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कारगिल युद्ध में बिलासपुर का शौर्य: बेटी की किलकारी छोड़ी, वतन की चुनी पुकार… जानिए जांबाज की कहानी

Kargil Vijay Diwas 2025: 26 जुलाई का दिन हर भारतीय के लिए गर्व और सम्मान का प्रतीक है, लेकिन बिलासपुर के लिए यह दिन खास मायने रखता है।

बिलासपुरJul 26, 2025 / 03:29 pm

Khyati Parihar

कारगिल युद्ध में बिलासपुर का शौर्य (फोटो सोर्स- पत्रिका)

कारगिल युद्ध में बिलासपुर का शौर्य (फोटो सोर्स- पत्रिका)

Kargil Vijay Diwas 2025: 26 जुलाई का दिन हर भारतीय के लिए गर्व और सम्मान का प्रतीक है, लेकिन बिलासपुर के लिए यह दिन खास मायने रखता है। आज से 26 साल पहले, जब कारगिल की बर्फीली चोटियों पर दुश्मन ने चालबाजी से कब्जा करने की कोशिश की, तब बिलासपुर के वीर सपूतों ने भी मां भारती की रक्षा में दुश्मनों को करारा जवाब दिया।
ये बिलासपुर के वे जांबाज हैं जिन्होंने आज से 26 साल पहले कारगिल वॉर में दुश्मन को धूल चटाई। गोलियों की बारिश में भी देशभक्ति के जुनून में इन जवानों के कदम नहीं डगमगाए। कहते हैं आज भी जरूरत पड़ी तो दुश्मनों से लड़ने के लिए हम सदैव तैयार है। आइए जानें इनकी कहानी…

Kargil Vijay Diwas 2025: दुश्मन को एक इंच भी आगे नहीं बढ़ने दिया

एयर डिफेंस में 26 साल तक देश सेवा करने वाले शुभम विहार निवासी रिटायर्ड नायब सूबेदार कमलेश कुमार दीवान मई 1999 की उन 25 दिनों को याद कर गर्व से सीना चौड़ा कर लेते हैं। 58 साल के कमलेश के सीने में देशभक्ति की वही ज्वाला आज भी धधक रही है। वे कहते हैं, अगर देश को जरूरत पड़ी तो हम आज भी दुश्मन से लोहा लेने तैयार हैं।

बचपन से ही फौज में जाना चाहते थे कमलेश

कमलेश ने बताया कि वे बचपन से ही फौज में जाना चाहते थे। बीएससी फर्स्ट ईयर के बाद एनसीसी के जरिए उन्होंने सेना का रुख किया और एयर डिफेंस यूनिट में भर्ती हुए। वर्ष 1990 में उन्हें श्रीनगर में आतंकवाद के खिलाफ मोर्चा संभालने भेजा गया। फिर 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान उन्हें दुर्गम पहाडिय़ों पर सेना को हथियार और रसद पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। पाकिस्तानी गोलियों के बीच वह जिस हिम्मत से डटे रहे। दुश्मन को एक इंच भी आगे नहीं बढ़ने दिया। उन दिनों की याद कर आज भी उनकी बाहें फड़क उठती हैं।

एक सदस्य फौज में हो

कमलेश दीवान कहते हैं, ऽहर परिवार से एक सदस्य को सेना में होना चाहिए। फौज केवल युद्ध नहीं, जिंदगी का अनुशासन और सेवा सिखाती है।ऽ आज वे सिम्स अस्पताल में सिक्योरिटी मैनेजर हैं, लेकिन सोच और जज्बा वही सैन्य वाला है।

युद्ध समाप्ति के बाद ही नवजात बेटी का चेहरा देखा

26 जुलाई को जब पूरा देश करगिल विजय दिवस मना रहा है, तब छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक नाम गर्व और श्रद्धा से लिया जाता है – हवलदार राजेश कुमार अंबस्ट। राजकिशोर नगर के रहने वाले हवलदार राजेश सिर्फ एक सैनिक नहीं, बल्कि त्याग, साहस और कर्तव्य की मिसाल हैं। उनकी कहानी न सिर्फ़ युद्ध के मैदान में वीरता की है, बल्कि एक पिता के दिल को चीरती हुई देशभक्ति की पराकाष्ठा है।

