जिसे लेकर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पत्रिका की खबर को शेयर करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट कर लिखा कि ‘मुझे कुछ समय पहले ही भरतपुर के अपना घर जाने का सौभाग्य मिला था तब इसके संचालक बीएम भारद्वाज ने बताया था कि अभी तक लगभग 33,000 लोगों को इस तरह अपने परिजनों से मिलवाने का पुण्य काम कर चुके हैं। 24 साल बाद अपने परिजनों से मिलने वाली पश्चिम बंगाल की रूपाली इसका ही एक उदाहरण है। अगर किसी को भी सेवा का असल अर्थ देखना है तो भरतपुर का अपना घर अवश्य देखना चाहिए।’
कैसे पता चला?
गौरतलब है कि रूपाली को मानसिक अवसाद की स्थिति में 4 वर्ष पूर्व जयपुर से रेस्क्यू कर लाया गया था, तब से ही उनका इलाज चल रहा था। वह केवल बंगाली भाषा जानती थी। यहां उन्हें ऐसे वार्ड में रखा गया जहां दूसरे प्रभुजी बंगाली के साथ हिंदी जानते थे। उन्होंने हेंब्रम का पता लेकर पदाधिकारी को दिया, इसके बाद एक होटल का नाम इंटरनेट पर सर्च कर वहां दूरभाष से संपर्क किया। होटल वालों ने बताया कि इस नाम की एक महिला दशकों पहले यहां से अचानक गुम हो गई थी, जिसे हमने मृत मान लिया था। इस संबंध में जब रूपाली के बेटे को बताया तो पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ। वीडियो कॉल पर बात कराई गई तो भी वह ठीक से नहीं पहचान सका, क्योंकि जब मां जब घर से निकली थी, तब वह महज 5 वर्ष का था।
बेटे ने गांव के मुखिया नानू मुर्मू को यह जानकारी दी कि मेरी मां जिंदा है और वह राजस्थान के अपना घर भरतपुर में है। यह चर्चा मुखिया मुर्मू ने क्ष़ेत्रीय विधायक अभिजीत सिन्हा को बताई और कहा कि परिवार आदिवासी है तथा आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि अपनी मां को गांव ले आए। पिता का भी एक वर्ष पूर्व इस दुनिया को बिसरा चुके हैं।
‘मां’ को लेने पहुंचे विधायक
स्थानीय विधायक अभिजीत सिन्हा ने इस मामले में पहल करते हुए तत्काल कहा कि कोई बात नहीं है मैं अभी फ्लाइट की टिकट कराता हूं। आप और उनका बेटा तैयार हो जा जाओ। मेरी विधानसभा होने के नाते मेरा यह फर्ज बनता है। विधायक ने बताया कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से स्वीकृति लेने के बाद में मैं गांव के मुखिया एवं बेटे को लेकर फ्लाइट से दिल्ली आया और बंगाल भवन दिल्ली से गाड़ी लेकर अपना घर पहुंचा।