वन विभाग की जिले में 16 नर्सरियों में इस साल मात्र 19 लाख 33 हजार पौधे तैयार हुए। इसके बावजूद शिक्षा विभाग ने उनसे 23 लाख 48 हजार पौधे खरीद लिए। सवाल यह है कि जब उपलब्ध पौधे इतने थे खरीद के आंकड़े कैसे बढ़े? यह स्थिति तब है जब वन विभाग से पौधे केवल शिक्षा विभाग ही नहीं बल्कि प्रदूषण नियंत्रण मंडल, अन्य सरकारी विभाग और आमजन भी खरीद रहे हैं। शिक्षा विभाग ने 8 अगस्त को कलक्टर को दी रिपोर्ट में 25 लाख 15 हजार पौधे लगाना बताया। इनमें 17 लाख 39 हजार पौधों का जियो टैग किया।
गमला और बीजारोपण भी गिने पौधारोपण में अभियान में चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई कि कोई विद्यालय गमले में पौधा रख रहा या बीज बो रहा है, तो उसे भी पौधारोपण मानकर आंकड़ों में जोड़ा जा रहा। सरकारी व निजी विद्यालयों में 39.53 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है। इस येनकेन गिनती में शामिल किया जा रहा है।
अभियान राजस्व व शोपीस के लिए आमजन का मानना है कि पौधारोपण अभियान धरातल पर हरियाली लाने से ज्यादा, राजस्व बढ़ाने और दिखावटी चल रहा है। पौधे लगाने के बाद उनकी देखरेख, पानी और सुरक्षा की व्यवस्था न होने से बड़ी संख्या में पौधे कुछ समय में सूख जाते हैं। मजेदार बात यह है कि शिक्षा विभाग की हकीकत भी दो माह बाद पता चलेगी जब जिन पौधों को जियो टैग किया उनको पुन: दो माह बाद जियो टैग करना है।
शिक्षा विभाग की बैठक में खुली पोल सोमवार को हुई शिक्षा विभाग की बैठक में जब “हरियालो राजस्थान” के आंकड़े प्रस्तुत हुए, तो कई अधिकारी भी चौंक गए। बैठक में यह सवाल उठा कि इतने पौधे कहां से आए और क्या सभी वास्तव में लगाए गए। दरअसल, यह पहला मौका नहीं है जब पौधारोपण के आंकड़ों पर सवाल उठे हों। पिछले वर्षों में भी पौधे लगाने के दावे तो बड़े-बड़े हुए, लेकिन उनकी देखरेख में लापरवाही से अधिकांश पौधे सूख गए।