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Nautapa Mantra: नौतपा की प्रचंड गर्मी में जपें ये मंत्र, सूर्य नारायण करेंगे हर मनोकामना पूरी, मिलेगी अच्छी सेहत

nautapa 2025: भीषण गर्मी के बीच आपने कई बार लोगों से नौतपा की बात सुनी होगी। इस नौतपा का मौसम के लिहाज से महत्व तो है ही, धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व भी है। मान्यता है कि नौतपा में इन सूर्य मंत्रों का जप भगवान का आशीर्वाद दिलाता है, स्वास्थ्य लाभ देता है और वो भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं। आइये जानते हैं क्या है नौतपा और नौतपा के विशेष सूर्य मंत्र

भारतMay 21, 2025 / 05:37 pm

Pravin Pandey

nautapa 2025 Date

nautapa 2025 Date: क्या होता है नौतपा और इस दौरान कौन से सूर्य मंत्र जपें, यहां जानें (Photo Credit: pinterest )

Nautapa Mantra: अजमेर की ज्योतिषी नीतिका शर्मा के अनुसार नौतपा से आशय सूर्य का नौ दिनों तक अपने सर्वोच्च ताप में होना है यानी इस दौरान गर्मी अपने चरम पर होती है।


अजमेर की ज्योतिषी नीतिका शर्मा के अनुसार हर साल गर्मी के मौसम में सूर्य 15 दिन के लिए रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करते हैं। इसकी शुरुआत के 9 दिनों तक सूर्य देव उग्र रूप में रहते हैं और पृथ्वी पर तापमान बढ़ जाता है और भीषण गर्मी पड़ती है। इसलिए सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में गोचर के शुरुआती 9 दिनों को नौतपा के नाम से जाना जाता है।

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एक अन्य मान्यता के अनुसार चंद्रमा जब ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र तक अपनी स्थितियों में हो और इसके साथ ही अधिक गर्मी पड़े, तो वह नौतपा कहलाता है। क्योंकि जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में होता है तो उस समय चंद्रमा नौ नक्षत्रों में भ्रमण करते हैं।

वहीं अगर सूर्य रोहिणी नक्षत्र में होता है तो उस दौरान बारिश हो जाती है तो इसे रोहिणी नक्षत्र का गलना भी कहा जाता है। नौतपा को मानसून का गर्भकाल भी माना जाता है।


कब शुरू हो रहा नौतपा (Nautapa 2025 Date)


ज्योतिषी नीतिका शर्मा के अनुसार सूर्य 25 मई को सुबह 3:15 बजे रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। इसके बाद नौ दिन 3 जून तक नौतपा रहेगा। इसके साथ ही सूर्य देव 8 जून को सुबह 1:04 बजे तक रोहिणी नक्षत्र में रहेंगे। 8 जून को ही सूर्य देव मृगशिरा नक्षत्र में प्रवेश कर जाएंगे और 15 जून को मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे। रोहिणी नक्षत्र में सूर्यदेव के प्रवेश से नौतपा भी प्रारंभ हो जाएंगे।

नौतपा का प्रभाव (Nautapa Effect)

खगोल विज्ञान के अनुसार नौतपा के दौरान धरती पर सूर्य की किरणें सीधी लम्बवत पड़ती हैं। जिस कारण तापमान अधिक बढ़ जाता है। यदि नौतपा के सभी दिन पूरे तपें, तो यह अच्छी बारिश का संकेत होता है।

ज्योतिषी नीतिका शर्मा के अनुसार नौतपा में सबसे अधिक गर्मी हो यह जरूरी नहीं। लेकिन मान्यता है कि ये नौ दिन तपेंगे तो अच्छी वर्षा होगी। यह भी मान्यता है कि नौतपा में तेज हवा के साथ बवंडर और बारिश की संभावना रहती है। इस साल भी नौतपा की ग्रह स्थिति ऐसी है कि इस अवधि में 3 जून तक तेज हवा, बवंडर और बारिश हो सकती है।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार नौतपा के कारण संक्रमण में कमी आने की संभावना है। इस समय संक्रमण का असर न्यूनतम होगा। लोगों में अनुकूलता और आरोग्यता भी बढ़ेगी।

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नौतपा की परंपरा

1.नौतपा को लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में कई परंपराएं प्रचलित हैं। मेहंदी की ठंडी तासीर के कारण नौतपा के दौरान महिलाएं हाथ पैरों में मेहंदी लगाती हैं।

2. नौतपा के दौरान खूब पानी पीने और जल दान की परंपरा है, ताकि पानी की कमी से बीमार न हों।
3. इस तेज गर्मी से बचने के लिए दही, मक्खन और दूध का उपयोग ज्यादा किया जाता है।

