Independence Day : राजस्थान में भी है एक ‘जलियावाला बाग’, अंग्रेजी हुकूमत की कारस्तानी जानकर खड़े हो जाएंगे रोंगटे
Independence Day : राजस्थान में भी है एक ‘जलियावाला बाग’। इस ‘जलियावाला बाग’ में भी अंग्रेजी हुकूमत ने अपने कारनामे को दोहराया था। स्वतंत्रता दिवस पर पढ़ें आजादी के मतवालों की एक कहानी?
बांसवाड़ा के आनंदपुरी धूनी, गोविंद गुरु (इनसेट)। ग्राफिक्स फोटो पत्रिका
Independence Day : बांसवाड़ा के आनंदपुरी उपखंड मुख्यालय से सात किलोमीटर दूर, 800 मीटर ऊंची मानगढ़ की पहाड़ी राजस्थान और गुजरात की सीमा को छूती है। यह एक ऐसी जगह है, जो अपने में शौर्य और बलिदान की अमिट गाथा समेटे हुए हैं। 17 नवम्बर, 1913 को इसी पहाड़ी पर अंग्रेजी फौज ने निहत्थे भील-आदिवासियों पर गोलियां बरसाकर 1500 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। उस दिन हजारों आदिवासी मानगढ़ धाम पर एकत्र हुए थे। उनका मकसद था आदिवासियों के दमन, शोषण, अत्याचार और बेतहाशा टैक्स के विरुद्ध आवाज बुलंद करना।
ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुटता और स्वाभिमान का संदेश देने के लिए जुटे आदिवासियों की भीड़ को अंग्रेजों ने खुद के लिए खतरा मानते हुए अचानक चौतरफा हमला कर दिया था। गोलियों की बौछार में सैकड़ों लोग ढेर हो गए। कई घायल अवस्था में पहाड़ी की ढलानों से गिरकर शहीद हो गए।
स्वाभिमानी जीवन जीने का संदेश
मानगढ़ धाम भील-आदिवासियों के स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र था, जिसका नेतृत्व संत और समाज सुधारक गोविंद गुरु कर रहे थे। उन्होंने आदिवासियों को सामाजिक बुराइयों से दूर रहकर आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी जीवन जीने का संदेश दिया। गोविंद गुरु ने ‘संप सभा’ के माध्यम से 9 सूत्रीय उद्देश्य रखे, जिनमें शराब-मांस का त्याग, अपराधों से परहेज, मेहनत-मजदूरी से जीवन-यापन, गांव-गांव में शिक्षा का प्रसार, धार्मिक आचरण, बच्चों को संस्कारित करना, पंचायत के फैसलों को सर्वोपरि मानना, बेगार और अन्याय का विरोध करना तथा स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना शामिल था।
राजस्थान का सबसे बड़ा नरसंहार
आजादी की लड़ाई के दौरान यह राजस्थान का सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था। कहा जाता है कि जलियांवाला बाग से भी बड़ा था। यह घटना भील-आदिवासी आंदोलन की निर्णायक चिंगारी बनी। इसने आदिवासियों को यह विश्वास दिलाया कि वे अन्याय के खिलाफ संगठित होकर लड़ सकते हैं और जीत सकते हैं। मानगढ़ धाम की मिट्टी आज भी उस बलिदान की गवाही देती है, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी थी।
विकास अब तक अधूरा
इतिहास के इस गौरवशाली अध्याय और राष्ट्रीय महत्व के बावजूद मानगढ़ धाम का विकास अब तक अधूरा है। वर्षों से घोषणाएं और वादे होते रहे हैं, लेकिन पहाड़ी और स्मारक परिसर को वह स्वरूप नहीं मिल पाया, जिसका यह हकदार है। यहां आने वाले पर्यटक और श्रद्धालु अब भी बुनियादी सुविधाओं के अभाव को महसूस करते हैं।
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