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500 रुपए की चप्पल बेची 1 लाख में, अब इटली की लग्जरी ब्रांड ने मान ली भारतीयों की बात, जानिए पूरा मामला

इतालवी लग्जरी फैशन हाउस प्राडा ने स्वीकार किया है कि उसने कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित होकर ये चप्पलें बनाई हैं। अब उसने स्थानीय स्थानीय भारतीय कारीगरों के साथ बातचीत को लेकर प्रतिबद्धता भी जताई है।

मुंबईJun 29, 2025 / 07:26 am

Pushpankar Piyush

Kolhapuri slippers (Photo: X)

Kolhapuri slippers (Photo: X)

कोल्हापुरी चप्पलों (Kolhapuri slippers) से मिलती-जुलती चप्पलें बनाने को लेकर आलोचनाओं के बाद इतालवी लग्जरी फैशन हाउस प्राडा (prada) ने स्वीकार किया है कि उसने कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित होकर ये चप्पलें बनाई हैं। प्राडा के मालिक के बेटे और समूह के कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व विभाग के प्रमुख लोरेंजो बर्टेली ने ‘महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर’ के अध्यक्ष ललित गांधी को लिखे पत्र में कहा, ‘हम स्वीकार करते हैं कि हाल में आयोजित प्राडा मेन्स 2026 फैशन शो में प्रदर्शित सैंडल सदियों पुरानी विरासत वाली पारंपरिक भारतीय हस्तनिर्मित चप्पलों से प्रेरित हैं। हम इस तरह के भारतीय शिल्प कौशल के सांस्कृतिक महत्व को गहराई से पहचानते हैं।’ इससे पहले, गांधी ने इस सप्ताह स्प्रिंग-समर 2026 संग्रह के तहत प्राडा की चप्पलों को प्रदर्शित किए जाने पर उत्पन्न आक्रोश के बाद बर्टेली को पत्र लिखा था।

महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स ने लिखा था पत्र

ललित गांधी ने अपने पत्र में कहा कि पुरुषों के स्प्रिंग/समर 2026 संग्रह में ऐसे फुटवियर डिजाइन शामिल हैं जो कोल्हापुरी चप्पलों (फुटवियर) से काफी मिलते-जुलते हैं। कोल्हापुरी चप्पल एक पारंपरिक हस्तनिर्मित चमड़े का सैंडल है। जिसे 2019 में भारत सरकार ने भौगोलिक संकेतक (जीआई) का दर्जा दिया था।
गौरतलब है कि, प्राडा ने अपने शो के नोट्स में चप्पलों को ‘चमड़े के सैंडल’ बताया था, जिसमें इसके किसी भारतीय संदर्भ का कोई जिक्र नहीं था। इससे भारत के फैशन समुदाय के साथ-साथ पश्चिमी महाराष्ट्र में कोल्हापुरी चप्पल के पारंपरिक निर्माताओं में भी व्यापक आक्रोश था।
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भारतीय कारीगरों से बात करेगा प्राडा

गांधी ने लिखा, ‘कोल्हापुरी चप्पलें महाराष्ट्र और भारत में सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक रही हैं। ये उत्पाद न केवल क्षेत्रीय पहचान के प्रतीक हैं, बल्कि वे कोल्हापुर क्षेत्र और आसपास के जिलों के हजारों कारीगरों व परिवारों की आजीविका का सहारा भी हैं।’ गांधी ने यह भी लिखा कि एक ओर हम इस बात की सराहना करते हैं कि वैश्विक फैशन घराने विविध संस्कृतियों से प्रेरणा ले रहे हैं, दूसरी ओर हम इस बात से चिंतित हैं कि इस विशेष डिजाइन का कमर्शिलाइजेशन बिना किसी मंजूरी, श्रेय या कारीगर समुदायों के साथ सहयोग के किया गया है, जिन्होंने पीढ़ियों से इस विरासत को संरक्षित रखा है। उन्होंने लिखा, ‘हमें विश्वास है कि प्राडा इस चिंता को सही भावना से देखेगा और उचित प्रतिक्रिया देगा।’
ललित गांधी के पत्र के जवाब में बर्टेली ने लिखा कि फिलहाल पूरा संग्रह डिजाइन और विकास के शुरुआती चरण में है और किसी भी चीज के उत्पादन या व्यावसायीकरण की पुष्टि नहीं हुई है। उन्होंने कहा, ‘हम जिम्मेदारीपूर्वक उत्पादन, सांस्कृतिक जुड़ाव को बढ़ावा देने और स्थानीय भारतीय कारीगरों के साथ बातचीत के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमने पूर्व में अन्य संग्रहों में भी ऐसा किया है ताकि उनके (कारीगरों के) शिल्प की सही पहचान सुनिश्चित की जा सके।’ इ

बुलगारी ने पेश किया 13 लाख का मंगलसूत्र

भारतीय संस्कृति और शिल्प तेजी से वैश्विक ब्रांड डिजाइनों में अपनी जगह बना रहे हैं। उच्च श्रेणी के ज्वैलरी निर्माता बुलगारी ने 16,000 डॉलर (करीब 13 लाख 70 हजार रुपए) का मंगलसूत्र हार पेश किया है, जो पारंपरिक रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली चेन से प्रेरित है। अब प्राडा की कोल्हापुरी चप्पलों का मामला सामने आया है।

प्राडा के उत्पाद आम भारतीयों की पहुंच से बाहर

प्राडा के उत्पाद ज्यादातर भारतीयों की पहुंच से बाहर हैं। इसके पुरुषों के चमड़े के सैंडल की खुदरा कीमत 844 डॉलर या उससे ज़्यादा है (करीब 72 हजार रुपए), जबकि भारतीय दुकानों और सड़क के बाजारों में बिकने वाले कोल्हापुरी चप्पलों की कीमत लगभग 500-600 से शुरू होती है।

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