रहालय को देखने आते हैं।
निर्णय को लेकर मिलीजुली प्रतिक्रिया
प्रशासन के इस कदम को लेकर जनता की प्रतिक्रियाएं मिश्रित हैं। एक ओर पर्यटक और हैरिटेज प्रेमी इसे स्वागत योग्य कदम बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर स्थानीय विक्रेता और कुछ नागरिक इसे रोजी-रोटी पर असर डालने वाला निर्णय मान रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी इस विषय पर बहस जारी है।
संस्कृति और संरक्षण का संतुलन जरूरी
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐतिहासिक स्थलों पर साफ-सफाई और भीड़ नियंत्रण जरूरी है, लेकिन इसके साथ-साथ स्थानीय समुदाय की आजीविका पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। आने वाले समय में प्रशासन की यह चुनौती होगी कि वह हैरिटेज संरक्षण और सामाजिक संतुलन दोनों को साथ लेकर चले।
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