scriptSholay: जब सलीम-जावेद की कलम से निकला वो जादू-मस्ती, दोस्ती और सिनेमा का स्वर्ण युग | Salim-Javed's pen brought out the magic, fun, friendship and the golden age of cinema | Patrika News
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Sholay: जब सलीम-जावेद की कलम से निकला वो जादू-मस्ती, दोस्ती और सिनेमा का स्वर्ण युग

50 Year Of Sholay:’शोले’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि सलीम-जावेद की कलम से उतरा एक ऐसा जादू था जिसने दोस्ती, मस्ती और सिनेमा के एक स्वर्णिम युग को अमर किया…

मुंबईAug 15, 2025 / 01:24 pm

Shiwani Mishra

Sholay: जब सलीम-जावेद की कलम से निकला वो जादू, मस्ती, दोस्ती और सिनेमा का स्वर्ण युग

सलीम-जावेद की कलम से उतरा एक ऐसा जादू

Sholay: ‘शोले’ के 50 साल पूरे होने पर विशेष सीरीज एक्शन का दौर, वीरू की मस्ती और सलीम-जावेद की कलम जहां 60 के दशक में लोग गानों के कारण सिनेमा देखने जाते थे। रेडियो पर गाने सुनते और इंतजार करते कब ये फिल्म सिनेमाघरों में लगे मगर वर्ष 1966 में आई फिल्म फूल और पत्थर ने लोगो का ध्यान एक्शन सिनेमा की तरफ गया। इधर सिनेमाघर बढ़ते गए उधर एक्शन फिल्में।

ये फिल्म सुपरहिट रही

धर्मेंद्र की ही 1968 में आंखें आई ये भी ब्लॉकबस्टर रही। वर्ष 1971 में धर्मेंद्र की मेरा गांव मेरा देश ने तो परिदृश्य ही बदल दिया। काका की आंधी में ये फिल्म सुपरहिट रही, मगर कस्बों गांवों में, मेलो में इस फिल्म की धूम जबरदस्त थी। अब हर हीरो का ध्यान एक्शन की तरफ हो गया। दिलीप कुमार, देवानंद, राजेश खन्ना, विश्वजीत, जीतेन्द्र आदि भी एक्शन थ्रीलर फिल्में करने लगे।
ऐसे में अंदाज जैसी सामाजिक और सीता और गीता जैसी कॉमेडी के बाद रमेश सिप्पी ने बड़ी एक्शन फिल्म बनाने का निर्णय लिया। बड़ी फिल्म बनानी है और एक्शन तो हीरो तो धर्मेंद्र ही होना था। जय जहां खामोश था, वीरू बिल्कुल मस्त, बिंदास और जो दिल में आये बोल देता, जय को जान से ज्यादा चाहता है, वही बसंती पर दिलों जान लुटाता है।

फिल्मों में एक्टर नहीं हीरो बनने आया

धर्मेन्द्र फिल्मों में एक्टर नहीं हीरो बनने आया और 1972 से 1977 तक सबसे बड़ा हीरो बना राजा जानी, लोफर, ब्लैकमेल, यादों की बारात, दोस्त, कहानी किस्मत की, रेशम की डोरी, नया जमाना, प्रतिज्ञा, चरस, चाचा भतीजा और धरम वीर जैसी सुपरहिट फिल्में दी। मगर इसके बाद एक्टर धर्मेन्द्र पर वीरू हावी हो गया। मौजमस्ती, दिलदारी, हेमा, बोतल और एक्शन ही बाद वाली फिल्मों के खास हिस्से थे। अब ऋषिकेश मुखर्जी ही नहीं रमेश सिप्पी, मनमोहन देसाई, प्रकाश मेहरा और यश चौपड़ा जैसे बड़े बैनर उनसे दूर हो गए। जैसे शोले में वीरू मस्ती मस्ती में मिशन गब्बर पूरा करता है वैसे ही मस्ती मस्ती में फिल्म करने लगे।

