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छतरपुर

पौष्टिक भोजन के लिए बनाई गईं जिले में 75 पोषण वाटिकाएं, उजड़ गए उद्यान, झाडि़यां आ रही नजर

जिले में तैयार की गईं 75 सामुदायिक पोषण वाटिकाएं अब खस्ताहाल हो चुकी हैं। योजना के पीछे उद्देश्य था कि समूह की महिलाएं फल-सब्जियां उगाकर स्वयं पौष्टिक भोजन पाएं और अतिरिक्त उत्पादन बाजार में बेचकर आय भी अर्जित करें। लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके ठीक उलट नजर आ रही है।

छतरपुरJun 05, 2025 / 10:46 am

Dharmendra Singh

poshan vatika

सरसेड़ में पोषण वाटिका के हाल

मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने और ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की मंशा से छतरपुर जिले में तैयार की गईं 75 सामुदायिक पोषण वाटिकाएं अब खस्ताहाल हो चुकी हैं। योजना के पीछे उद्देश्य था कि समूह की महिलाएं फल-सब्जियां उगाकर स्वयं पौष्टिक भोजन पाएं और अतिरिक्त उत्पादन बाजार में बेचकर आय भी अर्जित करें। लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके ठीक उलट नजर आ रही है। कई स्थानों पर उद्यान उजड़ चुके हैं, पौधे सूख गए हैं और जगह-जगह झाडि़यां उग आई हैं।

महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने का सपना अधूरा रह गया।

75 में से अधिकांश वाटिकाएं देखरेख के अभाव में उजड़ींजिले की 75 ग्राम पंचायतों में यह योजना सृजन संस्था और जर्मन सहयोगी संस्था जीआईजेड के माध्यम से लागू की गई थी। शुरुआत में इसे लेकर जोश और उत्साह था। कई गांवों में महिलाओं ने मिलकर पौधे लगाए और श्रमदान किया, लेकिन समय के साथ न तो कोई निगरानी रही और न ही रखरखाव की व्यवस्था। सिंचाई, जैविक खाद, तकनीकी प्रशिक्षण और पौधों की सुरक्षा जैसे मूलभूत पहलुओं को नजऱअंदाज़ कर दिया गया।

सरसेड़ गांव की शुरुआत हुई थी उम्मीदों से, लेकिन नहीं हो सकी साकार

नौगांव विकासखंड के सरसेड़ गांव को मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया गया था, जहां 2 हेक्टेयर भूमि पर 1250 पौधे लगाने का दावा किया गया था। शुरुआती चरण में महिलाओं के समूह जय श्रीराम स्व-सहायता समूह ने कुछ मेहनत भी की, लेकिन उसके बाद गतिविधि ठप हो गई। आज वहां भी हालात अच्छे नहीं हैं, कुछ गिने-चुने पौधों को छोडकऱ अधिकांश जमीन खाली और उपेक्षित पड़ी है।

सपनों से दूर महिलाएं, उत्पादन शून्य के बराबर

योजना का मूल उद्देश्य यह था कि महिलाएं उत्पादन कर स्वयं और बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन प्राप्त करें और शेष उत्पादनों को बेचकर आर्थिक रूप से मजबूत बनें। लेकिन अधिकांश पोषण वाटिकाएं सूख चुकी हैं। फल-सब्जियों के उत्पादन की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं हो सकी। उत्पादन न के बराबर है, जिससे न तो पोषण मिल पा रहा है और न ही आमदनी का कोई स्रोत बन सका है।

लापरवाही की वजह से पायलट प्रोजेक्ट भी कमजोर पड़ा

सीहोर और छतरपुर में 2019 में पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई थी, जो शुरुआती दौर में सफल बताया गया। लेकिन जब यह योजना व्यापक रूप से लागू हुई तो स्थानीय स्तर पर क्रियान्वयन की कमज़ोरी, निगरानी तंत्र की विफलता और ग्राम पंचायतों व समूहों की उदासीनता के कारण यह प्रयास धरातल पर असफल होता नजर आया।

प्रशासन की चुप्पी और सिस्टम की कमजोरी

योजना में सरकारी जमीन का उपयोग, जैविक खाद, प्रशिक्षण और विपणन जैसी सुविधाएं देने की बात कही गई थी, लेकिन ये सारी घोषणाएं कागजों तक सीमित रह गईं। जिन महिलाओं से आत्मनिर्भर बनने की उम्मीद थी, आज वही महिलाएं हताश हैं।

क्या अब भी सुधर सकती है स्थिति?

समय रहते अगर प्रशासन सक्रिय हो, निगरानी मजबूत की जाए और समूहों को दोबारा प्रशिक्षण, संसाधन और आर्थिक सहायता मिले, तो शायद इस योजना को फिर से पटरी पर लाया जा सकता है। लेकिन फिलहाल के हालात बता रहे हैं कि छतरपुर जिले में पौष्टिक भोजन और महिला आत्मनिर्भरता की यह महत्वाकांक्षी योजना विफलता की मिसाल बनकर रह गई है।

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