4. इसके साथ ही नारियल पानी और ठंडक देने वाली दूसरी और भी चीजें खाई-पीई जाती हैं।

    नौतपा में इन कारणों से रहें सतर्क

    1. ग्रहों और नक्षत्रों के प्रभाव में नौतपा 25 मई से शुरू हो रहा है, नौतपा के दिनों में विवाह जैसे मांगलिक कार्यों में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। ग्रहों की स्थिति देश के पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में प्राकृतिक आपदाएं पैदा कर सकती हैं। इसलिए सतर्क रहना चाहिए।
    2. वृषभ राशि वालों के लिए वर्तमान समय खराब है। इसलिए इन्हें सतर्क रहना चाहिए।

      सूर्य की उपासना का मंत्र (Surya Mantra)


      मान्यता के अनुसार रोहिणी नक्षत्र के दौरान सूर्य की आराधना करना विशेष फलदायी होता है। इसलिए सुबह सूर्योदय के पहले स्नान कर सूर्य को अर्घ्य दें। इसके लिए जलपात्र में कमकुम डालें और सूर्य को जल चढ़ाएं। जल चढ़ाते समय सूर्यदेव के मंत्र ऊं घृणि सूर्याय नमः, या ऊँ सूर्यदेवाय नमः का निरंतर जाप करें। मान्यता है कि इस समय पड़ रही भीषण गर्मी में तप की तीव्रता बढ़ जाती है। इससे सूर्य नारायण शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं। साथ ही अच्छी सेहत का भी आशीर्वाद मिलता है।

      इन मंत्रों का भी कर सकते हैं जाप


      ॐ आदित्याय नमः।
      ॐ सूर्याय नमः।
      ॐ रवये नमः।
      ॐ पूष्णे नमः।
      ॐ सविते नमः।
      ॐ प्रभाकराय नमः।
      ॐ मित्राय नमः।
      ॐ भानवे नमः।
      ॐ मार्तंडाय नमः।

      सूर्य चालीसा

      ॥ दोहा ॥


      कनक बदन कुण्डल मकर,मुक्ता माला अंग।
      पद्मासन स्थित ध्याइए,शंख चक्र के संग॥

      ॥ चौपाई ॥


      जय सविता जय जयति दिवाकर!।सहस्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥
      भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!।सविता हंस! सुनूर विभाकर॥
      विवस्वान! आदित्य! विकर्तन।मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
      अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते।वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥

      सहस्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि।मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
      अरुण सदृश सारथी मनोहर।हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥
      मंडल की महिमा अति न्यारी।तेज रूप केरी बलिहारी॥
      उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते।देखि पुरन्दर लज्जित होते॥
      मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर।सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
      पूषा रवि आदित्य नाम लै।हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥
      द्वादस नाम प्रेम सों गावैं।मस्तक बारह बार नवावैं॥
      चार पदारथ जन सो पावै।दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥

      नमस्कार को चमत्कार यह।विधि हरिहर को कृपासार यह॥
      सेवै भानु तुमहिं मन लाई।अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥
      बारह नाम उच्चारन करते।सहस जनम के पातक टरते॥
      उपाख्यान जो करते तवजन।रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥
      धन सुत जुत परिवार बढ़तु है।प्रबल मोह को फंद कटतु है॥
      अर्क शीश को रक्षा करते।रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥
      सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत।कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
      भानु नासिका वासकरहुनित।भास्कर करत सदा मुखको हित॥

      ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे।रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
      कंठ सुवर्ण रेत की शोभा।तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥
      पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर।त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
      युगल हाथ पर रक्षा कारन।भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥
      बसत नाभि आदित्य मनोहर।कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
      जंघा गोपति सविता बासा।गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥
      विवस्वान पद की रखवारी।बाहर बसते नित तम हारी॥
      सहस्रांशु सर्वांग सम्हारै।रक्षा कवच विचित्र विचारे॥

      अस जोजन अपने मन माहीं।भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं॥
      दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै।जोजन याको मन मंह जापै॥
      अंधकार जग का जो हरता।नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
      ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही।कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥
      मंद सदृश सुत जग में जाके।धर्मराज सम अद्भुत बांके॥
      धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा।किया करत सुरमुनि नर सेवा॥
      भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों।दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥
      परम धन्य सों नर तनधारी।हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥

      अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन।मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥
      भानु उदय बैसाख गिनावै।ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
      यम भादों आश्विन हिमरेता।कातिक होत दिवाकर नेता॥
      अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं।पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं॥

      ॥ दोहा ॥


      भानु चालीसा प्रेम युत,गावहिं जे नर नित्य।
      सुख सम्पत्ति लहि बिबिध,होंहिं सदा कृतकृत्य॥

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