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जगदलपुर

गोंचा महापर्व का आगाज़, देवस्नान पूर्णिमा पर शुरू हुआ अनसर काल

Bastar Goncha Festival 2025: बस्तर का यह पारंपरिक गोंचा पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत का जीवंत उदाहरण भी है।

जगदलपुरJun 12, 2025 / 01:38 pm

Laxmi Vishwakarma

गोंचा महापर्व का आगाज़ (Photo source- Patrika)

गोंचा महापर्व का आगाज़ (Photo source- Patrika)

Bastar Goncha Festival 2025: परंपरा और आस्था के रंग में रंगा बस्तर एक बार फिर ऐतिहासिक गोंचा पर्व की शुरुआत के साथ भक्तिमय हो गया है। रियासतकालीन परंपरा के अनुरूप इस वर्ष भी गोंचा पर्व 2025 का आगाज बुधवार को ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के पावन दिन देवस्नान पूर्णिमा चंदन जात्रा पूजा विधान से हुआ। श्रीजगन्नाथ मंदिर में 618 वां बस्तर गोंचा महापर्व अब आरंभ हो चुका है।

Bastar Goncha Festival 2025: भगवान के दर्शन इस अवधि में प्रतिबंधित

ग्राम आसना से लाए गए भगवान शालीग्राम को श्री जगन्नाथ मंदिर में विधिपूर्वक स्थापित किया गया। इसके बाद 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज द्वारा इंद्रावती नदी से लाया गया पवित्र जल, पंचामृत और चंदन से भगवान का अभिषेक किया गया। पूजा विधानों का नेतृत्व उमाशंकर पाढ़ी और राधाकांत पाणिग्राही ने किया।
जगदलपुर क्षेत्रीय अध्यक्ष विवेक पांडे ने बताया कि अनसर काल में भगवान को केवल औषधीय भोग अर्पित किया जाएगा, जिसे बाद में श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाएगा। यह प्रसाद मंदिर परिसर में प्राप्त किया जा सकेगा, लेकिन भगवान के दर्शन इस अवधि में प्रतिबंधित रहेंगे। बस्तर का यह पारंपरिक गोंचा पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत का जीवंत उदाहरण भी है, जो पीढ़ियों से विश्वास, भक्ति और सामाजिक समरसता का प्रतीक बना हुआ है।
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रथ यात्रा और अन्य पूजन कार्यक्रम

Bastar Goncha Festival 2025: बस्तर गोंचा समिति के अध्यक्ष चिंतामणी पांडे ने बताया कि तय कार्यक्रम के अनुसार 26 जून: नेत्रोत्सव पूजा विधान के साथ दर्शन प्रारंभ, 27 जून: श्रीगोंचा रथ यात्रा, 30 जून: अखंड रामायण पाठ, 1 जुलाई: हेरा पंचमी, 2 जुलाई: छप्पन भोग अर्पण, 4 जुलाई: सामूहिक उपनयन संस्कार, 5 जुलाई: बाहुड़ा गोंचा रथ यात्रा, 6 जुलाई: देवशयनी एकादशी के साथ पर्व का समापन किया गया।
12 जून से 25 जून तक भगवान श्री जगन्नाथ स्वामी, माता सुभद्रा और बलभद्र के विग्रहों को मुक्ति मंडप में स्थापित कर दिया गया है, जिससे अनसर काल का आरंभ हो गया है। यह वह समय होता है जब भगवान अस्वस्थ माने जाते हैं और दर्शन वर्जित होता है। इस दौरान औषधीय भोग अर्पित किया जाएगा और 360 घर आरण्यक समाज के पुजारी सेवा कार्यों में संलग्न रहेंगे।

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