पिता की लंबी बीमारी के बाद मृत्यु ने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया। इकलौता होने से घर का माहौल शोक और निराशा से भरा हुआ था। ममी के आंसू नहीं रुक रहे थे। पिता, जो सार्थक के सबसे बड़े मार्गदर्शक और प्रेरणा थे, अब इस दुनिया में नहीं थे। लेकिन उस दुख के बीच भी सार्थक ने अपने सपनों को मरने नहीं दिया। महज दो महीने बाद नीट यूजी की परीक्षा थी।
मन में पीड़ा, आंखों में आंसू और दिल में खालीपन था, लेकिन लक्ष्य स्पष्ट था डॉक्टर बनना, ताकि दूसरों के दिलों की धड़कन बचाई जा सके। पिता का सपना भी तो यही था। सार्थक ने खुद को संभाला, किताबों से फिर दोस्ती की और पूरे मनोयोग से तैयारी में जुट गया। कठिन परिस्थितियों में भी उसने हार नहीं मानी।
हर एक पढ़ा गया पन्ना, हर एक हल किया गया प्रश्न मानो उसके पिता को समर्पित था। आखिरकार, मेहनत रंग लाई। पहले ही प्रयास में सार्थक ने नीट यूजी में 99.78 परसेंटाइल हासिल किया। ये सिर्फ एक परीक्षा में मिली सफलता नहीं थी, यह उसके आत्मविश्वास और पिता के सपनों की जीत थी।
सफलता का मंत्र: डाउट क्लियर कर पढ़ाई करें सार्थक ने बताया कि उन्होंने 10वीं में ही डॉक्टर बनने का लक्ष्य तय कर नीट की तैयारी शुरू कर दी थी। 12वीं में वे रेगुलर छात्र थे और नीट की तैयारी के लिए कोर एकेडमी में कोचिंग जाते थे। यहां वे हर डाउट क्लियर करते थे। हर दिन औसतन 4 से 5 घंटे पढ़ाई करते थे। 12वीं के नतीजों में उसने 92.4 प्रतिशत अंक हासिल किया है।
मोबाइल लिमिट में यूज किया। मॉक टेस्ट देने का भी फायदा मिला। वे इस सफलता का श्रेय ममी, मामाजी, दोस्तों के अलावा कोर एकेडमी के निदेशक ओमेश रेनवाल को देते हैं। जिनके मार्गदर्शन और नीट की तैयारी की सटीक रणनीति पर अमल कर डॉक्टर बनने का रास्ता आसान हो गया। सार्थक का सपना कार्डियोलॉजिस्ट बनना हैं।