script1857 की क्रांति: नौगांव छावनी के सिपाहियों ने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी | Revolution of 1857: The soldiers of Naugaon Cantonment shook the foundation of British rule | Patrika News
छतरपुर

1857 की क्रांति: नौगांव छावनी के सिपाहियों ने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी

सिपाहियों ने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया, बल्कि अपनी जान की परवाह किए बिना उनके हथियार, तोपें और खजाने पर कब्जा कर लिया।

छतरपुरAug 16, 2025 / 10:35 am

Dharmendra Singh

british jail

नौगांव छावनी में बनी जेल के अवशेष

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की चिंगारी को अक्सर मेरठ से जोड़ा जाता है, लेकिन इतिहास के पन्ने बताते हैं कि बुंदेलखंड की नौगांव छावनी भी इस क्रांति की अग्रिम चौकी थी। यहां के सिपाहियों ने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया, बल्कि अपनी जान की परवाह किए बिना उनके हथियार, तोपें और खजाने पर कब्जा कर लिया। यह बगावत 23 अप्रेल को शुरू होकर 19 जून तक चली, जब बागियों ने अंग्रेज अफसर सेकेंड लेफ्टिनेंट टाउनशेड को मौत के घाट उतार दिया।

कारतूस से भडक़ी चिंगारी


इतिहासकार दिनेश सेन बताते हैं कि 1857 में नौगांव छावनी में 12वीं भारतीय पलटन तैनात थी। 400 बंदूकधारी, 219 घुड़सवार, 40 तोपची और पैदल सिपाही। कमांडर मेजर किटके और स्टाफ ऑफिसर केप्टन पीजी स्पाट के अधीन यह सेना 23 अप्रेल को नए कारतूस को लेकर भडक़ उठी। खबर थी कि इन कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी लगी है, जो हिंदू और मुस्लिम दोनों सैनिकों की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ थी। असंतोष तेजी से फैला और 24 मई को छावनी की सुरक्षा के लिए अंग्रेजों को चार तोपें तैनात करनी पड़ीं।

चार सिपाहियों को बर्खास्त करने पर भडक़ी बगावत


मई के अंत तक स्थिति विस्फोटक हो चुकी थी। चार सिपाहियों को बर्खास्त कर छतरपुर भेजने से गुस्सा और भडक़ गया। इस बीच झांसी में क्रांति की खबर आई। नौगांव से झांसी भेजी गई दो सैन्य टुकडिय़ों को आदेश तो मिला, पर असली संदेश सैनिकों के दिलों में था, वापस लौटकर अंग्रेजों पर वार करना। 10 जून की शाम बागी सैनिकों ने छावनी पर गोलियां दागीं। अफसर घोड़ों पर भागे, लेकिन विद्रोहियों ने तोपों पर कब्जा कर रास्ते बंद कर दिए। शस्त्रागार की निगरानी कर रहे सिपाही भी बागियों के साथ हो गए।

19 जून को टाउनशेड का अंत


विद्रोहियों ने शस्त्रागार, बंगलों, पुस्तकालय और सरकारी रिकॉर्ड को आग के हवाले कर दिया। खजाने से 1.21 लाख रुपए लूटे गए। टाउनशेड, सार्जेंट रैटे और अन्य सैनिक छतरपुर की महारानी से शरण लेने पहुंचे, लेकिन उन्हें कोई सहारा नहीं मिला। 19 जून को, महोबा से कलिंजर जाते समय टाउनशेड को विद्रोहियों ने पकडकऱ मार डाला।

आज भी गवाही देते हैं खंडहर


नौगांव छावनी में मौजूद जेल, छावनी भवन और सूर्य घड़ी आज भी उस ऐतिहासिक बगावत की मूक गवाह हैं, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ों में पहली बार गहरा झटका दिया था।

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