जब बेटी का चेहरा भी नहीं देखा, पर वतन के लिए निकल पड़े

कारगिल युद्ध की शुरुआत हुई थी, और उसी समय राजेश कुमार की पत्नी प्रसव पीड़ा से जूझ रही थीं। एक ओर घर में नवजात बेटी के जन्म की प्रतीक्षा थी, दूसरी ओर मातृभूमि ने पुकारा। राजेश ने बताय कि “पत्नी ने कहा कि अभी मत जाओ… लेकिन मेरी आत्मा कह रही थी – देश पहले। मैंने बेटी को देखे बिना ही वर्दी पहनी और निकल पड़ा।”
उन्होंने जाते वक्त सिर्फ एक बात कही अगर मैं शहीद हो गया, तो मेरी संतान मेरी विरासत पूरी करेगी। यह शब्द किसी आम इंसान के नहीं, एक सच्चे वीर सैनिक के हो सकते हैं, जो अपने फर्ज से बढ़कर कुछ नहीं समझता।

रॉकेट लांचर की गोलियों के बीच डटे रहे डटे

राजेश की बटालियन फ्रंटलाइन पर थी। वहां दुश्मन की तरफ़ से लगातार रॉकेट लांचर से फायरिंग हो रही थी। आस-पास के कई साथी शहीद हो गए, पर उन्होंने न हार मानी, न हिम्मत छोड़ी। गोलियों की बारिश हो रही थी, लेकिन मेरे अंदर सिर्फ एक ही भावना थी – देश को झुकने नहीं दूंगा।” राजेश बताते हैं कि युद्ध के हर दिन में उन्होंने क्रोध देखा, दर्द देखा, लेकिन डर नहीं देखा। 25 दिनों तक उनकी बटालियन ने दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया और आखिरकार विजय भारत की हुई।

जब युद्ध समाप्त हुआ, तब देखा बेटी का चेहरा

युद्ध समाप्त होने के बाद जब वे घर लौटे, तब जाकर उन्होंने पहली बार अपनी नवजात बेटी को गोद में लिया। उस पल में गर्व था – कि बेटी को एक विजयी सैनिक का पिता मिला है। और बेटी को भी विरासत में मिली वीरता की कहानी। अब वे दो बेटियों के पिता हैं और सेवानिवृत्ति के बाद समाज सेवा में जुटे हैं।
करगिल युद्ध में बिलासपुर का शौर्य (फोटो सोर्स- पत्रिका)

आज भी बुलाओ तो हाज़िर हैं

करगिल युद्ध के 26 साल बाद भी जब इन सैनिकों से बात होती है, तो आँखों में चमक और सीने में वही जोश दिखाई देता है। वे आज भी कहते हैं -“देश ने हमें बुलाया था, हम पहुँचे थे। आज भी अगर पुकारा गया, तो आख़िरी सांस तक दुश्मनों से लड़ने को तैयार हैं।”
कुछ जांबाज अब रिटायर्ड ज़िंदगी जी रहे हैं, लेकिन देश के लिए उनका समर्पण कभी रिटायर नहीं हुआ। वे युवाओं को प्रेरणा देते हैं, NCC कैडेट्स को ट्रेनिंग देते हैं, और सबसे ज्यादा वतन से मोहब्बत करना सिखाते हैं।

करगिल युद्ध

1999 की गर्मियों में पाकिस्तान की सेना और घुसपैठियों ने जम्मू-कश्मीर के करगिल सेक्टर में भारतीय नियंत्रण रेखा (LoC) को पार कर रणनीतिक चोटियों पर कब्जा कर लिया था। उनका उद्देश्य श्रीनगर-लेह मार्ग को काटकर लद्दाख क्षेत्र को भारत से अलग करना था। यह एक धोखे के तहत की गई घुसपैठ थी, जिसे भारत ने अत्यंत साहस, बुद्धिमत्ता और सैन्य रणनीति के बल पर विफल किया।
करगिल युद्ध में बिलासपुर का शौर्य (फोटो सोर्स- पत्रिका)

ऑपरेशन विजय: साहस का इतिहास

भारतीय सेना ने इस अभियान को “ऑपरेशन विजय” नाम दिया। 8 सप्ताह तक चले इस युद्ध में जवानों ने कठिन भौगोलिक परिस्थितियों, दुर्गम पहाड़ियों, कम ऑक्सीजन और दुश्मन की गोलियों के बीच अद्भुत पराक्रम का प्रदर्शन किया। 13 जाट, 18 ग्रेनेडियर्स, 2 राजपूताना राइफल्स, गढ़वाल राइफल्स सहित कई रेजिमेंट्स ने अपने शौर्य की ऐसी मिसालें पेश कीं जो आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा हैं। कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन अनुज नैयर, ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव, राइफलमैन संजय कुमार जैसे कई वीरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर भारत का मस्तक ऊंचा किया।

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