ग्रामीण और आदिवासी जीवन की वास्तविक झलक
आदिवर्त लोककला संग्रहालय के प्रभारी अशोक मिश्रा बताते हैं कि यहां पर्यटक न केवल इन क्षेत्रों की लोकसंस्कृति से रूबरू होंगे, बल्कि उनके दैनिक जीवन, उत्सव, अनुष्ठान और आस्थाओं का प्रत्यक्ष अनुभव भी कर सकेंगे। इस बस्ती में मिट्टी और गोबर से लीपे-पोते घर, चौपाल, बैठक, आंगन, चरनी और पारंपरिक कृषि उपकरणों को प्रदर्शित किया गया है। समय-समय पर इन घरों को उसी तरह सजाया और पोता जाएगा, जैसा ग्रामीण जीवन में होता है। संग्रहालय प्रबंधन का कहना है कि यह केवल प्रदर्शन मात्र नहीं बल्कि संस्कृति को जीवित अनुभव कराने का प्रयास है।
पांचों लोकांचलों की विशिष्ट पहचान
इस बस्ती की सबसे खास बात यह है कि इसमें हर लोकांचल के चरित्र नायक और लोक देवताओं की गाथाओं को उकेरा गया है। मालवा- यहां के आवासों में तेजाजी की पूजा और उनसे जुड़ी कथाओं का चित्रण किया गया है। तेजाजी को मालवा क्षेत्र में नागदेवता और लोकनायक के रूप में पूजा जाता है। निमाड़- भीलट देव के स्थल को उनके पारंपरिक अनुष्ठान और वस्त्रों के साथ दिखाया गया है। निमाड़ की भील संस्कृति और उनके देवी-देवताओं की छवियां बस्ती को विशेष बनाती हैं। बघेलखंड- यहां बसामन मामा की पौराणिक कथाओं और उनके महत्व को प्रदर्शित किया गया है। साथ ही बघेलखंड की विशिष्ट जीवनशैली, संगीत और रीति-रिवाज को घरों की सजावट और चित्रों में उतारा गया है।
बुंदेलखंड- हरदौल बाबा की अमर गाथाओं को बुंदेली शैली के घरों में सजाया गया है। हरदौल की स्मृति यहां के विवाह और सामाजिक परंपराओं से जुड़ी हुई है, जिसे विशेष रूप से दिखाया गया है।
चंबल- कारसदेव की पूजा पद्धति और इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को परंपरागत स्थापत्य और चित्रांकन के जरिए जीवंत किया गया है।
पार्ट 1.0 में सात प्रमुख जनजातियों की बस्ती बसाई थी
फरवरी 2023 में जी-20 की बैठक के दौरान तात्कालिक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवर्त संग्रहालय (आदिवर्त 1.0) का उद्घाटन किया था। उस समय संग्रहालय परिसर में मध्यप्रदेश की सात प्रमुख जनजातियों बैगा, मारिया, कोल, भील, गोंड, सहरिया और कोरकू – की बस्तियां बसाई गई थीं। इन पारंपरिक आवासों में न केवल जनजातीय जीवनशैली का प्रदर्शन किया गया बल्कि उनके दैनिक उपयोग की वस्तुएं जैसे धान कूटने की ढेकी, चक्की, सिलबट्टा, लकड़ी के औजार, खेत की मेड़ और धार्मिक मूर्तियां भी प्रदर्शित की गईं हैं।
इनका कहना है
आदिवर्त के दूसरे चरण में पांचों लोकांचलों की संस्कृति, चरित्र नायक और लोकदेवताओं की महिमा को साकार किया गया है। यह केवल प्रदर्शन नहीं, बल्कि पर्यटकों को उन परंपराओं के साथ जोडऩे का प्रयास है, जिनमें मध्यप्रदेश की आत्मा बसती है। अशोक मिश्रा, संग्रहालय प्रभारी