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बाड़मेर

पाक से 100 मीटर दूर 56 इंच का सीना रखते हैं 56 गांव, ग्रामीण बोले- हमें भारतीय फौज पर पूरा भरोसा

बाड़मेर जिले के 56 गांव ऐसे हैं जो पाकिस्तान बॉर्डर से महज 100 मीटर की दूरी पर ही है।

बाड़मेरMay 12, 2025 / 09:31 am

Lokendra Sainger

barmer village

बाड़मेर के आस-पास के गांव

रतन दवे

सामने पाकिस्तान की फौजें…इधर भारत की फौज। बंदूकें और हथियार लिए दिन-रात गश्त। कभी ऊपर से ड्रोन तो कभी हवाई जहाज का गुजरना। पल-पल यह खबर कि अब हमला हुआ, ब्लैक आउट और रेड अलर्ट इनके लिए नई बात नहीं, बारह महीने ही धारा 144 को जीते हैं।
बाड़मेर जिले के 56 गांव ऐसे हैं जो पाकिस्तान बॉर्डर से महज 100 मीटर की दूरी पर ही है। इन गांवों के लोग 56 इंच का सीना तानते हुए कहते हैं, हमारे ऊपर कोई दबाव थोड़ा ही था कि यहां रहें। हमने खुद ने चुना है। फौज आएगी तो उसकी मदद करेंगे, घर छोड़कर नहीं जाएंगे। हां, फौज कहेगी तो फिर जहां वो ले जाएंगे वहां रह जाएंगे। गडरारोड से सटे हुए गडरारोड, सुंदरा, जैसिंधर स्टेशन, रोहड़ी, सुन्दरा, तामलौर, त्रिमोही सहित कुल सोलह गांव है जो केवल 100 मीटर की दूरी पर ही है। चौहटन के 11, सेड़वा के 10, रामसर के 10, धनाऊ के 9 गांव है।
बॉर्डर के गांव अकली भंवरसिंह ठीक सामने पाकिस्तान की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि वो देखिए वो रहा..हम तो रोज देखते हैं। 1965 और 1971 में भी देखा था। हमें भारत की फौज पर पूरा भरोसा है। 1971 में तो छाछरो तक आ गई थी, यहां के अधिकांश परिवार फौज के भरोसे तो भारत आकर बसे हैं। हम गांव नहीं छोड़ते। हम छोड़ेंगे तो फिर फौज की मदद कौन करेगा? त्रिमोही के नवाबराम भगत परिवार के साथ काम में व्यस्त है। यहां पानी की किल्लत है तो बेरियों से लोग पानी लाते हैं। सामान्य जीवन चल रहा है।
वे कहते हैं कि समाचार सब रखते हैं पर डर नहीं है। चौहटन का कैलनोर, मिठड़ाऊ, स्वरूपे का तला, तालसर, सोमराड़, नवातळा बाखासर, हाथला, भलगांव लालपुर सहित 11 गांवों में भी यही आलम है। 1971 के युद्ध में बाखासर से भारतीय सेना ने कूच किया था और पाकिस्तान फतेह हुई थी। मिठड़ाऊ के धर्माराम कहते हैं कि हम लोगों की तो जिंदगी ही बीएसएफ और फौज के साथ है।

युद्ध के दौरान भी गांव में रहते हैं लोग

आपात स्थिति में भारतीय सेना जब इन गांवों को खाली करवाने के आदेश देती है, तब महिलाएं, बुजुर्ग व बच्चे तो गांव छोड़ते हैं, लेकिन जवान फिर भी यहां ठहरते हैं। वे गांव में सेना के साथ रहकर उनकी मदद करते हैं।

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