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बॉम्बे हाई कोर्ट ने BCCI को दिया बड़ा झटका, इस पूर्व IPL टीम को देने होंगे 538 करोड़ रुपये, पढ़ें पूरा मामला

हाई कोर्ट ने आईपीएल से बैन हो चुकी फ्रैंचाइजी कोच्चि टस्कर्स के पक्ष में फैसला सुनाते हुए 538 करोड़ रुपये के आर्बिट्रल अवॉर्ड को सही बताया है। नतीजन बोर्ड को कोच्चि टस्कर्स फ्रैंचाइजी के मालिकों को 538 करोड़ रुपये चुकाने होंगे।

भारतJun 18, 2025 / 09:22 pm

Siddharth Rai

BCCI

BCCI (फोटो क्रेडिट- IANS)

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) को बॉम्बे हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। अदालत ने मध्यस्थता के फैसलों को बरकरार रखते हुए बीसीसीआई को आदेश दिया है कि वह इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) की पूर्व फ्रेंचाइज़ी कोच्चि टस्कर्स केरला (KTK) से जुड़े विवाद में कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड (KCPL) को 385.50 करोड़ और रेंडेजवस स्पोर्ट्स वर्ल्ड (RSW) को 153.34 करोड़ का भुगतान करे। इस फैसले के बाद बीसीसीआई पर कुल 538.84 करोड़ का भारी वित्तीय दबाव बन गया है।

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कोच्चि टस्कर्स का आईपीएल सफर और विवाद की जड़

कोच्चि टस्कर्स केरला ने आईपीएल 2011 में डेब्यू किया था, लेकिन इस टीम का सफर मात्र एक ही साल तक सीमित रहा। शुरू में इस टीम का मालिकाना हक रेंडेजवस स्पोर्ट्स वर्ल्ड (RSW) के पास था, जो बाद में कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड (KCPL) को सौंप दिया गया।
हालांकि, बीसीसीआई ने टीम के संचालन में अनुबंध के उल्लंघन का हवाला देते हुए कोच्चि टस्कर्स की फ्रैंचाइज़ी को समाप्त कर दिया। विवाद का मूल कारण यह था कि टीम के मालिकों को 26 मार्च 2011 तक बैंक गारंटी जमा करनी थी। बोर्ड ने छह महीने तक इंतजार किया, परंतु 156 करोड़ की गारंटी राशि नहीं मिल सकी।

बॉम्बे हाईकोर्ट का सख्त आदेश

बीसीसीआई द्वारा मध्यस्थता के फैसलों को चुनौती देने वाली याचिका को एकल पीठ के न्यायाधीश जस्टिस रियाज़ आई. चागला ने खारिज कर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट कहा, “हाईकोर्ट मध्यस्थता के निर्णयों की पुनर्समीक्षा करने वाली अपीलीय संस्था नहीं है।”
अपने 107 पन्नों के आदेश में न्यायमूर्ति चागला ने कहा, “आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 34 के तहत इस अदालत का अधिकार क्षेत्र सीमित है। बीसीसीआई द्वारा विवाद के मूल मुद्दों में हस्तक्षेप करना इस धारा के विपरीत है। तथ्यों पर असहमति मध्यस्थता फैसले को चुनौती देने का आधार नहीं बन सकती।”

अदालत ने बताया मध्यस्थता निर्णय का महत्व

आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया कि अदालत मध्यस्थ द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों और दस्तावेजों के आधार पर लिए गए निष्कर्षों की पुन: समीक्षा नहीं कर सकती। साथ ही, अनुबंध की शर्तों की व्याख्या को लेकर फैसले में हस्तक्षेप करना अदालत का कार्यक्षेत्र नहीं है।
कोर्ट ने आदेश में कहा, “मध्यस्थ ने पाया कि बीसीसीआई ने बैंक गारंटी को अनुचित तरीके से लागू किया, जो KCPL-FA (फ्रैंचाइज़ी एग्रीमेंट) का गंभीर उल्लंघन है। यह निर्णय उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर सही और निष्पक्ष है। इसलिए, आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 34 के तहत हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं।”

मध्यस्थता से बीसीसीआई पर भारी जुर्माना

जनवरी 2012 में कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड ने बीसीसीआई को पत्र लिखकर मध्यस्थता की प्रक्रिया शुरू करने की सूचना दी थी। ट्रिब्यूनल ने बीसीसीआई की सभी दलीलों को खारिज करते हुए पाया कि बोर्ड ने अनुचित तरीके से टीम का कॉन्ट्रैक्ट रद्द किया। इस निर्णय के अनुसार, बीसीसीआई को टीम के मालिकों को 18% ब्याज के साथ 538 करोड़ से अधिक का भुगतान करना होगा।

आगे का रास्ता और खिलाड़ियों की स्थिति

हालांकि अभी भी बीसीसीआई के पास इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता खुला हुआ है। हालांकि आखिरी फैसला बोर्ड को ही करना है। कोच्चि टस्कर्स केरल ने आईपीएल 2011 में खेले कई खिलाड़ियों को पूरे पैसे आज तक नहीं दिए हैं।

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