12 ओ क्लॉक, मेरे सनम, ब्रह्मचारी, बंधन, सीता और गीता, शोले, सागर, शान, भ्रष्टाचार, पत्थर के फूल, राजू बन गया जेंटलमैन, आतिश, जमाना दीवाना, हमेशा आदि फिल्में बनाई। टीवी के लिए बुनियाद सीरियल भी बनाया। क्योंकि ये अमीर घराने से थे तो यही इनके काम में झलकती थी। हमेशा फिल्म के लिए बजट की कोई कमी नहीं रखी। हमेशा बजट इक्कीस ही रखा। इन्हीं का साथ निभाया इनके बेटे रमेश सिप्पी ने जहां पिता का दिल बड़ा था तो बेटे की सोच बड़ी।
बड़ी सोच से मिली बड़ी पहचान
रमेश सिप्पी की ताकत उनकी बड़ी सोच थी। इन्होंने शुरुआत ही शम्मी कपूर, हेमा मालिनी और राजेश खन्ना के साथ फिल्म अंदाज से की। साधारण कहानी को जिस अंदाज में बनाया और शोमैन की तरह प्रस्तुत किया लग गया था। यह कुछ बड़ा करेंगे और किया अगली फिल्म सीता और गीता की स्टारकास्ट और केनवास और जबरदस्त था, फिल्म भी ब्लॉकबस्टर रही। अब आया अपना सपना पूरा करने का समय तो इन्होंने ‘शोले’ शुरू की जिसने इतिहास रच दिया। ‘शोले’ में बाप ने पैसे की कोई कमी नहीं छोड़ी तो बेटे ने क्रिएटिविटी में। सलीम जावेद, आर डी बर्मन से कैमरामेन सभी को खुली छूट दी। उस समय की सबसे बड़ी स्टारकास्ट चुनी। परिणाम आप देख सकते हैं।
इसके बाद की सभी फिल्में सफल तो रही मगर हर फिल्म शोले नहीं होती। इन्होंने बजट ज्यादा रखा, वरना शान, शक्ति, सागर, भ्रष्टाचार, पत्थर के फूल और राजू बन गया जेंटलमैन तक लोगों ने खूब देखी। बजट के कारण ये साधारण सफल ही कहला सकीं।
टीवी इंडस्ट्री में भी बनाया नाम
शोले की तरह जब इन्होंने टीवी की तरफ रुख किया तो मेघा सीरियल बुनियाद बनाया। जिस तरह भारतीय सिनेमा
की शोले सबसे सफल फिल्म है, उसी तरह बुनियाद सबसे सफल पारिवारिक सीरियल (रामायण और महाभारत के बाद, वे धार्मिक सीरियल थे।) हैं। इस फिल्म में रमेश ही नहीं बाकि परिवार भी शामिल हैं, उनका नाम लेना जरूरी है शाशा सिप्पी, शहजाद सिप्पी और शान उत्तम सिंह ने भी रमेश सिप्पी का भरपूर सहयोग किया। दोनों बाप बेटों की उच्ची सोच ही ‘शोले’ को जन्म दे पायी। रिलीज के लिए तैयार होने के बाद सेंसर के कारण फिल्म का एंड बदलना पड़ा, मगर इनके कोई सिकन नहीं आई। रिलीज के बाद जब नकारात्मक प्रतिक्रिया आई फिर से एंड बदलने को तैयार हो गए। इतना बड़ा रिस्क उठाया की आज ‘शोले’ ना केवल सबसे सफल फिल्म है, बल्कि सबसे ज्यादा रिपीट वैल्यू वाली फिल्म है। सिप्पी परिवार का ये योगदान फिल्म इतिहास में ही नहीं भारत के इतिहास में दर्ज हो गया। बाप-बेटे की जोड़ी को हमेशा याद रखा जाएगा।
लेखक- इंजी. रवीन्द्र जोधावत