बाड़मेर। भारत द्वारा पहलगाम हमले का जवाब आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद कर देने के बाद पश्चिमी सीमा (गडरारोड, राजस्थान) पर सुबह होते ही लोगों के सीने गर्व से तन गए। मूंछों पर ताव और कंठ में गूंजती आवाज में एक अलग ही आत्मविश्वास था। बॉर्डर के बिल्कुल पास बसे इन गांवों में युद्ध का कोई भय नहीं है।
आखिरी गांव अकली, यहां से सामने पाकिस्तान नजर आता है। पाक रेंजर्स तारबंदी के पास गश्त करते दिखते हैं, वहीं भारतीय सीमा पर बीएसएफ की तैनाती है। मुनाबाव रेलवे स्टेशन पर सन्नाटा पसरा हुआ है। गडरारोड़ कस्बे में करीब 15 हजार की आबादी है और यह आसपास के 100 गांवों का केंद्र है।
1965 और 1971 में युद्धों का सामना कर चुके
ग्रामीणों का कहना है कि हम 1965 और 1971 जैसे युद्धों का सामना कर चुके हैं। 1999 में पाकिस्तान इस ओर बढ़ा ही नहीं था, लेकिन अब अगर बढ़े तो पहली गोली झेलना मंजूर है, पर आतंक बर्दाश्त नहीं। गांव के भारथाराम मेघवाल कहते हैं अब बंकर में घुसने का समय आ गया है।
स्थानीय निवासी रमेशचंद्र चण्डक, गोविंदसिंह सोढ़ा और घनश्याम महेश्वरी का कहना था कि 1947 में हम पाकिस्तान के गडरा सिटी को छोड़कर आए थे। इस बार अगर युद्ध होता है तो पिछली बार हमने 100 किलोमीटर तक छाछरो फतह किया था, अब पूरा पाकिस्तान नेस्तनाबूद कर देंगे।
बीएसएफ पूरी तरह मुस्तैद
बाड़मेर से लगती सीमा पर बीएसएफ जवान अलर्ट हैं। बीएसएफ के डीआईजी राजकुमार बसाटा भी बॉर्डर पर पहुंच चुके हैं। सभी चौकियों पर अलर्ट बढ़ा दिया गया है और नफरी चार गुना कर दी गई है। पाकिस्तान गतिविधि पर नजर है।