किसान एकता संघ के पदाधिकारियों ने बताया कि इस अस्पताल की स्थापना के लिए संगठन ने छह महीने तक आंदोलन चलाया था। इस दौरान कई बार धरना, रैलियां, जनसभाएं आयोजित की गईं और प्रशासन को ज्ञापन सौंपे गए। संघ की प्रमुख मांग थी कि ग्रामीण इलाकों के लोगों को निःशुल्क और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराई जाएं। संघ ने सरकार से आग्रह किया था कि अस्पताल को पूरी तरह सरकारी नियंत्रण में रखा जाए ताकि कमजोर वर्गों को बिना आर्थिक बोझ के इलाज की सुविधा मिल सके।
किसान एकता संघ ने दी पदयात्रा की चेतावनी
सरकार से ठोस आश्वासन न मिलने पर किसान एकता संघ ने 26 मार्च 2025 से बरेली में पदयात्रा निकालने की घोषणा की थी। हालांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संभावित दौरे को देखते हुए प्रशासन ने इस यात्रा को फिलहाल टालने का अनुरोध किया, जिसे संघ ने स्वीकार किया। इसके बाद संघ का एक प्रतिनिधिमंडल बरेली के प्रभारी मंत्री एवं सहकारिता मंत्री जेपीएस. राठौर से मिला। मंत्री ने आश्वासन दिया कि अस्पताल का निर्माण जनहित में किया जाएगा और गरीबों के हितों की अनदेखी नहीं की जाएगी। अप्रैल 2025 में अपने बरेली दौरे के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस अस्पताल को “मेडिकल हब” के रूप में विकसित करने की घोषणा की थी। इससे स्थानीय लोगों को उच्चस्तरीय चिकित्सा सुविधाओं की उम्मीद बंधी थी। लेकिन अब खबर है कि अस्पताल को पीपीपी मॉडल के तहत निजी हाथों में देने की तैयारी की जा रही है, जिससे किसान एकता संघ सहित आम जनता में असंतोष गहरा गया है।
गरीबों के लिए इलाज हो जाएगा महंगा
संघ के मुताबिक यदि अस्पताल का संचालन किसी निजी संस्था को सौंपा गया, तो वहां इलाज महंगा हो जाएगा और आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोग इससे वंचित रह जाएंगे। संघ ने यह भी कहा कि सरकार यदि अपने निर्णय पर कायम रही, तो वे फिर से आंदोलन की राह पकड़ेंगे। संघ ने सरकार को स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है कि यदि अस्पताल का निजीकरण किया गया, तो आंदोलन को और व्यापक रूप दिया जाएगा, जिसकी जिम्मेदारी शासन और प्रशासन की होगी। इस मुद्दे पर बरेली की आम जनता का भी किसान एकता संघ को समर्थन मिल रहा है। स्थानीय नागरिकों का मानना है कि अस्पताल को पूरी तरह सरकारी बनाए रखना ही गरीबों के स्वास्थ्य हित में सबसे बेहतर निर्णय होगा।