छत्तीसगढ़ में कहां है मामा भांजा मंदिर(photo-patrika)
Mama-Bhanja Temple: छत्तीसगढ़ के बस्तर का नाम आते ही मन में हरियाली, पहाड़, झरने और खूबसूरत वादियों की तस्वीर उभर आती है। चित्रकोट और तीरथगढ़ जैसे प्रसिद्ध झरनों के अलावा बस्तर में कई ऐसे अद्भुत स्थल हैं, जो अब भी लोगों की नजरों से दूर हैं। ऐसा ही एक स्थान है- मामा-भांजा मंदिर।
यह अनोखा मंदिर (Mama-Bhanja Temple) छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के बारसूर गांव में स्थित है। इसकी खासियत न सिर्फ इसकी वास्तुकला है, बल्कि इसके पीछे जुड़ी रोचक कहानी भी है। बताया जाता है कि 11वीं शताब्दी में छिंदक नागवंशी शासक बाणासुर के शासनकाल में इस मंदिर का निर्माण हुआ था। इसे मामा और भांजा, दो कुशल शिल्पकारों ने मिलकर तैयार किया, और वो भी सिर्फ एक ही दिन में।
माना जाता है कि यह दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है जो अपने नाम और निर्माण कथा के कारण बिल्कुल विशिष्ट बन गया है। अगर आप बस्तर घूमने का सोच रहे हैं, तो मामा-भांजा मंदिर आपकी यात्रा में एक खास स्थान होना चाहिए।
Mama-Bhanja Temple: एक ही दिन में बनी ऐतिहासिक शिल्पकला की मिसाल
इस मंदिर के निर्माण में विशेष किस्म के बलुई पत्थरों का प्रयोग किया गया है, जो इसे मजबूती और सुंदरता प्रदान करते हैं। मंदिर की ऊँचाई काफी अधिक है, और इसकी दीवारों पर उकेरे गए शैलचित्र उस समय की अद्वितीय कारीगरी की गवाही देते हैं।
मंदिर के ऊपरी हिस्से के ठीक नीचे दोनों ओर मामा और भांजा- दो (Mama-Bhanja Temple) महान शिल्पकारों की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं, जिन्होंने इस मंदिर का निर्माण किया था। गर्भगृह में भगवान शिव, भगवान गणेश और भगवान नरसिंह की प्रतिमाएँ स्थापित हैं, जो इसे धार्मिक दृष्टि से और भी विशेष बनाती हैं। यह मंदिर आज भी इतिहास, कला और भक्ति का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करता है, जो पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
शिव-गणेश को समर्पित अनोखा मंदिर
बारसूर स्थित मामा-भांजा मंदिर (Mama-Bhanja Temple) मुख्य रूप से भगवान शिव और भगवान गणेश को समर्पित है। इस मंदिर के निर्माण और नामकरण से जुड़ी एक रोचक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में इस क्षेत्र पर राजा बाणासुर का शासन था, जो भगवान शिव के परम भक्त माने जाते थे।
अपनी भक्ति को अद्वितीय रूप देने और भगवान शिव को प्रसन्न करने के उद्देश्य से राजा ने एक भव्य मंदिर बनवाने का निश्चय किया। वह चाहते थे कि यह मंदिर केवल एक ही दिन में बनकर तैयार हो जाए, जिससे उनका यश चारों दिशाओं में फैले और उनके वंश का नाम अमर हो जाए।
इस असंभव से प्रतीत होने वाले कार्य को पूरा करने के लिए राजा ने अपने राज्य के दो प्रसिद्ध शिल्पकारों को बुलवाया। मान्यता है कि ये शिल्पकार सामान्य मानव नहीं थे, बल्कि उन्हें देवताओं के लोक से भेजा गया था। कुछ लोगों का तो यह भी विश्वास है कि ये दोनों शिल्पकार देव शिल्पी विश्वकर्मा के वंशज थे, हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। आज यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसकी कहानी इसे और भी रहस्यमयी और अद्वितीय बनाती है।
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