अब भरोसे की गारंटी नहीं सरकारी फाइलों में लिखा गया “मरम्मत पूर्ण” या “संस्थान सुरक्षित” अब भरोसे की गारंटी लायक रहा। हम यह मान कर चलते हैं कि सरकार ने जो कहा, वह सत्य है। लेकिन झालावाड़ जैसी घटनाएं हमें बार-बार बताती हैं कि केवल कागजों में दर्ज बातें ज़मीनी सच्चाई नहीं होती। अब वक्त आ गया है कि माता-पिता भी सिर्फ स्कूल की फीस भरने या रिजल्ट देखने तक ही सीमित न रहें, बल्कि वह जिम्मेदारी उठाएं जो एक सजग नागरिक और अभिभावक की होती है।
हर मां-बाप को खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या मुझे पता है कि मेरे बच्चे की कक्षा की छत कितनी मजबूत है? स्कूल की दीवारें कब आखिरी बार मरम्मत की गई थीं? क्या स्कूल में शौचालय साफ हैं? पीने का पानी है या नहीं? बिजली की व्यवस्था सुरक्षित है? स्कूल में कोई सुरक्षा गार्ड है या नहीं? अगर इन सवालों का जवाब “नहीं” है, तो इसका मतलब है कि सिर्फ शासन नहीं, हम भी इस चुप्पी के लिए जिम्मेदार हैं।
अभिभावक करें औचक निरीक्षण यह ज़रूरी है कि अभिभावक स्कूलों का औचक निरीक्षण करें। शिक्षकों से बात करें, बच्चों से स्कूल की सुविधाओं की जानकारी लें। यदि कुछ गलत या जर्जर दिखाई दे, तो स्थानीय प्रशासन, पंचायत, स्कूल प्रबंधन समिति या जिला शिक्षा अधिकारी से संपर्क करें। सोशल मीडिया के इस दौर में अभिभावक मिलकर एक सशक्त आवाज बन सकते हैं।
स्कूलों की देखरेख की निभाएं जिम्मेदारी स्थानीय समुदायों को भी आगे आना चाहिए। गांव, कस्बे या मोहल्लों में रहने वाले लोग मिलकर स्कूलों की देखरेख में भागीदारी निभा सकते हैं। कई जगह भामाशाह, एनजीओ और स्थानीय उद्योगपति इस दिशा में अच्छा काम कर रहे हैं। अगर एक माता-पिता भी पहल करें, तो यह लहर बन सकती है।
अनदेखी का कारण कई बार जर्जर दिवार को भी अनदेखा कर देते हैं। इसके कारण वह भी जानलेवा साबित हो जाती है। अगर हम समय रहते चेते, सवाल पूछे, जांच की मांग करें, तो हादसों को टाला जा सकता है। यह न सिर्फ हमारे बच्चों की सुरक्षा का सवाल है, बल्कि हमारी जिम्मेदारी भी है। इसलिए, अब सिर्फ सरकार की ओर न देखें, खुद आगे बढ़ें, देखें, पूछें और टोकें। क्योकि बच्चों की सुरक्षा सिर्फ शासन का काम नहीं, हमारी चुप्पी भी उनकी जान की कीमत बन सकती है।
हर अभिभावक को बढ़ानी होगी जागरुकता
- – हर मां-बाप अब बनें स्कूल प्रहरी।
- – बच्चों की सुरक्षा सिर्फ शासन नहीं, अभिभावकों की भागीदारी भी जरूरी।
- – स्कूल भेजने से पहले स्कूल को देखें।
- – अब चुप रहना खतरे से खेलने जैसा है।
- – एक निरीक्षण, एक सवाल, बचा सकता है मासूम ज़िंदगियां।
- – स्कूल की छतें गिर रही हैं, हम कब उठेंगे?