scriptखलनायक-नायक और राजनेता तीनों ही किरदार में रहे सफल, जानिए इंडस्ट्री पर ‘राज’ करने वाले दिग्गज एक्टर की कहानी | Raj Babbar was successful in all three roles - villain, hero and politician | Patrika News
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खलनायक-नायक और राजनेता तीनों ही किरदार में रहे सफल, जानिए इंडस्ट्री पर ‘राज’ करने वाले दिग्गज एक्टर की कहानी

Birthday Special: अभिनय की दुनिया में खलनायक से लेकर नायक तक का सफर तय करने वाले राज ने न केवल सिल्वर स्क्रीन पर, बल्कि राजनीति के मैदान में भी अपनी गहरी छाप छोड़ी।

मुंबईJun 23, 2025 / 07:32 am

Saurabh Mall

Raj Babbar Birthday Special

Birthday Special: अभिनय की दुनिया में खलनायक से लेकर नायक तक का सफर तय करने वाले राज ने न केवल सिल्वर स्क्रीन पर, बल्कि राजनीति के मैदान में भी अपनी गहरी छाप छोड़ी।

Raj Babbar Birthday Special: राज बब्बर का जन्म 23 जून 1952 को उत्तर प्रदेश के टुंडला में हुआ था और इस साल वह अपना 72वां जन्मदिन मना रहे हैं। उन्होंने फिल्मों में खलनायक और नायक दोनों तरह के रोल निभाए और बाद में राजनीति में भी अपनी खास पहचान बनाई।
राज बब्बर ने बचपन से ही स्टेज पर एक्टिंग शुरू कर दी थी। बाद में उन्होंने दिल्ली के मशहूर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) से एक्टिंग की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा।
उनका सफर आसान नहीं था। इसमें कई उतार-चढ़ाव, विवाद और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां शामिल रहीं। उन्होंने फिल्मी दुनिया से लेकर राजनीति तक हर मंच पर खुद को साबित किया।

राज बब्बर की पहली फिल्म

साल 1977 में राज बब्बर की पहली फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ रिलीज हुई। लेकिन, उन्हें असली पहचान मिली उसी साल बी.आर. चोपड़ा की फिल्म ‘इंसाफ का तराजू’ से। इसमें उनके किरदार ने दर्शकों के बीच विशेष छाप छोड़ी।
इस नकारात्मक भूमिका ने उन्हें रातोंरात चर्चा में ला दिया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1980 के दशक में ‘प्रेम गीत’, ‘निकाह’, ‘उमराव जान’, ‘आज की आवाज’ और ‘अगर तुम ना होते’ जैसी फिल्मों ने उन्हें रोमांटिक और संजीदा अभिनेता के रूप में पेश किया।
साल 1981 में रिलीज हुई ‘उमराव जान’ में उनके ‘फैज अली’ के किरदार को आज भी याद किया जाता है। 1990 की सनी देओल स्टारर ‘घायल’ में उन्होंने बड़े भाई की भूमिका निभाकर फिर से अपनी बहुमुखी प्रतिभा साबित की। ‘बॉडीगार्ड’, ‘साहब बीवी और गैंगस्टर 2’, ‘बुलेट राजा’ जैसी फिल्मों में उनके किरदारों ने साबित कर दिया कि वह हर तरह के रोल में फिट बैठ सकते हैं।
उनकी फिल्मोग्राफी में ‘रुदाली’, ‘मजदूर’, ‘जख्मी औरत’, ‘वारिस’, ‘संसार’, ‘पूनम’, ‘याराना’, ‘जीवन धारा’, ‘झूठी’ और ‘तेवर’ जैसी फिल्में शामिल हैं, जो उनकी अभिनय की गहराई को शानदार अंदाज में पेश करती हैं।

शादीशुदा के बाद भी चढ़ा प्यार का परवान

राज बब्बर की निजी जिंदगी भी उनकी फिल्मों की तरह चर्चा में रही। साल 1975 में उन्होंने थिएटर आर्टिस्ट नादिरा जहीर से शादी की, जिनसे उनकी बेटी जूही बब्बर और बेटा आर्य बब्बर हैं। लेकिन, 1982 में फिल्म ‘भीगी पलकें’ के सेट पर उनकी मुलाकात अभिनेत्री स्मिता पाटिल से हुई, जिसके बाद दोनों के बीच प्यार का रिश्ता बना, जो परवान चढ़ा। यह रिश्ता उस समय सुर्खियों में आया, क्योंकि राज शादीशुदा थे।
फिर क्या था साल 1983 में राज और स्मिता ने शादी कर ली और 1986 में उनके बेटे प्रतीक बब्बर का जन्म हुआ। लेकिन, नियति को कुछ और मंजूर था। प्रतीक के जन्म के कुछ ही दिनों बाद स्मिता का निधन हो गया। यह राज के लिए गहरे सदमे की तरह था। बाद में वह नादिरा के पास लौट आए और परिवार को फिर से जोड़ा।
उनके बेटे प्रतीक ने हाल ही में शादी की है, जिसमें उन्होंने अपने पिता राज को न बुलाने का फैसला लिया। उन्होंने बताया भी कि यह फैसला मां (स्मिता) के घर में शादी होने के कारण लिया गया, क्योंकि नादिरा और स्मिता के बीच की जटिलताओं को ध्यान में रखा गया। हालांकि, प्रतीक ने यह भी स्पष्ट किया कि उनके और राज के बीच कोई व्यक्तिगत मनमुटाव नहीं है।

राजनीति में कदम

राज बब्बर ने फिल्मों में सफलता पाने के बाद साल 1989 में राजनीति में कदम रखा। उन्होंने जनता दल से शुरुआत की, फिर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए और 1994 में आगरा से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। इसके बाद उन्होंने 1999 और 2004 में फिरोजाबाद से भी चुनाव जीते।
2008 में वे कांग्रेस पार्टी से जुड़ गए। हालांकि 2009 में उन्हें फिरोजाबाद से चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। वे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने गुरुग्राम सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार भी जीत नहीं मिली।
राज बब्बर के बेटे आर्य बब्बर और बेटी जूही बब्बर भी फिल्मों में नजर आए, लेकिन उन्हें अपने पिता जैसी कामयाबी नहीं मिल पाई। जूही ने ‘रिफ्लेक्शन’, ‘अय्यारी’ और ‘फराज’ जैसी फिल्मों में छोटे रोल किए, जबकि आर्य की पहली फिल्म ‘अब के बरस’ बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही।

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