17 जिलों के सामान्य वन मंडलों की सीमाओं से मिलकर बनी है सीमा
असल में 50 साल पहले राज्य में वन विकास निगम (MP Forest Development Corporation) की स्थापना हुई थी। वर्तमान में 11 परियोजना मंडल हैं। जिनमें रीवा-सीधी, उमरिया, मंडला-मोहगांव, कुंडम, बरघाट, लामटा, छिंदवाड़ा, रामपुर भतौड़ी, खंडवा, सीहोर और विदिशा-रायसेन शामिल हैं। सीमा 17 जिलों के सामान्य वन मंडलों की सीमाओं से मिलकर बनी है। खंडवा जैसे जिले छोड़ दें तो लगभग सभी जिलों के जंगलों में कहीं न कहीं बाघ हैं। तब भी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण परियोजना मद से एक रुपया भी खर्च नहीं किया जा रहा।बाघों पर सालाना 50 से 70 करोड़ खर्च
टाइगर रिजर्व व अभयारण्य में बाघों पर सालाना 50 से 70 करोड़ खर्च किए जा रहे हैं। यह राशि सुरक्षा, घास के मैदान तैयार करने, शाकाहारी वन्यजीवों की शिफ्टिंग, बाघों के खतरे कम करने, आधुनिक तरीके से निगरानी करने आदि पर खर्च की जाती रही है।एमपी में बाघों की मौत
वर्ष- मौत
2021- 41
2022- 34
2023-43
2024-50
2025-32
(स्रोत:एनटीसीए की विभिन्न रिपोर्ट के मुताबिक)
सिर्फ 23 वर्ग किलोमीटर
वयस्क नर बाघ को कम से कम 100 वर्ग किमी और मादा बाघ को 40 से 60 वर्ग किमी जंगल चाहिए होता है। देश में 3,682 बाघों के लिए 58 टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्र लगभग 85 हजार वर्ग किमी है। गुणा-भाग करें तो एक बाघ को 23 वर्ग किमी जंगल मिल रहा है।निगम ने की पहल
11 परियोजना मंडलों का कुल क्षेत्रफल 4.15 लाख हेक्टेयर है। अफसरों की मानें तो इनमें 200 से ज्यादा बाघों का मूवमेंट है। ये वे बाघ हैं जो टाइगर रिजर्व व वन्यजीव अभयारण्यों (tiger reserve and wildlife sanctuary)से होकर इन क्षेत्रों में शिकार आदि के लिए घूमते हैं। इनमें से कई बाघों ने तो निगम के अधीन वाले वन क्षेत्रों को स्थाई ठिकाना बना लिया है। जब संज्ञान में आया तो प्रधान मुख्य वन संरक्षक व निगम के एमडी वीएन अंबाड़े ने संरक्षण के लिए प्लान बनाकर एसीएस वन अशोक बर्णवाल को भेजा। सरकार के स्तर पर मंथन के बाद दिल्ली भेजा।बाघों की मौत के मामले में भी एमपी अव्वल(Tiger Deaths in MP)
मध्य प्रदेश – 355महाराष्ट्र – 261
कर्नाटक – 179
उत्तराखंड – 132
असम – 85
केरल – 76
उत्तर प्रदेश – 67
राजस्थान – 36
बिहार – 22
छत्तीसगढ़ – 21