फिल्म छोड़िए डायलॉग के कैसेट के लिए होती थी खूब मारा-मारी, नहीं बता पाएंगे फिल्म का नाम!
Sholay: 50 साल पहले एक ब्लॉकबस्टर फिल्म आई थी, जिसे देखने के लिए घंटों तक कतार में खड़ा होना पड़ता था। आलम ये था कि बाद में डायलॉग के कैसेट बिकने लगे थे, जो अपने आप में नया रेकॉर्ड बन गया।
50 साल पहले सिर्फ कैसेट बेचकर इस फिल्म ने बनाया था रेकॉर्ड (फोटो सोर्स: Gemini)
Sholay: ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘शोले’ को रिलीज हुए 50 बीत चुके हैं। इसमें संगीत शानदार था और गाने भी, मगर ऐसा संगीत केवल मूवी के साथ ही सुनने में अच्छा लगता है। इसलिए इसके संगीत को बेहतरीन होते हुए भी अवॉर्ड नहीं मिला ना नॉमिनेशन।
70 के दशक के लोकप्रिय एल्बम जॉनी मेरा नाम, जूली, बॉबी, यादों की बारात, हम किसी से कम नहीं, धर्मवीर, अमर अकबर एंथोनी, मुकद्दर का सिकंदर, डॉन से शोले का संगीत पीछे था। मगर इसके मूवी के डायलॉग कैसेट रिलीज करने के बाद इसकी बिक्री ने एक नया रेकॉर्ड कायम कर दिया।
कैसेट की बिक्री के रिकॉर्ड और मुहावरे बने संवाद…
‘शोले’ फिल्म का एक सीन शोले के अलावा भी मुगले आजम, नदिया के पार, मुकददर का सिकंदर, मेरा गांव मेरा देश, तेजाब, मिस्टर इंडिया आदि के डायलॉग कैसेट बिके मगर शोले के दो भाग में आये कैसेट की बिक्री ने नए रेकॉर्ड कायम करे।
उन दिनों में जिस के पास टेप रिकॉर्डर है, उसके पास शोले के दो कैसेट होना जरूरी था। पूरे दो घंटे ये कैसेट चलते और लोग साथ में डायलॉग बोलते। डायलॉग चाहे वीरू के हो, गब्बर के हो या सूरमा भोपाली के सभी मुंह जुबानी रटे हुए थे। यहां तक की ठाकुर के परिवार की बातें भी लोगों को याद थी।
‘हूं बाबूजी के पसंद की सब्जी बन रही है, जिसे देखो काम में लगा है, बाबूजी को दिखाने, हां रोज तो सारा काम पुरानी हवेली की चुडैल करके जाती है’ आदि। इसके अलावा कम लोकप्रिय राधा की होली वाला सीन, जब ठाकुर और रामलाल उनकी गांव जाते है ‘होली है भाई होली है, दो चुटकी वाली होली, भला रंगों से भी कभी किसी का दिल भरा है’, इसके अलावा बसंती और इमाम साहब की बातें। आम तोडऩे वाला सीन, टंकी वाला सीन, जय वीरू की शादी और गांव बसने वाली बातें सभी को जुबानी याद थी।
आज भी लोगों के जुबां पर डायलॉग
ये डायलॉग इतनी बार सुने और इतनी बार दोहराये की लोगों के लिए मुहावरे बन गए, एक बानगी देखिये, आप भी ये डायलॉग अपने जीवन मे विभिन्न मौकों पर बोलते होंगे।
लोहा गरम है मार दो हथोड़ा,खतरों से खेलने का शौक तो हमें भी है, लग गया निशाना। नशा उतरेगा तो अपने आप उतर जाएगा। गुड बाय। एक-एक को चुन-चुन कर मारूंगा। ये रामगढ़ वाले कौनसी चक्की का आता खिलाते हैं। यहां से पचास-पचास कौस दूर। मुझे गब्बर चाहिए और जिंंदा। गब्बर सिंह कोई बकरी का बच्चा नहीं की दौडे और पकड़ लिया। मुझे सब पुलिस वालों की सूरते एक जैसी नजर आती हैं। युंकि तुम यहां कैसे, युंकि तुम्हारा नाम क्या है बसंती। कितने आदमी थे, बहुत याराना लगता है। अब तेरा क्या होगा कालिया। सरदार मैंने आपका नमक खाया। चक्की पिसिंग एंड पिसिंग। हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर। हमारा नाम सूरमा भोपाली। बहुत लम्बी लिस्ट है…
इस कैसेट के बिकने का कारण सलीम जावेद के डायलॉग जो बहुत खास नहीं होकर आम जीवन से निकले हुए थे। इसमें उन्होंने भाषा भी आम आदमी की भाषा रखी और हर सीन में संवाद पे चर्चा कर उसे खास बनाया। इस सोने पे सुहागा किया पंचम ने हर संवाद के बाद उनका संगीत इसके प्रभाव को और बढ़ा देता।
लोग डायलॉग के साथ इसका म्यूजिक पीस भी दोहराते थे। जैसे सुरमा भोपाली हम जेल जाना चाहते हैं…तक-तक ट्यु यु (संगीत को लिखा नहीं जा सकते सो संकेत समझें) सूअर के बच्चों…पिस्तौल यहां है…मैं नाचूंगी मैं नाचूंगी मैं नाचूंगी… ठाय…अगर किसी ने हिलने की कोशिश की तो भूनकर रख दूंगा…हर जगह संगीत, घोड़ों की टाप, गोली की आवाज उस दौर के हर आदमी को मुख जुबानी था। लेखक- इजीनियर, रवीन्द्र जोधावत