यह आदेश गांव रहमा निवासी तसलीम गाजी द्वारा दायर प्रार्थना पत्र पर दिया गया है। तसलीम का आरोप है कि पुलिस और एसओजी (स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप) ने उनके मित्र मुख्तयार को जुलाई 2024 में मादक पदार्थ तस्करी के झूठे मामले में फंसा दिया और गिरफ्तारी के बाद सोशल मीडिया पर भी उसे बदनाम किया।
झूठे केस की पूरी कहानी
तसलीम गाजी के अनुसार, 28 जुलाई 2024 को बिनावर थाने के तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक कांत कुमार शर्मा, एसओजी प्रभारी नीरज कुमार मलिक और अन्य पुलिसकर्मियों ने मुख्तयार, विलाल समेत कुछ अन्य लोगों को हिरासत में लिया। उन्हें हवालात में रखा गया, जबकि 31 जुलाई को पुलिस ने दावा किया कि थरा मोड़ से मुख्तयार और विलाल को उसी दिन पकड़ा गया और आकिल व सबलू फरार हो गए। इसके बाद एनडीपीएस एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया। तसलीम ने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने मुख्तयार और उसके साथियों को अवैध रूप से बंदी बनाकर झूठे मामले में फंसाया और विरोध करने पर जान से मारने की धमकी दी गई। एक महीने की कानूनी लड़ाई के बाद दोनों को जमानत मिल पाई।
कौन-कौन हैं आरोपी पुलिसकर्मी
प्रार्थना पत्र में कुल 25 पुलिसकर्मियों के नाम शामिल हैं, जिनमें दो इंस्पेक्टर, छह सब-इंस्पेक्टर और 17 सिपाही हैं। नाम इस प्रकार हैं: बिनावर थाने के तत्कालीन इंस्पेक्टर: कांत कुमार शर्मा एसओजी प्रभारी: इंस्पेक्टर नीरज कुमार मलिक उप निरीक्षक: गुड्डू सिंह, शेरपाल सिंह, रामनाथ कन्नौजिया, धर्मेंद्र सिंह सिपाही: योगेश कुमार, सुमित कुमार, विकास कुमार, शैलेंद्र गंगवार, मोहित कुमार, मनोज, संजय सिंह, सचिन कुमार झा, विपिन कुमार, सचिन कुमार, मुकेश कुमार, सराफत हुसैन, आजाद कुमार, भूपेंद्र कुमार, कुश्कांत, अरविंद कसाना, मनीश कुमार
न्यायालय की टिप्पणी और निर्देश
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने तसलीम गाजी के प्रार्थना पत्र में प्रस्तुत तथ्यों को गंभीर मानते हुए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। अदालत ने माना कि यदि आरोप सही हैं तो यह न केवल मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करता है।