सिक्वेन्स पर उनकी मस्ती के साथ एक्शन

वीरू की बात करें तो ट्रैन सिक्वेन्स पर उनकी मस्ती के साथ एक्शन, टंकी वाला सीन, जय से अपने फ्यूचर प्लान डिसकस करना, अनाड़ी तरीके का एक्शन, बसंती को पिस्तौल सिखाने का सीन, कोई हसीना वाला गीत, शिवजी के मंदिर वाला सीन सब जगह दर्शकों को खूब आनंद देते हैं। जय के मरने पर उनका गुस्सा और गब्बर को पीटना इमोशनल कर देता है। भारत की सबसे बड़ी फिल्म का हीरो होना धर्मेंद्र को अमर कर देता है।
उन्होंने लगभग 300 फिल्मों में काम किया, जिनमें से सत्यकाम, चुपके-चुपके, गुलामी, बंदनी, हुकूमत, अपने जैसी 100 से अधिक फिल्मों में यादगार अभिनय किया है। आज तक वे अकेले हीरो हैं, जिन्होंने 100 सफल फिल्में दी। जिन पर हेमंत, मुकेश, रफी, किशोर से लेकर सोनू निगम, के के तक 55 से ज्यादा गायकों ने आवाज दी। जिन्होंने सौ से अधिक हीरोइन के साथ काम किया।

स्क्रिप्ट सबसे खास भाग

किसी भी फिल्म मे उसकी स्क्रिप्ट सबसे खास भाग होता है, मगर हिंदी सिनेमा में इस भाग पर सबसे कम मेहनत की जाती है। भारत हीरो प्रधान देश है, इसलिए हीरो पर सबसे ज्यादा उसके बाद संगीत पर ध्यान दिया जाता। वर्ष 1975 तक गिनती के लेखक ही नाम कर पाए जैसे ख्वाजा अब्बास अहमद, गुलजार आदि। कुछ निर्देशक खुद अच्छे लेखक भी थे,जैसे राजकपूर, ऋषिकेश मुखर्जी, मेहबूब, बिमल रॉय आदि।
मगर फार्मूला फिल्मों के लिए लेखक कम थे या उन्हें महत्त्व कम दिया जाता था। ऐसे में दो लेखक साथ में मिले सलीम खान और जावेद अख्तर और फार्मूला फिल्मों की दशा ही बदल दी। एस एम सागर की अधिकार से इन्होंने साथ काम करने की शुरुआत की और इसके बाद रमेश सिप्पी की अंदाज ने इन्हे स्टार बना दिया।

हाथी मेरे साथी ब्लॉकबस्टर

इसके बाद हाथी मेरे साथी ब्लॉकबस्टर हुई और ये सुपरस्टार लेखक बन गए। इसके बाद आयी रमेश सिप्पी की ही सीता और गीता ये भी साल की सबसे बड़ी हिट रही। इसका एक-एक दृश्य भले ही इमोशनल हो या कॉमेडी या नाटकीय सलीम जावेद का लेखन हर सीन में नजर आता था। इसीलिए इनसे खुश होकर रमेश सिप्पी ने इसी फिल्म के मुख्य किरदारों के साथ अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म शोले शुरू की।
इनकी खूबी ये थी की ये कहानी के साथ एक-एक दृश्य और किरदार को उभारते जिससे दर्शक हर सीन से जुड़ाव महसूस करता। फिर दो आदमी का दिमाग लगता दोनों को एक दूसरे पर विश्वास था। ऐसे में इनके काम में और निखार आने लगा।

ब्लॉकबस्टर मूवी

वर्ष 1973 में यादों की बारात और जंजीर ब्लॉकबस्टर मूवी दी। यादों की बारात के पोस्टर पर सबसे पहले लेखक का नाम आया सलीम जावेद। जंजीर का इतिहास तो सबको मालूम है जिसने एंग्री यंग मैन को जन्म दिया। इसके बाद इसी जोड़ी के काम को और ऊंचा किया। मजबूर, हाथ की सफाई, दिवार ने। वर्ष 1975 में शोले ने तो इतिहास ही रच दिया। इसके बाद वे हीरो के बराबर फीस लेने लग गए।

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