MP में ‘सिस्टम’ अफसरों के भरोसे…आयोगों में खाली पड़े ढेरों पद, विपक्ष ने उठाए सवाल…
MP News: पीड़ितों को न्याय दिलाने वाले मध्य प्रदेश आयोगों में अध्यक्ष समेत कई पद खाली, अध्यक्ष हैं ना कोई सदस्य, आयोगों में सन्नाटा पसरा है, पीड़ित न्याय की गुहार किससे लगाएं, कौन सुनेगा दर्द, किससे मांगे सुरक्षा, स्थिति ये कि 2016-17 से निष्क्रिय हो चुके हैं आयोग, मध्य प्रदेश कांग्रेस ने सरकार की मंशा पर ही उठाए सवाल, कहा जल्द से जल्द करें नियुक्तियां
Many Posts Vacant in MP in different Commissions mp congress questioned(image source: patrika)
MP News: सरकारी सिस्टम से हताश लोगों के लिए आशा की किरण होते हैं आयोग। इसके विपरीत मध्यप्रदेश में कई आयोगों के हालात ये हैं कि उन्हें ही न्याय की दरकार है। राज्य महिला आयोग, अनुसूचित जाति, जनजाति जैसे आयोगों का तो गठन ही नहीं हो सका है। सिस्टम अफसरों के भरोसे है।
मानव अधिकार आयोग में लंबे समय से अध्यक्ष नहीं हैं। एकमात्र सदस्य को अध्यक्ष की जिमेदारी दे दी गई है। पिछड़ा वर्ग के कल्याण की बात होती हैं। सियासत में भी चर्चा होती है, लेकिन इस वर्ग के लिए गठित आयोग की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। आयोग के पास न अमला है और न ही अपना दतर। अध्यक्ष ने सरकार को पत्र लिखकर स्टाफ और अलग से दतर के लिए भवन मांगा है।
राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष ने पत्र लिखकर कहा रिक्त पदों की हो पूर्ति
State Schedule Caste Commission MP (image source: patrika) राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रामकृष्ण कुसमरिया ने सीएम को पत्र लिखकर कहा है कि दिसंबर 2023 से वे अध्यक्ष हैं। वर्तमान में पिछड़ा वर्ग को 27% आरक्षण देने का अत्यावश्यक कार्य चल रहा है। ऐसे में आयोग में पूर्णकालिक सचिव की जरूरत है। विविध सलाहकार सहित सभी रिक्त पदों की पूर्ति की जाए।
राज्य महिला आयोग: सिर्फ आवेदन लेने तक सीमित
State Women Commission MP(image source: patrika)श्यामला हिल्स स्थित राज्य महिला आयोग में लंबे समय से अध्यक्ष और सदस्यों के पद खाली हैं। कमलनाथ सरकार में आयोग का गठन हुआ था, लेकिन मार्च 2020 में सरकार के अल्पमत में आने और सत्ता परिवर्तन के बाद विवाद की स्थिति बनी। मामला कोर्ट पहुंचा। तब से न अध्यक्ष की नियुक्ति हुई और न ही कोई सदस्य मनोनीत हुआ। ऐसे में यहां न्याय पाने की आस लिए पहुंचीं महिलाओं को निराशा होती है। पीड़ितों की शिकायत लेकर काम की पूर्ति मानी जाती है। लंबित मामलों की संया 30 हजार से अधिक जा पहुंची है।
मानवाधिकार आयोग: इकलौते सदस्य के भरोसे
Human Rights Commission MP(imgae source: patrika)मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग में अध्यक्ष का पद रिक्त है। यह आयोग कार्यवाहक अध्यक्ष के भरोसे है। यानी इकलौते सदस्य राजीव कुमार टंडन को अध्यक्ष पद की जिमेदारी दी गई है। सुनवाई के लिए कम से कम दो सदस्य होने चाहिए। बेंच नहीं लगने की वजह से आयोग में सिर्फ मानव अधिकार हनन से जुड़े मामलों में संज्ञान लेकर संबंधितों को नोटिस जारी किया जा रहा है। आयोग में रोजाना औसतन 8-10 मामलों में संज्ञान लिया जाता है। ज्यादातर मामले मीडिया रिपोर्ट के आधार पर होते हैं।
अनुसूचित जाति आयोग: सचिव ही देख रहे काम
एमपी नगर स्थित इस आयोग का दतर खोजना आसान नहीं। लैट में लग रहे आयोग तक पहुंचो तो पता चलता है कि न अध्यक्ष हैं और न ही सदस्य। कर्मचारियों ने बताया कि सचिव सीमा सोनी कार्यालय में हैं। सचिव सीमा ने पत्रिका को बताया, यह सही है कि आयोग में अध्यक्ष-सदस्य की नियुक्ति नहीं हो पाई है, लेकिन आयोग में आने वालों को निराश नहीं लौटना पड़ता। सुनवाई हो रही है। आवेदन लेकर संबंधित जिलों के अफसरों को भेजते हैं। रिपोर्ट भी मांगी जाती है। जरूरत पड़ने वे स्वयं सुनवाई भी करती हैं।
सूचना आयोग: 20 हजार तक पहुंचे लंबित मामले लंबित मामलों की संया 20 हजार तक जा पहुंची है। आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 मुय सूचना आयुक्त हो सकते हैं, लेकिन मुय सूचना आयुक्त सहित तीन सूचना आयुक्त ही हैं। लंबित द्वितीय अपीलों की संया रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। मार्च 2024 में सभी पद खाली हो गए थे। सितंबर में मुय सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त की नियुक्ति हुई।
अजजा आयोग: यहां भी बढ़ रही पेंडेंसी
अनुसूचित जनजातियों को न्याय दिलाने आयोग का प्रावधान है। यह आयोग नाम का रह गया है। लोगों के आवेदन लेने के साथ ही न्याय का भरोसा दिलाया जाता है। सचिव के भरोसे आयोग है। अनुसूचित जाति/ जनजाति आयोग, महिला आयोग जैसी संस्थाओं के पास सिविल न्यायालय की शक्तियां है। अध्यक्ष या सदस्यों के बिना यह शक्तियां किसी काम की नहीं।
विपक्ष (MP Congress) ने सरकार की मंशा पर उठाए सवाल
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार (MP Politics) ने आयोग के गठन न होने पर सरकार (MP BJP) की मंशा पर ही सवाल उठाए हैं। कहा कि समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा और उनके उत्पीड़न को रोकने प्रदेश में कई आयोग बनाए गए जो 2016-17 से भाजपा के कार्यकाल में निष्क्रिय हो चुके हैं। आयोग सिर्फ नाम के बचे हैं। स्थिति इतनी दयनीय है कि ये न तो पीड़ितों की आवाज सुन पा रहे हैं और न ही उनके लिए कोई ठोस कार्रवाई कर पा रहे हैं। राज्य सरकार को चाहिए कि जल्द से जल्द नियुक्तियां करे।