मिड-डे से बातचीत में संदीप पाटिल ने कहा, “वर्कलोड मैनेजमेंट जैसी चीज मेरे लिए बकवास है। हमारे समय में या तो आप फिट थे या अनफिट, बस यही दो शब्द थे। हमने उसी आधार पर टीम चुनी। उस दौर में वर्कलोड की बात नहीं होती थी। आज के खिलाड़ियों के पास इतनी सुविधाएं हैं कि वे रिहैब में चले जाते हैं। हम अपने समय में चोट के बावजूद खेलते थे। देश के लिए खेलना हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी थी, और इसमें कोई नाटक नहीं था।”
BCCI को भी पाटिल ने घेरा
पाटिल ने फिजियोथेरेपिस्ट की भूमिका और चयन प्रक्रिया में उनके बढ़ते प्रभाव पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “मुझे समझ नहीं आता कि एक फिजियोथेरेपिस्ट कप्तान से बड़ा कैसे हो सकता है। क्या फिजियो के कहने पर ही चयन का फैसला होता है? क्या वे सबसे महत्वपूर्ण हैं? क्या फिजियो को चयन समिति की बैठक में शामिल होना चाहिए और फैसले लेने चाहिए? जब आपको देश के लिए चुना जाता है, तो आप इसके लिए मर मिटने को तैयार रहते हैं। आप एक योद्धा की तरह खेलते हैं।” पाटिल ने अपने दौर के दिग्गज खिलाड़ियों का उदाहरण देते हुए कहा, “मैंने सुनील गावस्कर को पांचों दिन बल्लेबाजी करते देखा है। कपिल देव ने टेस्ट क्रिकेट में लगातार गेंदबाजी की, कभी ब्रेक नहीं लिया। उनका करियर 16 साल से ज्यादा लंबा रहा। मैंने खुद 1981 में सिर में चोट लगने के बावजूद अगला टेस्ट नहीं छोड़ा।”