Airborne Fungal Spores : अब फंगल स्पोर्स बताएंगे, कब आएगी कोविड-फ्लू की नई लहर
Airborne Fungal Spores : फ्लू और कोविड बढ़ने का नया संकेत मिला है हवा में बढ़ते फंगस के बीजाणु। रिसर्च के मुताबिक जब ये बढ़ते हैं तो कुछ दिनों में संक्रमण भी बढ़ने लगता है, खासकर सर्दियों में। परागकण का ऐसा असर नहीं दिखा।
Airborne Fungal Spores : एक नई रिसर्च के अनुसार, हवा में मौजूद फंगल स्पोर्स पर नजर रखकर फ्लू और कोविड-19 के मामलों में होने वाली बढ़ोतरी का पहले से ही पता लगाया जा सकता है। यह एक महत्वपूर्ण खोज है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के लिए शुरुआती चेतावनी प्रणाली के रूप में काम कर सकती है।
फंगल स्पोर्स और संक्रमण के बीच संबंध (Airborne Fungal Spores)
अमेरिका की लिन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने पाया कि हवा में फंगल स्पोर्स की मात्रा बढ़ने पर अक्सर कुछ ही दिनों में फ्लू और कोविड-19 के मामलों में भी तेजी देखने को मिली। हालांकि, पराग (Pollen) का ऐसा कोई संबंध या अंदाजा नहीं देखा गया। इस रिसर्च में इस्तेमाल किए गए मॉडल, खासकर पतझड़ के मौसम में, फ्लू और कोविड-19 के बढ़ते मामलों का काफी सटीकता से अंदाजा लगा पाए।
पर्यावरणीय कारकों की भूमिका
लिन यूनिवर्सिटी में बायोकेमिस्ट्री के एसोसिएट प्रोफेसर फेलिक्स ई। रिवेरा-मारियानी का कहना है, हमारी रिसर्च से पता चलता है कि हवा में फंगल स्पोर के स्तर की निगरानी करके फ्लू और कोविड-19 के छोटे-मोटे फैलाव (तेज बढ़ोतरी) का पहले से पता लगाया जा सकता है। इससे पब्लिक हेल्थ सिस्टम को शुरुआती चेतावनी मिल सकती है।
रिवेरा-मारियानी ने आगे कहा, हमारी रिसर्च यह भी बताती है कि सिर्फ एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने के अलावा, पर्यावरणीय कारक भी सांस की वायरल इन्फेक्शन में योगदान कर सकते हैं। इससे लक्षित पब्लिक हेल्थ अलर्ट के लिए नए रास्ते खुल सकते हैं, खासकर उन इलाकों में जहां बाहर हवा में फंगल की मात्रा ज्यादा होती है।
Airborne Fungal Spores : रिसर्च का तरीका और डेटा
इस रिसर्च के लिए टीम ने 2022 से 2024 तक प्यूर्टो रिको के दो बड़े हेल्थ रीजन सैन जुआन और कागुआस के डेटा की जांच की। इस डेटा में कोविड-19 और फ्लू से पीड़ित लोगों की रोज की संख्या, साथ ही उसी दिन रिकॉर्ड किए गए हवा में मौजूद फंगल स्पोर्स और पराग की मात्रा शामिल थी।
साइंटिस्ट्स ने तब सांख्यिकीय (Statistical) और मशीन लर्निंग मॉडल का इस्तेमाल किया। उन्होंने यह देखा कि क्या इन पर्यावरणीय कारकों का उच्च स्तर उसी हफ्ते या अगले फ्ते (जिसे लैग-इफेक्ट कहा जाता है) में फ्लू और कोविड-19 के मामलों में तेजी का अंदाजा लगा सकता है।
रिवेरा-मारियानी ने कहा, यह रिसर्च बुज़ुर्गों या अस्थमा और एलर्जिक राइनाइटिस जैसी बीमारियों से पीड़ित कमज़ोर लोगों के लिए पर्यावरणीय जोखिम अलर्ट देने में मददगार हो सकती है। यह रिसर्च ASM माइक्रोब 2025 में प्रस्तुत की गई थी, जो लॉस एंजिल्स में अमेरिकन सोसाइटी फॉर माइक्रोबायोलॉजी की सालाना मीटिंग है।
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