Bikaner: बिना रासायनिक खादों के अनाज का उत्पादन, 3 गुना अधिक दाम पर खरीद रहे लोग
आज नकली खाद, बीज और उर्वरक की भरमार के बीच किसान भी रसायनिक खेती के इतने आदी हो गए हैं कि बाजार के उत्पादों के गुलाम बन गए हैं। इसके विपरीत हनुमान दास बाजार से कुछ भी नहीं लाते।
बीकानेर। रासायनिक खादों और जैनेटिक मॉडिफाइड (बीटी) बीजों की जगह देशी बीज और जैविक खाद के उपयोग से शत-प्रतिशत जैविक खेती कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। लूणकरनसर क्षेत्र के कपुरीसर चक 232 आरडी के हनुमानदास स्वामी ने यह साबित किया है। वह खेत में देसी बीज तैयार करते हैं। गोबर और जैविक खादों का उपयोग कर फसल उगाते हैं।
इससे जो कृषि उपज पैदा होती है, उसे बेचने के लिए बाजार भी नहीं जाते। ऐसी जैविक फसल की मांग इतनी है कि रसायनिक खेती की पैदावार से तीन गुणा तक दाम पर बिकती है। लोग उनके खेत से ही गेहूं, मूंगफली, मूंग सहित अन्य कृषि जिंसों की खरीद कर ले जाते हैं।
गाय के गोबर से खेती
हनुमान दास बताते हैं कि करीब डेढ़ दशक से वह पशुपालन और प्रकृति पर आधारित जैविक खेती कर रहे हैं। 20 देशी गाएं हैं। इसके गोबर, गोमूत्र व वनस्पतियों का अवयव बनाकर सात हैक्टेयर की फसलों को पोषण देते हैं। कोई खाद या अन्य बाजारी उर्वरक का उपयोग नहीं करते। इससे जहर मुक्त पोषण युक्त संतुलित सात्विक आहार की पैदावार हो रही है।
ऑनलाइन से लेकर मेट्रो व मार्ट तक पहुंच
हनुमान दास बताते हैं कि ऑनलाइन प्लेटफार्म की मदद से उनके खेत के उत्पादन मेट्रो सिटी से लेकर मार्ट तक पहुंच रहे हैं। आय भी अपेक्षाकृत ज्यादा हो रही है। धरती का स्वास्थ्य सुधारने के लिए वे जीवामृत, हरी खाद ढैंचा, वर्मी कपोस्ट खाद, फसल अवशेष, वेस्टडी कपोज़र, घन जीवामृत आदि घटक काम में लेते हैं। फसल में होने वाली सभी बीमारियों का नियंत्रण देशी तरीके से वनस्पतियों के घोल से कर रहे हैं।
नवाचार भी कर रहे
हनुमानदास कई तरह के नवाचार भी कर रहे हैं। चिया सीड और राजगिरा की खेती चार साल से परपरागत फसलों के साथ कर रहे हैं। इतना ही नहीं, अन्य किसानों को भी जहर मुक्त जैविक खेती में मदद करते है। उन्हें प्रशिक्षण देते हैं। दर्जनों किसान इनके खेत की विजिट करने हर साल आते हैं।